राजधानी को इन पैरामीटर्स पर उतरना होगा खरा, नदियों को फिर से जिंदा करना चुनौती
वॉटर प्लस कैटेगिरी में भोपाल, सिजीटन फीडबैक कैटेगिरी में अच्छी परफार्मेंस, 500 नंबर मिले;
भोपाल। स्वच्छता सर्वेक्षण में राजधानी भोपाल की रैंकिंग सुधरने की पूरी संभावनाएं जताई जा रही थी। लेकिन भोपाल केवल अपनी पिछली पोजिशन ही बचाने में कामयाब हो पाया। सर्विस लेवल प्रोगेस, सर्टिफिकेशन और सिजीटन फीडबैक कैटेगिरी में अच्छी परफार्मेंस रही। हालांकि वॉटर प्लस कैटेगिरी में भोपाल पिछड़ गया। वॉटर प्लस का दर्जा पाने में नाकामी और कचरा मुक्त शहर की स्टार रेटिंग में पिछड़ने का खामियाजा भोपाल को भुगतना पड़ा है। इन दो कारणों से स्वच्छ सर्वे में शहर की रैैंकिंग में कोई सुधार नहीं हो पाया। जबकि इंदौर ने इन दोनों कैटेगरी में ही बाजी मारी। वॉटर प्लस का दर्जा पाने वाला देश का पहला और फाइव स्टार वाला प्रदेश का पहला शहर बनने में कामयाब रहा। वॉटर प्लस का दर्जा पाने वाले शहर के लिए सर्वे में 700 अंक तय किए गए थे। भोपाल को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ डबल प्लस) का ही दर्जा मिल पाया। इसके लिए 500 नंबर मिले। वहीं फाइव स्टार रेटिंग वाले शहर इंदौर को 500 नंबर मिले। राजधानी को 3 स्टार रेटिंग के लिए 300 अंक ही मिले। ऐसे में भोपाल सीधे तौर पर इंदौर से 400 नंबर से पिछड़ गया। यहां बता दें कि इस बार भी स्वच्छ सर्वे 6000 अंकों का था। सर्वे 2020 में भोपाल को 5066.31 अंक मिले थे। इस बार नंबर भी कम मिले और 4783.53 अंकों से संतोष करना पड़ा है।
सीवेज के पानी का ट्रीटमेंट न होना: इंदौर के मुकाबले भोपाल सीवेज के पानी को ट्रीट कर उसे उपयोग में लाने में काफी पीछे रहा। राजधानी भोपाल में बीते सालों में दस से ज्यादा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण किया गया। बावजूद उसके शहर के जलस्त्रोतों में सीवेज के पानी की मिलने से नहीं रोका जा सका है। निगम के झील प्रकोष्ठ के प्रभारी संतोष गुप्ता का कहना है कि, सीवेज के पानी को ट्रीट किया जा रहा है। जलस्त्रोतों में मिलने से रोकने के लिए और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का निर्माण करना होगा।
इंदौर: इंदौर में रोजाना तीन सौ एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) सीवेज का पानी निकलना है। जिसमें इंदौर नगर निगम 110 एमएलडी सीवेज के पानी को ट्रीट कर बगीचों, खेतों और निर्माण कार्यों में इसका उपयोग किया जा रहा है। सीवेज के ट्रीटमेंट के बाद निकलने वाले स्लज से इंदौर नगर निगम को हर साल दो करोड़ रुपए की कमाई हो रही है।
वेस्ट कंपोस्ट: लगभग 23 लाख की आबादी वाले शहर भोपाल में रोजाना आठ सौ टन गीला और सूखा कचरा निकलता है। ऐसे में राजधानी भोपाल में अभी सौ टन ही कचरा कंपोस्ट कर खाद्य व अन्य सामान बनाया जा रहा है। अपर आयुक्त एमपी सिंह का कहना है कि, आदमपुर खंती में सीएनजी प्लांट का निर्माण तेजी से हो रहा है। जल्द ही हम कचरे से सीएनजी गैस भी निकाल सकेंगे।
