Indian Railways : हादसे रोकने के लिए रेलवे ने की नई पहल, दिए गए कई निर्देश
यात्री और माल को गंतव्य तक पहुंचाने वाले ट्रेन के ड्राइवर इन दिनों तनाव में हैं। रेलवे के कई प्रयासों के बाद भी उनका तनाव कम नहीं हुआ है। ओड़िशा में ट्रेन दुर्घटना के बाद एक बार फिर ट्रेन ड्राइवर के तनाव के कारकों की समीक्षा शुरू हो गई है।;
भोपाल। यात्री और माल को गंतव्य तक पहुंचाने वाले ट्रेन के ड्राइवर इन दिनों तनाव में हैं। रेलवे के कई प्रयासों के बाद भी उनका तनाव कम नहीं हुआ है। ओड़िशा में ट्रेन दुर्घटना के बाद एक बार फिर ट्रेन ड्राइवर के तनाव के कारकों की समीक्षा शुरू हो गई है। इसके लिए रेलवे, जोन व मंडल स्तर पर अधिकारी, लोको इंस्पेक्टर, रेल यूनियन से लेकर उनके परिजनों की भूमिका की समीक्षा में जुट गया है। जोनल स्तर पर रेलवे पायलट से 12 घंटे से अधिक काम नहीं लेने के संबंध में भी दिशा-निर्देश दिए हैं।
तनाव कम करने की समीक्षा
पांच साल पहले भी रेलवे ने ड्राइवरों के तनाव को कम करने समीक्षा की। परिजनों को बुलाकर काउंसलिंग की गई। इस दौरान रेल ड्राइवरों के पिता, माता, पत्नी, बहन, भाई और बच्चों ने रेलवे के अधिकारियों की जमकर क्लास ली। वे ड्राइवर को तय घंटे से अधिक काम नहीं करने के पक्ष में थे। रेलवे की ओर से लगातार 11 की वजह 14-15 घंटे काम लिया जाता रहा। जिससे परिजनों लगातार अपनी नाराजगी जताते रहे। इसके बाद रेलवे ने काउंसलिंग बंद कर दी। फिर रेलवे ने ड्राइवरों के तनाव को कम करने के लिए कई कदम उठा रहा है।
हर साल टारगेट बढ़ा, ड्राइवर नहीं
रेलवे कर्मचारी संगठनों का कहना है कि ट्रेन के ड्राइवर के तनाव की मुख्य वजह उनके काम के घंटे हैं। मालगाड़ी के ड्राइवर को 11 घंटे काम करना है। लेकिन पश्चिम मध्य रेलवे के भोपाल,जबलपुर, और कोटा मंडल में उनसे 14 से 15 घंटे लगातार काम कराया जा रहा है। इधर मेल ड्राइवर को रेलवे बोर्ड के तय नियम के मुताबिक 8 घंटे काम करना है, लेकिन उनसे 11 से 12 घंटे काम कराया जा रहा है।
स्पीड, सिग्नल और तनाव, तीनों बढ़ा
भोपाल मंडल में लगभग 800 के करीब ट्रेन ड्राइवर हैं। जो पोस्ट के हिसाब से कम है। पश्चिम मध्य रेलवे मजदूर संघ के सचिव डीपी अग्रवाल बताते हैं कि एक ड्राइवर लगातार 14 से 15 घंटे काम करता है।
सीपीआरओ पमरे जोन ,राहुल श्रीवास्तव ने बताया कि रेलवे की ओर से ट्रेन के ड्राइवरों के तनाव काम करने के लिए समय-समय पर काउंसलिंग करता है। उनके परिजनों के साथ ही काउंसलिंग की जाती है। इस दौरान उनकी समस्याओं को सुनते है।