गुना मामला : कलेक्टर-SP पर आरोप, तो SDM कैसे करेंगे जांच..?

गुना मामले में सरकार की जांच के तरीके पर उठे सवाल। पढ़िए पूरी खबर-;

Update: 2020-07-17 15:36 GMT

भोपाल। गुना में दलित युवक की पिटाई मामले में सरकार ने फिर से राजगढ़ जिले की घटना की तरह ही मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं। यह जांच किसी एसडीएम या अपर कलेक्टर स्तर के अफसर से कराया जाना है। किंतु राज्य सरकार ने इस मामले में कार्रवाई आईजी, कलेक्टर व एसपी स्तर के अफसर पर भी की है। उक्त तीनों अफसरों को हटा दिया गया। सवाल यह है कि जब कार्रवाई उक्त अफसरों पर हुआ तो क्या उनके नीचे का कोई अफसर इनकी जांच कर सकेगा। 

गुना में स्थानीय पुलिस व प्रशासनिक अफसरों की मौजूदगी में दलित युवक की निर्मत पिटाई की गई। इसका वीडिया वायरल होने के बाद देश भर में हंगामा हुआ। सरकार ने हालांकि त्वरित निर्णय लेते हुए आईजी, एसपी, कलेक्टर को पद से हटा दिया। इसकी मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए गए। भोपाल से भी कुछ अफसरों को भेजकर जांच कराई जा रही है। इस मामले को लेकर देश भर में हंगामा मचा हुआ है। कांग्रेस मुखर हो गई है। जांच पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस पर हरिभूमि ने भी पड़ताल की। रिटायर्ड वरिष्ठ अधिकारियों से जानने की कोशिश की गई कि आखिर में इस तरह के मामलों में किसकी भूमिका है और जांच का तरीका कितना उचित है।

राजगढ़ की तरह गुना में भी जांच पर सवाल

राजगढ़ जिले में पिछले वर्ष तत्कालीन कलेक्टर निधि निवेदिता ने किसी मामले में प्रदर्शन कर रहे भाजपा नेता को थप्पड़ जड़ दिया था। भाजपाईयों पर पुलिस ने जमकर लाठियां भाजी थी। उस वक्त भाजपा काफी आक्रामक हुई और जगह-जगह धरना, प्रदर्शन हुए। हालांकि तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने कलेक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। सरकार पलटने के बाद शिवराज सरकार ने कलेक्टर को हटा दिया। उक्त मामले की जांच वहां के एसडीएम से कराई गई थी। सवाल यह उठा कि कोई निचले स्तर का अफसर आखिर अपने से वरिष्ठ अफसर की जांच कैसे कर सकता है? इसे लेकर सरकार व प्रशासन दोनों कटकरे में आ गए। अब एक बार फिर से उसी से मिलता जुलता मामला गुना में हुआ है। यहां भी सवाल उठ रहा है कि जब कार्रवाई आईजी, कलेक्टर, एसपी पर हुई तो जांच एसडीएम कैसे करेंगे?

सरकार के औचत्य पर सवाल उठना लाजिमी

पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा कहते हैं कि जब आईजी, कलेक्टर व एसपी को हटाने की कार्रवाई की गई। इसका सीधा से तात्पर्य है कि इन अफसरों का नियंत्रण स्थानीय स्तर पर पुलिस व प्रशासन पर नहीं था। इसकी वजह से घटना घटित हुई। ऐसे में उससे नीचे के किसी अफसर से जांच कराने का औचित्य समझ से परे है। इस मजिस्ट्रियल जांच का कोई खास मतलब नहीं रह जाता। कोई एसडीएम अपने से वरिष्ठ अफसर की जांच कैसे कर सकता है? इसे सरकारों को देखना चाहिए। राजगढ़ मामले में भी यही हुआ था। वहां की एसडीओपी ने कलेक्टर की जांच करके रिपोर्ट पीएचक्यू भेज दी थी। वरिष्ठ अफसरों को भी सोचना चाहिए कि इस तरह के किसी मामले में जांच प्रक्रिया के तहत कराएं। ऐसा नहीं हो कि जनता उनके गलत निर्णयों पर सवाल उठाए।

सरकार का कदम सही, पर निष्पक्ष जांच हो

कई और वरिष्ठ अफसरों ने इस मुद्दे पर कहा कि सरकार ने जिस तरह से त्वरित निर्णय लेकर कार्रवाई की है, सराहनीय है। पर कोशिश यह भी हो कि प्रक्रिया में कोई चूक नहीं हो। यह सही है कि 5 पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया है। पर मौके पर मौजूद वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए। पुलिस कर्मियों का निलंबन ही उचित नहीं है। दूसरी तरफ पर्दे के पीछे जो भी लोग हैं, खासकर भू माफियाओं के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। जो भी जांच हो, वह निष्पक्ष हो, ताकि किसी बेगुनाह को सजा नहीं हो। 

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