भारतीय हॉकी टीम ने आज ही के दिन ओलंपिक में अंतिम स्वर्ण पदक हासिल किया
भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ओलंपिक में अपना अंतिम स्वर्ण पदक 29 जुलाई 1980 में आज से 40 वर्ष पहले हासिल किया था। जब से आज तक हमें नौ वें गोल्ड मेडल का इंतजार है। हॉकी टीम ने ओलंपिक 2020 के लिए क्वालिफाई किया है। पर कोरोना महामारी की वजह से 2020 ओलंपिक का आयोजन एक साल के लिए टल गया है। इसका आयोजन 24 जुलाई से नौ अगस्त के बीच जापान की राजधानी टोक्यो में होना था। अब यह आयोजन 23 जुलाई 2021 से 08 अगस्त 2021 के बीच होगा।;
भारतीय पुरुष हॉकी टीम जापान की राजधानी टोक्यो में एक साल बाद होने वाले ओलंपिक में भाग लेगी। हॉकी टीम मनप्रीत सिंह के नेतृत्व में काफी संतुलित बतायी जा रही है व ग्राहम रीड की कोचिंग में आत्मविश्वास से भरी है। कोच ग्राहम रीड टीम को आक्रामक तरीके से खेलने के लिए लगातार मोटिवेट कर रहे हैं। इन स्थितियों में भारतीय टीम से फैंस 9 वे स्वर्ण पदक की उम्मीद कर सकते हैं। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने आठ में से छ: स्वर्ण पदल लगातार 1928 से 1956 के बीच जीते थे, इसके बाद टीम ने दो स्वर्ण पदक साल 1964 टोक्यो व मास्को 1980 में हासिल किया था।
पहला गोल्ड मेडल
भारत की हॉकी टीम ने ओलंपिक इतिहास में सबसे पहली बार स्वर्ण पदक साल 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक में हासिल किया था। भारतीय टीम साल 1920 एंटवर्प ओलंपिक के बाद पटरी पर आती दिखायी दी। इस ओलंपिक में हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को देखा गया। भारत के इस महान खिलाड़ी ने उस टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 14 गोल दागे थे। इस दौरान भारतीय हॉकी टीम ने 5 मैचों में टोटल 29 गोल दागे थे। नीदरलैंड के खिलाफ ध्यानचंद की हैट्रिक के दम पर टीम 3-0 से जीती व भारतीय हॉकी टीम ने पहली बार स्वर्ण पदक अपने नाम दर्ज करा लिया।
दूसरे र्स्वण पदक 1932 में कब्जा जमाया
लॉस एंजिल्स में साल 1932 में हुए ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम में कई भड़के हुए खिलाड़ी नजर आए, जैसे कि 'भारतीय' व एंग्लो-इंडियन' एक दूसरे के विरुद्ध थे, बात यहां तक पहुंच गई कि टीम के एक सदस्य ने भी पगड़ी पहनने से मना कर दिया था, जो आधिकारिक टीम की वर्दी थी। हालांकि मैदान में हॉकी खिलाड़ी अपने निजी विवाद को दूर रखे और एक टीम के रूप में बेहतर प्रदर्शन किया। भारतीय हॉकी टीम ने अपने पहले मुकाबले में मेजबान टीम को 24-1 से हरा दिया। मुकाबले में ध्यानचंद के छोटे भाई रूपचंद ने 10 गोल दागे थे। इस आक्रामक टीम के खिलाफ फाइनल मैच में जापान के पास कोई जवाब नहीं था। खिताबी मैच में टीम इंडिया ने 11-0 से जीत हासिल की व लगातार दूसरी बार स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया।
बर्लिन ओलंपिक 1936 में हासिल किया तीसरा गोल्ड मेडल
