Birth anniversary: दिवंगत डिंको सिंह जिन्होंने भारत को दिलाया था मुक्केबाजी में Gold Medal
मुक्केबाजी में भारत को 1998 में एशियाई गेम्स में गोल्ड दिलाने वाले बॉक्सर डिंको सिंह की आज 42वीं जयंती है।;
खेल। मुक्केबाजी में भारत को 1998 में एशियाई गेम्स (1998 Asian games) में गोल्ड दिलाने वाले डिंको सिंह (Dingko Singh) की आज 42वीं जयंती है। 1 जनवरी 1979 को मणिपुर (Manipur) में जन्में डिंको सिंह आज हमारे बीच नहीं हैं, इसी साल 10 जून 2021 को महज 41 साल में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था। डिंको सिंह ने कई मौकों पर देश का नाम रौशन किया है।
लेकिन हमारे देश में कम ही लोग हैं जो डिंको सिंह को जानते हैं। खेलों में उनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है। सिर्फ एशियाई खेल ही नहीं बल्कि कई इवेंट्स में उन्होंने देश को मुक्केबाजी में एक नई पहचान दिलाई है।
मणिपुर के एक छोटे से गांव सेक्टा के एक गरीब घर में पैदा हुए डिंको सिंह ने अपना बचपन गरीबी और मुश्किलों में गुजारा। उन्हें बचपन से ही संघर्ष का ज्ञान था, उनका पालन पोषण एक अनाथालय में हुआ था।
डिंको सिंह का बॉक्सर बनने तक का सफर
काफी मेहनत के बाद एक समय ऐसा आया जब भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा एक स्पेशल स्कीम की शुरुआत की थी। इस दौरान इस योजना के प्रशिक्षकों की नजर डिंको सिंह पर पड़ी, उन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें प्रशिक्षित भी किया।
मेजर ओपी भाटिया की देख रेख में डिंको सिंह ने प्रशिक्षण लिया। इसके बाद ओपी भाटिया को ही बाद में भारतीय खेल प्राधिकरण की टीम का कार्यकारी निदेशक बनाया गया था। 1989 में महज 10 साल उम्र में डिंको ने अंबाला में जूनियर राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप को जीत कर खुद को साबित किया।
कई पुरस्कारों से नवाजा गया
फिर साल 1997 के दौरान पहली बार डिंको सिंह ने इंटरनेशनल मुक्केबाजी में कदम रखा और बैंकॉक और थाईलैंड में किंग्स कप जीतकर देश का नाम रोशन किया। उस समय डिंको सिंह की जीत पर उन्हें इस प्रतियोगिता का सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज भी घोषित किया गया था। 1998 के दौरान बैंकॉक एशियाई गेम्स में उन्होंने ने मुक्केबाजी में ना सिर्फ हिस्सा लिया बल्कि इस टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीतकर पूरी दुनिया में अपना जीत का पताका फहराया। वहीं उसी साल 1998 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया जबकि साल 2013 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार भी दिया गया था।