राजस्थान में पुजारी की मौत के बाद गरमाई राजनीति, सीएम गहलोत के बयान पर पूनिया ने किया पलटवार

राजस्थान के करौली में भूमि विवाद को लेकर एक पुजारी को जिंदा जलाने के मामले को लेकर राजनीति गरमा गई है। भले ही मृतक के परिवार ने अपनी मांगें पूरी होने के बाद शव का अंतिम संस्कार कर दिया है लेकिन राज्य में इस मामले को लेकर नेता एक दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं।;

Update: 2020-10-12 12:29 GMT

जयपुर। राजस्थान के करौली में भूमि विवाद को लेकर एक पुजारी को जिंदा जलाने के मामले को लेकर राजनीति गरमा गई है। भले ही मृतक के परिवार ने अपनी मांगें पूरी होने के बाद शव का अंतिम संस्कार कर दिया है लेकिन राज्य में इस मामले को लेकर नेता एक दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं। इस मामले में सीएम अशोक गहलोत के बयान पर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां ने पलटवार किया है।

पूनियां ने कहा कि जब हम देश की बात करते हैं तो सीएम को सांप्रदायिकता नजर आती है। सब जानते हैं कि इस देश में पक्षपात जातिवाद की बातें किसने की। मुख्यमंत्री का बयान दुर्भाग्यपूर्ण था। यह किसी संप्रदाय और जाति का झगड़ा बिल्कुल नहीं था, क्योंकि पूरा गांव की पुजारी परिवार के साथ संवेदनाएं हैं। सरकार अपनी नाकामी को ढकने के लिए और अपनी अकर्मण्यता को छुपाने के लिए यह कह रही है।

उन्होंने कहा कि राजस्थान शांत प्रदेश है। मगर कानून व्यवस्था को बचाने के लिए मुख्यमंत्री के पास कोई उपाय नहीं है। अपराधी बेलगाम हो जाए और कोई भी दबंग व्यक्ति किसी निर्बल व्यक्ति को इस तरीके से प्रताड़ित करता है तो यह सरकार की नाकामी है। मुख्यमंत्री ने अपराध को रोकने के बजाय इस तरीके का बयान देकर दूसरा बड़ा अपराध किया है। आपको बता दें कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सपोटरा दो परिवारों के बीच के विवाद को भाजपा ने जातीय विद्वेष का रूप देने का निंदनीय प्रयास किया है। जिसकी वजह से राजस्थान की छवि अनावश्यक रूप से धूमिल हुई है।

मुख्यमंत्री ने ये दिया था बयान

पुजारी की हत्या मामले में मुख्यमंत्री ने कहा था कि यह निंदनीय है कि बीजेपी ने दो परिवारों के बीच भूमि विवाद को लेकर हुई घटना को जातीय संघर्ष का नाम देकर कुस्तित प्रयास किया। गहलोत ने कहा कि इससे राजस्थान की छवि धूमिल हुई है। मुख्यमंत्री ने एक बयान में कहा कि 6 अक्टूबर को भूमि विवाद को लेकर गांव के लोगों ने पंचायत भी की थी जिसमें मीणा समाज का बहुमत था लेकिन बहुसंख्यक होने के बाद भी भूमि संबंध में बाबूलाल वैष्णव और राधागोपालजी मंदिर के हक में फैसला किया गया था।

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