बर्लिन में साल 1936 में खेले गए ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक पर कब्जा जमा लिया। यह गोल्ड मेडल ध्यानचंद के लिए एक तोहफा था, जिन्होंने इसके बाद संन्यास की घोषणा कर दी थी। बर्लिन में भी भारतीय टीम सभी टीम के ऊपर हावी रही। इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने 30 गोल दागे व हंगरी, यूएसए, जापान व फ्रांस के खिलाफ लीग मैच में एक भी गोल नहीं खाया था। सेमीफाइनल व फाइनल में ध्यानचंद और रूपचंद के शानदार प्रदर्शन की बदौलत मुकाबले में जीत हासिल की। फाइनल मुकाबले में ध्यानचंद के बेहतरीन प्रदर्शन के दम पर भारत ने आसान जीत हासिल की। वहीं, लगातार दूसरे ओलंपिक फाइनल में ध्यानचंद ने हैट्रिक लगाई व जर्मनी के खिलाफ 8-1 से मैच जीता। इसके साथ ही ध्यानचंद ने स्वर्ण पदक के साथ हॉकी से विदाई ली।
लंदन ओलंपिक 1948 में जीता चौथा गोल्ड मेडल
दूसरे विश्व युद्ध की वजह से साल 1940 व 1944 में ओलंपिक खेल नहीं हो सके थे। भारतीय हॉकी टीम ने जर्मनी में 12 साल के लंबे इंतजार के बाद ओलंपिक में एक बार फिर स्वर्ण पदक हासिल किया। भारत ने लगातार चौथा गोल्ड मेडल जीता व स्वत्रंता के बाद ये भारत का पहला स्वर्ण पदक था। इस ओलंपिक में भारत को बलबीर सिंह सीनियर के रुप में नया स्टार खिलाड़ी मिला। इस स्ट्राइकर के बेतरीन प्रदर्शन के बल पर भारत ने अर्जेंटीना को 9-1, ऑस्ट्रिया को 8-0 व स्पेन को 2-0 से हराने में विशेष भूमिका निभाई। देश के आजाद होने के बाद पहली बार फाइनल में मेजबान ग्रेट ब्रिटेन से भारतीय टीम का मुकाबला था। इस ऐतिहासिक मुकाबले में 25000 से ज्यादा दर्शक शामिल हुए। इस खिताबी मुकाबले में भारतीय टीम पर कोई दबाव नहीं था व बलबीर सिंह सीनियर के 2 गोल की बदौलत भारत ने 4-0 से शानदार जीत हासिल कर ली।
पांचवां स्वर्ण पदक
हेलसिंकी ओलंपिक 1952 में चार साल बाद बलबीर सिंह सीनियर ने एक बार फिर बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 3 मुकाबलों में 9 गोल दागे। इनमें से 8 तो केवल सेमीफाइनल व फाइनल में दागे गए थे। बलबीर उस समय भारतीय हॉकी टीम के उप-कप्तान थे। भारतीय टीम ने पहले ऑस्ट्रेलिया को 4-0 से हराया, इसके बाद सेमीफाइनल मुकाबले में ग्रेट ब्रिटेन के विरुद्ध बलबीर सिंह की हैट्रिक की बदौलत 3-1 से जीत हासिल कर ली। भारतीय टीम ने नीदरलैंड को फाइनल मुकाबले में 6-1 से हराया। इस दौरान बलबीर सिंह सीनियर ने पांच गोल दागे। कप्तान केडी बाबू ने अंतिम गोल दागते हुए टीम की तरफ से आखिरी गोल किया इसी के साथ भारतीय हॉकी टीम ने 5वीं बार स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया।
मेलबर्न 1956 ओलंपिक में छटा स्वर्ण पदक जीता