इंदौर: लगभग 35 लाख की आबादी वाले इंदौर शहर में रोजाना 1200 टन गीला व सूखा कचरा निकलता है। इसमें से इंदौर नगर निगम कचरे से गैस निकालकर हर साल बीस करोड़ रुपए की कमाई कर रहा है।
नदियों को पुर्नजीवित: राजधानी भोपाल में बहने वाली कलियासोत और कोलांस नदीं है। इसमें से कलियासोत में नदीं के नाम पर सीवेज का पानी बह रहा है। इसके साथ ही कोलांस के बरसाती नदी होने से सीवेज का पानी सीधे तौर पर बड़े तालाब में जाकर मिल रहा है। इसके साथ ही शहर के कई बरसाती नालें भी सीवेज से पटे पड़े है। निगम कमिश्नर वीएस चौधरी का कहना है कि, हमने पिछली बार जोन-13 में बरसाती नाले को साफ कर बैडमिंटन खेला था। ऐसे ही शहर के अन्य बरसाती नालों पर भी सीवेज रोका जाएगा।
इंदौर: इंदौर शहर में बहने वाली कान्ह-सरस्वती नदीं में मिलने वाले 25 से ज्याजा छोटे बड़े नालों का पानी रोक, नतीजन अब इन नदियों में सीवेज का ट्रीट किया हुआ पानी बहता है।
कचरा कलेक्शन: करीब 6 हजार सफाई कर्मचारी राजधानी को चमकाने का काम करते है। इसके साथ ही आठ सौ गाड़ियों से रोजाना शहर में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन किया जाता है। लेकिन लगातार मॉनिटरिंग न होने से शहर के स्लम एरियों से रोजाना कचरा नहीं उठाया जा रहा है। नतीजन शहर के बीस फीसदी इलाकों से कचरा नहीं उठ पाता है। जिससे कई इलाकों में कचरा आसानी से देखा जा सकता है। तीन समय की सफाई पर भी शहर के प्रमुख बाजारों पर ही फोकस है।
इंदौर: इंदौर नगर निगम के आठ हजार कर्मचारी शहर को चमकाने के लिए सुबह चार बजह से जुट जाते है। इसके साथ ही एक हजार से ज्यादा वाहनों से शहर के हर घर से गीला व सूखा कचरा अलग अलग कलेक्टर किया जा रहा है।
जागरुकता: स्वच्छता से राजधानीवासियों को जोड़ने में भोपाल नगर निगम पूरी तरह से फैल साबित हो रही है। हांलाकि पिछली बार के मुकाबले इस बार सिटीजन फीडबैक अच्छा रहा। लेकिन बावजूद सफाई से आम लोग अब तक नहीं जुड़ पाए। उपायुक्त हर्षित तिवारी का कहना है कि, सफाई को लेकर पुराने भोपाल में ज्यादा समस्या है। इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ा जाए। इसके लिए कार्यक्रम चलाए जाएंगे। स्वच्छता में पब्लिक की पार्टनशिप होना बहुत ही जरुरी है।
इंदौर: सफाई को लेकर आम शहरी पूरी तरह से सजग। स्वच्छता को लेकर सिटिजन फीडबैक देने के लिए तैयार रहते है। अगर कोई गंदगी करता दिखे तो, उसे टोकते हुए सफाई तक करवाते है।
जीरो वेस्ट वार्ड: नए पैरामीटर्स के तहत इस बार जीरो वेस्ट वार्ड बनाए जाने थे। लेकिन राजधानी के 85 वार्डों में से एक भी वार्ड को जीरो वेस्ट वार्ड नहीं बनाया जा सका है। इसको निगम अधिकारियों ने अब अपनी प्लानिंग में शामिल किया है। स्वास्थ्य अधिकारी राजीव सक्सेना का कहना है कि, जीरो वेस्ट वार्ड के लिए कचरे को उसी वार्ड में खतम किया जाएगा।
इंदौर: इंदौर नगर निगम ने अपने वार्ड के 600 घरों से निकलने वाले कचरे को वहीं पर खत्म कर काम करने योग्य सामान बनाकर वहीं पर इसका उपयोग भी कर लिया जाता है।