Sawan Shivratri 2019 : सावन की शिवरात्रि कब है, पूजा विधि और कथा

सावन शिवरात्रि 2019 (Sawan Shivratri 2019) 30 जूलाई 2019 (30 July 2019) के दिन है। शिवरात्रि के दिन लोग भगवान शिव को उनकी प्रिय वस्तु बेलपत्र , धतुरा और जल चढ़ाते हैं । जिससे उनके जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाए।;

Update: 2019-06-28 10:58 GMT

Sawan Shivratri 2019: सावन शिवरात्रि सावन मास में पड़ने वाली शिवरात्रि (Shivratri) को हिंदू धर्म में विशेष महत्व दिया जाता है। सावन शिवरात्रि का त्योहार (Sawan Shivratri Festival ) भगवान शिव को समर्पित है । इस दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। सावन मास में लोग कावड़ लेकर जल लेने जाते हैं और भगवान शिव पर शिवरात्रि के दिन वह जल अर्पित करते हैं। सावन शिवारत्रि कब है 2019 (When Is Sawan Shivratri In 2019 ) में अगर आप यह नहीं जानते तो बता दें कि सावन शिवरात्रि 2019 (Sawan Shivratri 2019 Date) में 30 जूलाई 2019 (30 July 2019) के दिन है। शिवरात्रि के दिन लोग भगवान शिव को उनकी प्रिय वस्तु बेलपत्र , धतुरा और जल चढ़ाते हैं । जिससे उनके जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाए। इसके अलावा गूगल पर सावन शिवरात्रि का महत्व (Sawan Shivratri Mahatva) , सावन शिवरात्रि की पूजा विधि (Sawan Shivratri Puja Vidhi) और सावन शिवरात्रि की कथा (Sawan Shivratri Katha) सर्च कर रहे हैं, आइए जानते हैं सावन शिवरात्रि की तिथि, पूजा और कथा के बारे में...

सावन शिवरात्रि 2019 तिथि (Sawan Shivratri 2019 Tithi)


30 जूलाई 2019

सावन शिवरात्रि 2019 पूजा शुभ मुहूर्त

सुबह 9:10 से 2 बजे तक

अभिजीत मुहूर्त : 12:00 बजे से 12: 54 तक

सावन शिवरात्रि प्रत्येक साल 12 मासिक शिवरात्रियां आती है। जो कि हर माह त्रयोदशी के दिन पड़ती है। लेकिन इन सभी शिवरात्रियो में फाल्गुन मास और सावन मास की शिवरात्रियों को ज्यादा महत्व दिया गया है। लोगों की शिवरात्रि में गहरी आस्था है।शिवरात्रि में मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा - अर्चना की जाती है।

शास्त्रों के अनुसार शिवरात्रि की रात में भगवान शिव की विधिवत पूजा करने से सभी दुखों का नाश होता है और जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।सावन मे भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करने से धन, सुख और शांति सभी की प्राप्ति होती है।

सावन की शिवरात्रि के दिन अगर कोई कुंवारी कन्या व्रत रखती है तो उसे मनचाहा वर प्राप्त होता है। सावन मास में लोग कांवड़ लेकर जल लेने जाते हैं और शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को उस जल से स्नान कराते हैं।

सावन शिवरात्रि पूजा विधि (Sawan Shivratri Puja Vidhi)


1.सावन शिवरात्रि के दिन सुबह के समय जल्दी उठें और भगवान शिव के मंदिर में जांए

2.इसके बाद भगवान शिव , माता पार्वती और नंदी को पंचामृत से स्नान करांए।

3.स्नान कराने के बाद भगवान शिव को उनकी प्रिय वस्तु जैसे बेलपत्र , धतूरा, कच्चे चावल , घी और शहद अर्पित करें।

4.इसके बाद शिवलिंग को धूप -दीप दिखाकर जल चढ़ाना चाहिए।

5.सावन की शिवरात्रि में खट्टी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए और इस दिन काले रंग के वस्त्र भी न पहने।

Sawan Shivratri Story / सावन शिवरात्रि की कहानी


सावन शिवरात्रि कथा (Sawan Shivratri Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार वाराणसी के वन में एक भील रहा करता था।जिसका नाम गुरुद्रुह था। वह वन में रहने वाले प्राणियों का शिकार करके अपने परिवार का पालन करता था। एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया। उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई। तभी उसे वन में एक झील दिखाई दी। उसने सोचा मैं यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं। कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा।

यह सोचकर वह पानी का पात्र भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया। उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई। गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई। तभी हिरनी ने उसे देख लिया और उससे पुछा कि तुम क्या चाहते हो।

वह बोला कि तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पालन करूंगा। यह सुनकर हिरनी बोली कि मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आऊंगी। हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया। थोड़ी देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए झील के पास आ गई। शिकारी ने उसे देखकर पुन: अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व जल शिवलिंग पर गिरे और शिव की पूजा हो गई।

उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। थोड़ी देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी को खोज में आया। इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई। वह हिरन भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आने की बात कहकर चला गया। जब वह तीनों हिरनी व हिरन मिले तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण तीनों शिकारी के पास आ गए।

सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया जिससे चौथे प्रहर में पुन: शिवलिंग की पूजा हो गई। इस प्रकार गुरुद्रुह दिनभर भूखा-प्यासा रहकर वह रातभर जागता रहा और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव की पूजा हो गई और शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया, जिसके प्रभाव से उसके पाप तत्काल भी भस्म हो गए। पुण्य उदय होते ही उसने सभी हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया।

तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष भी प्राप्त होगा। इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया।

किस पर टिका है शिवलिगं और क्यों की जाती है इसकी पूजा

एक समय की बात है। एक बार कुछ स्त्रियां जंगल में लकड़ीयां लेने के लिए गई थी। उस समय भगवान शिव अपने मूलभूत रूप में अर्थात् नग्न अवस्था में उन स्त्रियों के पास पहुंच गए। यह देखकर सभी शर्म से लज्जित हो उठी और अपने आश्रम में वापस लौट गई। लेकिन कुछ स्त्रियां भगवान शिव के इस रूप को देखकर मोहित हो उठी और उनमें काम वासना जाग्रत हो उठी। जिसके बाद वह भगवान शिव का अलिंगन करने लगी।

उसी समय उसी रास्ते से कुछ ऋषि गुजर रहे थे। भगवान शिव को इस अवस्था में देखकर वह बहुत क्रोधित हो उठे और बोले कि हे वेद! मार्ग को लुप्त करने वाले तुम इस प्रकार वेदों के विरुद्ध कार्य क्यों करते हो। यह सुनकर शंकर भगवान ने कोई जबाव नही दिया। जिसके बाद सभी ऋषि क्रोधित हो उठे और उन्हें श्राप दे दिया कि तुम्हारा लिंग कटकर जमीन पर गिर जाए। जिसके भगवान शिव का लिंग कटकर पृथ्वीं पर गिर पड़ा और अग्नि के समान जलने लगा।

वह जहां भी जाता। उस जगह को पूरी तरह से भस्म कर देता था। जिसके बाद तीनों लोकों में त्राहिमाम् मच गया। जिसके बाद ऋषियों को अपनी भूल का अहसास हुआ। इस समस्या का निदान पाने के लिए सभी ऋषि ब्रह्मा जी के पास गए और उन्हें पूरी बात बताई। लेकिन ब्रह्मा जी के पास भी इस समस्या का कोई समाधान नही थी। जिसके बाद ब्रह्मा जी ने सभी ऋषियों को भगवान शिव के पास जाने को कहा। सभी ऋषि भगवान शिव के पास जाने लगे

लेकिन रास्ते में ही भगवान शिव ने सभी ऋषियों से पार्वती जी के पास जाने के लिए कहा। इस ज्योतिर्लिंग पार्वती जी के अलावा कोई धारण नहीं कर सकता। यह सुनकर सभी ऋषियों ने माता पार्वती की आराधना की और उन्हें प्रसन्न किया। जिसके बाद सभी ऋषियों के आग्रह पर माता पार्वती ने उस ज्योतिर्लिंग को अपनी योनि में धारण कर लिया। उसी समय से उस ज्योतिर्लिंग पूजा तीनों लोकों में की जाने लगी। उसी समय से शिवलिंग व पार्वतीभग की प्रतिमा का पूजन संसार में आरंभ हुआ था।

जानें शिवजी के नाग ,त्रिशुल और डमरू का रहस्य

शिवजी और नाग का रहस्य

भगवान शिव के गले में नाग सुशोभित है। जो नागों के राजा कहे जाते हैं। भगवान शिव के गले में जो नाग है उसका नाम वासुकी है। यह नागलोक पर राज किया करते थे। वासुकी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। जिसकी वजह से भगवान शिव ने वासुकी नाग को नागलोक का राजा होने का वरदान दिया था और साथ ही अपने गले में हमेशा लिपटे रहने का भी वरदान दिया था।

शिवजी और त्रिशुल का रहस्य

विद्वानों के अनुसार जब भगवान शिव प्रकट हुए थे।उस समय वह रज,तम और सत यह गुण लेकर सृष्टि में आए थे। भगवान शिव के इन तीन गुणों की वजह से त्रिशुल की उत्पत्ति हुई थी। इन तीनों गुणों को समान रखने के लिए ही भगवान शिव ने इन तीनों के रूप में त्रिशुल ही उत्पत्ति की और इस त्रिशुल को अपने हाथ में रखा।

शिवजी और डमरू का रहस्य

भगवान शिव के हाथ में डमरू भी सुशोभित है। पुराणों के अनुसार जब देवी सरस्वती ने सृष्टि में प्रकट हुई थी तो उन्होंने ध्वनि को जन्म दिया था। लेकिन इस ध्वनि के पास सुर और संगीत नही थे। इसलिए भगवान शिव ने नाचते हुए चौदह बार अपने डमरु को बजाया। जिसकी वजह से संगीत उत्पन्न हुआ था। इसलिए डमरू को ब्रह्म स्वरूप भी कहा जाता है।

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