भारतीय टीम का स्वर्णिम दौर साल 1956 मेलबर्न ओलंपिक में देखने को मिला, जहां हॉकी टीम ने देश से आजाद होने के बाद पहली व कुल दूसरी बार स्वर्ण पदक की हैट्रिक जमाई। पहले मुकाबले में भारतीय टीम ने सिंगापुर को 6-0 से हराया। इसके बाद उन्होंने अफगानिस्तान को 14-0 से करारी शिकस्त दी। वहीं, अमेरिका को तो भारतीय टीम ने 16-0 से बूरी तरह धो दिया था। सेमीफाइनल व फाइनल मुकाबलें में भारतीय टीम के लिए हालात और चुनौतीपूर्ण होते गए पर सेमीफाइनल में जर्मनी व फाइनल में पाकिस्तान को मात दी। भारतीय टीम के लिए मुश्किल ये भी थी कि बलबीर सिंह सीनियर के दाएं हाथ में फ्रेक्चर था। दर्द के बावजूद बलबीर सिंह ने फाइनल मैच में भाग लिया व एक कप्तान के तौर पर जबरदस्त खेल दिखाया व अपनी टीम को 1-0 से जीत दिला दी।
सातवां स्वर्ण पदक
भारतीय हॉकी टीम के ओलंपिक सफर को कट्टरपंथी पाकिस्तान ने रोम 1960 में समाप्त कर दिया था, क्योंकि बाद में उन्हें फाइनल में 0-1 से हराकर अपना पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल जीता। इसके चार साल बाद टोक्यो ओलंपिक 1964 में फिर से फाइनल मुकाबले में भारत का सामना पाकिस्तान से हुआ। पिछले खेल की तरह भारत को इस बार भी कठिन चुनौती मिली। ईस्ट जर्मनी के खिलाफ उन्हें 1-1 से ड्रॉ खेलना पड़ा। इसके अलावा उन्होंने स्पेन, मलेशिया, बेल्जियम व नीदरलैंड को बहुत कम अंतर से हराया। आखिरी मुकाबलों में भारत ने शानदार फॉर्म में वापसी की पर फाइनल में पहुंचने वाली पाकिस्तान टीम अजेय थी। वहीं, फाइनल मुकाबले में पाकिस्तान को जीत का दावेदार मान रहे थे। इस दौरान पाकिस्तान के मुनीर अहमद डार ने अपने पैर के साथ पेनल्टी कॉर्नर से एक शॉट को रोक दिया, जिससे भारतीय हॉकी टीम को पेनल्टी स्ट्रोक मिला, जिसे मोहिंदर लाल ने गोल में बदल दिया। भारतीय हॉकी टीम के गोलकीपर शंकर लक्ष्मण ने पाकिस्तानियों के हमलों से टीम को बचाया। सातवें ओलंपिक स्वर्ण सुनिश्चित करने के लिए भारतीय खिलाड़ियों ने अपना सब कुछ झौंक दिया था व पाकिस्तान के खिलाफ हार के सिलसिले को तोड़ते हुए एक बार फिर स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
मास्को ओलंपिक 1980 में जीता आठवां स्वर्ण पदक
स्वर्ण पदक के बिना 3 ओलंपिक खेलने के बाद भारतीय टीम का इंतजार वर्ष 1980 मास्को में खत्म हुआ। साल 1968 व 1972 में उन्होंने कांस्य पदक जीता तो साल 1976 के ओलंपिक में टीम 7वें पायदान पर रही। वर्ष 1980 में भी टीम काफी दबाव में थी। भारत ने तंजानिया को 18-0 से हराया व उसके बाद क्यूबा को 13-0 से पटक दिया। भारतीय टीम का इन टीमों से असल मुकाबला नहीं था। पोलैंड व स्पेन जैसे मजबूत टीम के खिलाफ टीम ने 2-2 से ड्रॉ किया, यह टीम को सेमीफाइनल में पहुंचाने के लिए काफी था। इसके बाद टीम इंडिया ने रूस को 4-2 से धो दिया। फाइनल मुकाबले में भारत का सामना स्पेन से था, जो जबरदस्त फॉर्म में थी व भारत को टक्कर दे रही थी। खैर मोहम्मद शाहिद के अच्छे प्रदर्शन की बदौलत भारत मैच में बना रहा। इस दौरान शाहिद ने मुकाबले में कई गोल दागने में मदद की व अंत में एक गोल दाग कर अपनी टीम को 4-3 से जीत दिलाने में विशेष रोल अदा किया। यह भारतीय टीम का 8वां व अंतिम स्वर्ण पदक था।