साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले दो राजस्थानी साहित्यकारों की कहानी

बीकानेर के नंदकिशोर आचार्य हिंदी भाषा में और हनुमानगढ़ के रामस्वरूप किसान को राजस्थानी भाषा में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।;

Update: 2019-12-19 10:15 GMT

साहित्य अकादमी ने बुधवार को 23 भाषाओं में पुरस्कार देने की घोषणा की है। जिसमें पहली बार हिंदी भाषा में राजस्थान के साहित्यकार का भी नाम शामिल किया गया है। जहां बीकानेर के नंदकिशोर आचार्य को हिंदी भाषा में काव्य 'छीलते हुए अपने' को तथा रामस्वरूप को राजस्थानी भाषा में 'बारीक बात' के लिए ये पुरस्कार दिया जाएगा। 1955 से शुरू इस पुरस्कार को पहली बार किसी राजस्थानी ने हिंदी भाषा में हासिल किया है।

जानिए साहित्यकार डा. नंदकिशोर आचार्य और रामस्वरूप किसान की कहानी

75 वर्षीय डा. नंदकिशोर आचार्य का जन्म 31 अगस्त 1985 को बीकानेर में हुआ। वह हिन्दी भाषा के सुप्रसिद्ध चर्चित साहित्याकार के रूप में जाना जाता है। उनके प्रशंसक काव्य के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। हिंदी भाषा में 'छीलते हुए अपने' काव्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार का गौरव हासिल होगा, जो साल 2013 में प्रकाशित हुआ था। वहीं गांधी पर लिखा उनका नाटक बापू और मानवाधिकार के आयाम पर लिखे पुस्तकें भी काफी प्रशंसित में रही है। इससे पहले उन्हें मीरा, बिहारी, भुवालका, भुवनेश्वर, केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। डा. नंदकिशोर आचार्य की यह कविता 'बुरा तो नहीं मानोगे, यदि मुझे अब तुम्हारी बांसुरी बने रहना स्वीकार नहीं' पूरे हिंदी जगत का ध्यान खींचकर हिंदी के साहित्य पटल पर अपनी खास छवि बनाई थी। वह एक समुद्र था, शब्द भूले हुए, आती है मृत्यु (कविता संग्रह) उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।

65 वर्षीय साहित्याकार रामस्वरूप किसान का जन्म 14 अगस्त 1952 को हनुमानगढ़ जिले के परलीका गांव में हुआ। उनकी चर्चा वर्तमान दौर के प्रमुख कहानीकारों में होती है। इनकी अब तक एक दर्जन से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हाडाखोड़ी, तीखी धार के बाद तीसरा कहानी संग्रह 'बारीक बात' है, जिसके के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया है। इससे पहले भी कहानियों की किताब पर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर का मुरलीधर व्यास 'राजस्थानी'कथा और कथा-दिल्ली का कथा पुरस्कार सहित साल 2002 में अनेक पुस्कारों से सम्मानित किए जा चुके हैं। साथ ही कहानी 'दलाल' को नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं की 11 सर्वश्रेष्ठ कहानियों में शामिल किया गया है। उनकी प्रमुख बात हैं कि पिछले बीस वर्षों से रामस्वरूप किसान खेत में काम करने के साथ कविता-कहानियां का भी उपजाऊ किया करते है। 

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