20 साल की सजा काटने के बाद निर्दोष निकला रेप का आरोपी, योगी-अखिलेश सरकारों की लापरवाही आई सामने

इलाहाबाद हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी से योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव दोनों ही सरकारों की लापरवाही उजागर हुई है। यानि कि दोनों की सरकारों ने राज्य की जेलों में बंद कैदियों की रिहाई के संबंध में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं किया। इस लापरवाही के चलते एक रेप आरोपी को 20 वर्षों तक बंद रहना पड़ गया। अब आरोपी रेप मामले में निर्दोष भी करार दिया गया है।;

Update: 2021-02-23 14:31 GMT

आजीवन कारावास की सजा (life sentence) भुगत रहे कैदियों को 14 साल बाद रिहा करने की शक्तियों का राज्य सरकार (state government) के द्वारा इस्तेमाल नहीं किये जाने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने तल्ख टिप्पणी की है। यूपी (UP) की राज्य सरकारों ने सजा के 14 साल बीते ने के बाद भी रिहाई के कानून के इस्तेमाल को लेकर विचार नहीं किया। इसके अलावा जेल से दाखिल अपील भी पर 16 वर्षों तक कोई ध्यान नहीं दिया गया। यह मामला भी उस वक्त सामने आया, जब विधिक सेवा समिति के एक वकील ने 20 वर्ष तक जेल में कैद रहने के आधार पर सुनवाई की अर्जी दाखिल कर दी। इसके बाद अदालत ने (Court) दुष्कर्म का आरोप साबित नहीं होने पर रेप आरोपी (Rape Accused) को तुरत रिहा करने का आदेश सुना दिया। साथ ही अदालत ने सरकारी रवैये (Official attitude) के प्रति अफसोस जाहिर किया।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ललितपुर के विष्णु की जेल अपील को स्वीकार करते हुए ये आदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति डॉ केजे ठाकर एवं न्यायमूर्ति गौतम चौधरी दिया है। प्रदेश शासन के विधि सचिव को भी हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि वो सभी जिलों के जिलाधिकारियो से 10 से 14 साल की सजा भुगत चुके आजीवन कारावास के कैदियों की रिहाई संस्तुति के लिए राज्य सरकार को भेजने को कहें। चाहे सजा के खिलाफ अपील विचाराधीन ही क्यों ना हो। इसके अलावा मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में निबंधक लिस्टिंग को ऐसी सभी अपील खासतौर पर जेल अपीलों को सुनवाई के लिए कोर्ट में भेजें। जिन मामलों में कैदी 14 साल से अधिक समय से जेल में बंदी के तौर पर रह चुके हैं।

विष्णु (16 वर्ष) के खिलाफ आरोप था कि वो 16 सितंबर 2000 को दिन में एक दलित महिला को झाड़ियों में खींचकर ले गया। इसके बाद उसने महिला के साथ रेप किया। जो उस वक्त घर से खेत के लिए जा रही थी। मामले के संबंध में संबंधित सीओ ने विवेचना करके चार्जशीट दाखिल की। आरोपी बिष्णु के खिलाफ चले मुकदमे में सत्र न्यायालय ने उसे रेप के दोष में 10 वर्ष व एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध में उम्र कैद की सजा सुनाई। विष्णू साल 2000 से ही जेल में है। इस सजा के दौरान आरोपी विष्णू ने वो समय भी पूरा कर लिया था। जोकि 14 साल की सजा अवधि पूरी करने के बाद आजीवन कारावास के कैदियों को रिहाई कर दिया जाता है। लेकिन विष्णू के प्रति इस कानून का पालन नहीं किया गया। क्योंकि विष्णू ने 14 साल की कैद से भी 6 वर्ष ज्यादा जेल में बंद रहते हुए गुजार दिए। इस दौरान यूपी में सपा की अखिलेश सरकार भी रही। इसके बाद अब यूपी में भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार चल रही है।

ललितपुर जेल अपील डिफेक्टिव दाखिल की गई। साथ ही 20 वर्ष जेल में बंद होने के आधार पर जल्द सुनवाई की अर्जी भी दी गई। जिसपर हाईकोर्ट ने देखा कि रेप का आरोप साबित ही नहीं हुआ। मेडिकल जांच में जबरदस्ती का कोई सबूत नहीं मिला है। उस वक्त पीड़ित महिला पांच महीनों की गर्भवती थी। ऐसे कोई चिन्ह नहीं मिला, जिससे ये कहा जा सके कि महिला से जबरदस्ती की गई। इसके अलावा रेप मामले में रिपोर्ट भी पति व ससुर ने 3 दिनों के बाद दर्ज काराई थी। वहीं पीड़ित महिला ने इस बात को अपने बयान में स्वीकार भी किया है। हाईकोर्ट ने माना कि सत्र न्यायालय ने सबूतों पर विचार किए बगैर ही मामले के संबंध में गलत फैसला सुना दिया।

गौरतलब हो कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 और 433 में राज्य और केंद्र सरकार को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वो 10 से 14 साल की सजा पूरी करने के बाद आरोपी की रिहाई पर विचार करें। इसके अलावा राज्यपाल को अनुच्छेद 161 में 14 वर्ष कैद अवधि करने के बाद रिहा करने की शक्ति दी गई है। रेप आरोपी विष्णू ने 20 वर्ष जेल में गुजारे। लेकिन ये बात समझ से दूर है कि अखिलेश या योगी किसी की भी सरकार ने इसके बारे में विचार क्यों नहीं किया। दूसरी ओर यूपी की सरकारों की इस लापरवाही को अदालत ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।

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