Bhopal News : आज भोपाल में जुटेंगे दुनियाभर के लेप्रोस्कोपिक एवं रोबोटिक सर्जन
उदर रोगों की पहचान, निदान और इलाज की नई तकनीकों का आदान-प्रदान करने के लिए 28 एवं 29 अक्टूबर को दो दिवसीय कांफ्रेंस में विश्वभर के लेप्रोस्कोपिक एवं रोबोटिक सर्जन शामिल होंगे।;
भोपाल। उदर रोगों की पहचान, निदान और इलाज की नई तकनीकों का आदान-प्रदान करने के लिए 28 एवं 29 अक्टूबर को दो दिवसीय कांफ्रेंस में विश्वभर के लेप्रोस्कोपिक एवं रोबोटिक सर्जन शामिल होंगे। कांफ्रेंस राजधानी के कुशाभाऊ ठाकरे सभाग्रह में आयोजित की जाएगी।
ऑपरेशन पर लेक्चर दिया जाएगा
कांफ्रेंस के मुख्य संयोजक डॉ निशांत चौरिसया ने बताया कि कांफ्रेंस में देश-विदेश से लेप्रोस्कोपिक एवं रोबोटिक सर्जन प्रो. शियान हैन किम मलेशिया, प्रो. सुनील शर्मा नेपाल, प्रो. अनहरल रहमान बांग्लादेश, पद्मश्री डॉ. प्रदीप चौबे, डॉ. परवीन भाटिया, डॉ. अजय कृपलानी, डॉ. सरफराज बेग, डॉ. दीपराज भंडारकर आदि 200 से अधिक फैकल्टीज और 800 से अधिक सर्जन ट्रेनिंग के लिए शामिल हो रहे हैं। एसोसिएशन ऑफ गेस्ट्रो इन्टेसटाईनल सर्जन्स द्वारा आयोजित इस कान्फ्रेंस में लेप्रोस्कोपी तथा एन्डोस्कोपी सर्जरी में सर्जनों को फैलोशिप ट्रेनिंग दी जाएगी। कांफ्रेंस के आयोजक प्रो. रोहित पंडित ने बताया कि पहली बार राजधानी भोपाल में देश की सबसे बड़ी लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस एवं फैलोशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम होने जा रहा है। जिससे प्रदेश एवं देश के सर्जनों को लेप्रोस्कोपी, एन्डोस्कोपी एवं रोबोटिक सीखने का मौका मिलेगा। इस अवसर पर लेप्रोस्कोपिक सर्जनों द्वारा विभिन्न प्रकार के दूरबीन पद्धति से होने वाले ऑपरेशन पर लेक्चर दिया जाएगा।
हमीदिया अस्पताल में बच्चों की आंखों की जांच के लिए आई पोर्टेबल स्लीट लैंप मशीन
अब उठने बैठने में असमर्थ मरीजों व छोटे बच्चों की आंखों की जांच हो सकेगी। इसके लिए हमीदिया अस्पताल में 70 हजार की पोर्टेबल स्लीट लैंप नामक आई टेस्टर मशीन आई है। यह मशीन इतनी छोटी है कि इसे हाथ में पकड़ कर मरीज की आंखों की जांच की जा सकती है। इसके साथ ही लेटे हुए मरीज व 12 साल से छोटे बच्चों की भी आंख की जांच भी आसानी से हो सकेगी। मौजूदा समय में सरकारी अस्पतालों में जिन मशीनों का प्रयोग किया जाता है, वे सभी बड़ी मशीनें हैं। ऐसे में उसमें बच्चों को देखने में समस्या आती है, जिससे आंख की सही स्थिति का अंदाजा लगा पाना मुश्किल होता है। यहीं नहीं, बड़े सामने लगे चार्ट को पढ़कर यह आराम से बता देतें हैं कि उन्हें क्या नजर आ रहा है, क्या नहीं। मगर बच्चों में यह प्रक्रिया भी बेहद कठिन होती है। क्योंकि बच्चों के कंफ्यूज होने पर नेत्र की जांच कर रहे डॉक्टर भी कन्फ्यूज होने लगते हैं।