पिता और दादी की राह पर चल रहे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया, 53 साल बाद दोहराया इतिहास

ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता की आज 75वीं जयंती है। आज ही के दिन उनका इस्तीफा देना इस बात की ओर इशारा करता है कि वो अपने पिता के नक्शेकदम पर चल रहे हैं।;

Update: 2020-03-10 10:10 GMT

मध्यप्रदेश के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया है। जिससे पूरे देश में सियासी हलचल मच गई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस्तीफा देकर 53 साल पुराने इतिहास को दोहराया है। ठीक 53 साल पहले दादी विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस की सरकार गिरायी थी। इसके बाद अब कांग्रेस सरकार को हटाने की ज्योतिरादित्य सिंधिया ने नींव रखी हैं। वहीं उनके पिता और दादी ने भी कभी कांग्रेस का साथ छोड़ा थी। जिसके कारण 'सिंधिया परिवार गद्दार है' ट्विटर पर ट्रेंड हो रहा है।

ये है मामला

आज ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया की 75वीं जयंती है। आज ही के दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस पद से इस्तीफा देना इस बात की पुष्टि करता है कि वो अपने पिता की राह पर चलने की कोशिश कर रहे हैं।

जिससे देश भर में उनके परिवार को गद्दार घोषित करने के लिए 'सिंधिया परिवार गद्दार है' का ट्रेंड शुरू हो गया है। जिसमें यूजर उनके खिलाफ कई कमेंट करते हुए नजर आए। एक ने लिखा कि 1857 में बिके थे गोरों से, 1967 में बिके थे चोरों से और 2020 में बिके हैं गिद्धों से।

एक ने लिखा कि लोगों को ये बताने के लिए धन्यवाद कि आपके परिवार का इतिहास क्या है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के परिवार का इतिहास

ज्योतिरादित्य सिंधिया के परिवार का इतिहास भी ऐसा ही रहा है। उनके पिता और दादी ने भी कांग्रेस का दामन छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वाईन कर ली थी। 1967 में मध्यप्रदेश में डीपी मिश्रा की सरकार थी। उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयराजे सिंधिया कांग्रेस के साथ थी। लेकिन कांग्रेस से अंधरुनी अनबन के कारण उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़कर जनसंघ पार्टी का हाथ थाम लिया था। लोकसभा चुनाव में वो जनसंघ पार्टी से चुनाव भी जीती थी।

वहीं 1993 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया ने भी कांग्रेस का साथ छोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाई थी। लेकिन बाद में उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वो कांग्रेस में फिर से लौट आए थे।

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने क्यों दिया इस्तीफा

रिपोर्ट के अनुसार 2018 विधानसभा चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री बनना था। लेकिन वो बन न सके। फिर उन्हें इच्छा थी कि कांग्रेस पार्टी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी। लेकिन ऐसा भी नहीं हो सका। फिर उन्हें लगा कि प्रदेश अध्यक्ष न सही, कांग्रेस उन्हें राज्यसभा तो जरुर भेजेगी। लेकिन उनकी ये ख्वाहिश भी पूरी न हो सकी।

दिग्विजय सिंह के द्वारा बार-बार अटकलें लगाने के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया का कोई भी सपना पूरा नहीं हो सका। जिसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी नेताओं से संपर्क बढ़ाने शुरू कर दिए। 21 जनवरी को शिवराज सिंह चौहान से भी उनकी एक घंटे तक वार्ता चली थी। अंत में आज वो दिन आ ही गया जब सिंधिया ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया।

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