'लोकभाषा को जीवित रखने के लिए आपसी संवाद बेहद जरूरी'
साहित्यकार मीना गोदरे संपादित कृति के विमोचन के मौके पर साहित्यकारों ने व्यक्त की चिंताएं। पढ़िए पूरी खबर-;
इंदौर। लोकगीत उसे कहते हैं, जो शताब्दियों से गाए जा रहे हैं, जो जनमानस के अंतर्मन में रच बस गए हैं। उनको किसने लिखा हमें नहीं मालूम। यह बात सुप्रसिद्ध कवि डॉ.सरोज कुमार ने अवनि सृजन कला मंच द्वारा हिन्दी साहित्य समिति में आयोजित नवलोकांचल गीत के लोकार्पण अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि लोकभाषा को जीवित रखने के लिए आपसी संवाद, व्याख्यान और परिचर्चाएँ जरूरी हैं। कार्यक्रम की शुरूआत सर्वप्रथम डॉ. चंद्रा सायता ने शारदे वंदना से की।
बतौर मुख्य वक्ता ख्यात प्लास्टिक सर्जन डॉ. निशांत खरे ने कहा कि बोलियों के मरने से मात्र भाषा ही खत्म नहीं होती, बचपन मरता है, संस्कृति मरती है। बोलियाँ संस्कृति की संवाहक हैं। संस्कृति को जीवित रखना है तो बोलियों को जीवित रखना होगा। मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि लोक बोलियां नदियों की तरह होती हैं । साथ-साथ अपने संस्कार भी बहाती चली जाती हैं। लोक बोलियों को जीवित रखने के लिए ऐसे प्रयास होते रहना चाहिए। उन्होंने पुस्तक की एक पंक्ति को इंगित कराया कि धुनें पारंपरिक हो सकती हैं, पर गीत सभी मौलिक हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी ने भाषाओं की हो रही दुर्दशा से आहत अपने अंतर्मन की पीड़ा को अभिव्यक्त करते हुए मीना गोदरे को दी गई शुभकामनाओं को दोहराया कि आज जब बड़ी-बड़ी भाषाएं समृद्ध होने की बजाय अपना अस्तित्व खो रही हैं, तब बोलियों और भाषाओं को सम्मान देने का मीना जी का प्रयास जहां एक और जोखिम भरा है, वहीं भाषाई एकता को संजीवनी देने का काम करेगा।
अध्यक्षीय उद्बोधन में भोज शोध संस्थान धार के निदेशक डॉ. दीपेन्द्र शर्मा ने कहा कि विविधता ही हमारी शक्ति है। इसी तरह भाषाएँ, बोलियाँ खत्म होती रही तो हम बहुत कमजोर हो जाएंगे। बोलियों के संरक्षण के लिए सार्थक प्रयास जरूरी हैं। बदलते परिवेश में बोलियां भी संक्रमण का शिकार हो सकती थीं, यदि आप जैसे लेखक, विचारक और संरक्षक ना होते। आपका प्रयास स्तुत्य है। यह प्रकाशन प्राण तत्व हो, शुभ भाव व मंगलकारी, मंगलकामनाएं हैं।
कृति संपादक मीना गोदरे ने जानकारी देते हुए बताया कि कृति में विभिन्न क्षेत्रों की 50 बोलियों के स्वरचित मौलिक कविताओं एवं गीतों को संकलित किया गया है। इस पुस्तक को निकालने का उद्देश्य लुप्त होती बोलियों का संरक्षण और उनको जीवंत रखना है, क्योंकि इनमें हमारी लोक चेतना परंपराएँ और संस्कृति विद्यमान हैं। पाठकों के लिए पुस्तक को सरल बनाने के लिए रचनाओं के साथ संदर्भ और शब्दार्थ दिए गए हैं। चार्ट और तालिका बनाई है। उसे छह खंडों में विभाजित किया है, जिसमें हिंदी की पांच उप भाषाएँ 18 बोलियाँ और 10 उप बोलियाँ समाहित हैं। इसके साथ ही एक खंड में चार अन्य भाषाओं की 10 बोलियों भी को लिया गया है। इस तरह इस पुस्तक में कुल 50 बोलियां लोकगीत और कविताओं के रूप में संकलित की गई हैं। इस पुस्तक में हिंदी और इन बोलियों का तारतम्य बताने वाले विचार 10 विचार भी कवर पेज के अंदर दिये गए हैं।
इस अवसर पर डॉ आदित्य चतुर्वेदी भोपाल ने बुंदेली एवं साधना श्रीवास्तव ने मालवी गीत की प्रस्तुति देकर सभी का मन मोह लिया। मंचासीन अतिथियों के साथ संरक्षक मुकेश गोदरे ने सभी रचनाकारों को सम्मान पत्र प्रदान किया। प्रभा जैन, डॉ ज्योति सिंह, अचला गुप्ता, मनोरमा जोशी, आशा जाकड़, डॉ अंजुल कंसल, वंदना अर्गल देवास, प्रतिभा चंद्र देवास, हिमानी भट्ट, हेमलता शर्मा, रजनीश दवे, दिनेश शर्मा, रमेश प्रसाद शर्मा, रशीद अहम शेख, अनिल ओझा, मुकेश इन्दौरी, डॉ अंशु खरे आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का सुव्यवस्थित संचालन अर्पणा तिवारी व मुकेश इंदौरी ने किया। आभार आशा जाखड़ ने माना।