आईटी ने 10 महीनों बाद भी गृह विभाग को नहीं भेजी रेड की रिपोर्ट, RTI में बड़ा खुलासा

लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अप्रैल 2019 में मध्यप्रदेश और दिल्ली राज्यों में आयकर विभाग द्वारा 52 जगहों पर छापेमारी की गई थी, जिसमें लगभग 281 करोड़ रूपये के अवैध लेन-देन के सबूत मिले थे। आयकर विभाग द्वारा मारे गये छापों में कुछ पूर्व मंत्रियों, 64 तत्कालीन विधायकों, 3 पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों सहित कुछ बड़े व्यापारियों के नाम भी आये थे। पढ़िए पूरी खबर-;

Update: 2021-02-15 16:57 GMT

जबलपुर। मध्यप्रदेश आयकर विभाग से मांगी गई आरटीआई की जानकारी में एक ऐसी रिपोर्ट का खुलासा हुआ है, जो हैरान कर देने वाला है। आरटीआई के माध्यम से खुलासा हुआ है कि आयकर विभाग की टीम ने आम चुनाव में पैसे के लेन-देन संबंधी अप्रेजल रिपोर्ट मध्यप्रदेश शासन को आज तक नहीं भेजी गई है, जबकि इस मामले में आयकर विभाग द्वारा मारे गये छापों में कुछ पूर्व मंत्रियों, 64 तत्कालीन विधायकों, 3 पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों सहित कुछ बड़े व्यापारियों के नाम भी आये थे।

आयकर विभाग द्वारा सम्पूर्ण मामले जांच के लिए मध्यप्रदेश सरकार को सुपुर्द किये जाने की सूचनाऐं भी उजागर हुई थी लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी अभी तक कोई जांच शुरू नहीं हुई है। नगर की समाजसेवी संस्था नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच जबलपुर के संयोजक मनीष शर्मा ने बताया कि लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अप्रैल 2019 में मध्यप्रदेश और दिल्ली राज्यों में आयकर विभाग द्वारा 52 जगहों पर छापेमारी की गई थी, जिसमें लगभग 281 करोड़ रूपये के अवैध लेन-देन के सबूत मिले थे। दिल्ली में 18 करोड़, भोपाल में 40.50 करोड़, जबलपुर में 15 करोड़ रूपये जब्त किये गये थे।

केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा समस्त जानकारी चुनाव आयोग तथा मध्यप्रदेश सरकार को अप्रेजल रिपोर्ट के रूप में प्रेषित की गई है। श्री शर्मा ने बताया कि आम चुनाव में पैसा लेन-देन संबंधी आयकर विभाग द्वारा कोई भी अप्रेजल रिपोर्ट गृह विभाग को प्रेषित नहीं की गई इससे लगता है कि मामले को दबाया जा रहा है।

बता दें मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबियों पर छापामार कार्रवाई करते हुए आयकर विभाग ने 281 करोड़ रुपए के बेहिसाब लेन-देन का खुलासा किया था। आयकर विभाग की दिल्ली टीम ने भोपाल, इंदौर, नई दिल्ली और गोवा के 52 ठिकानों पर छापे मारे थे। इस टीम में 300 से अधिक अधिकारी शामिल थे। इसमें स्थानीय पुलिस की बजाए सीआरपीएफ की मदद ली गई थी।




 

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