HBD Special: कैसे इंजीनियरिंग के छात्र रहे नीतीश कुमार ने बदल दिया बिहार का नक्शा, लालू संग हुई थी राजनीति की शुरुआत
बिहार (Bihar) के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक मार्च को 71 साल के हो गए हैं। उनके जन्मदिन (Birthday Special) के मौके पर सत्ता पक्ष से ही नहीं विपक्ष से भी उनको बधाईयां दी जा रही है।;
बिहार (Bihar) के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक मार्च को 71 साल के हो गए हैं। उनके जन्मदिन (Birthday Special) के मौके पर सत्ता पक्ष से ही नहीं विपक्ष से भी उनको बधाईयां दी जा रही हैं। बिहार की कमान संभालने के बाद लगातार नीतीश सत्ता में बैठे हुए हैं। बीच बीच में इस्तीफा देना भी वक्त आया उनके जन्मदिन के मौके पर हम बात कर रहे हैं उनके राजनीतिक सफरनामे की। वैसे तो हर कोई जानता ही है कि नीतीश कुमार को सुशासन बाबू भी कहा जाता है। जिन्होंने बिहार की तस्वीर बदलने का काम लगातार किया।
बिहार की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने दिल्ली में भी केंद्र सरकार के नेतृत्व में काम किया। इंजीनियरिंग के जादूगर नीतीश कुमार अब तक तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल कर चुके हैं। नीतीश को विचारों से काफी सुलझा हुआ नेता बताया जाता है।
'सुशासन बाबू' के इंजीनियर नीतीश कुमार....
नीतीश कुमार का जन्म एक मार्च 1951 को बिहार के बख्तियारपुर में हुआ था। पिता आयुर्वेदिक चिकित्सक कविराज राम लखन और मां परमेश्वरी देवी के यहां जन्में थे। एनआईटी पटना से मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र रहे नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर की शुरुआत जयप्रकाश नारायण यानी जेपी आंदोलन से हुई थी। आंदोलन के दौरान सक्रिय राजनीति में आने से पहले नीतीश कुमार ने राज्य बिजली बोर्ड में कुछ समय के लिए काम किया।
कहते हैं कि जेपी आंदोलन के वक्त नहीं नीतीश के साथी लालू यादव, जो पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे। 1974 में 1977 में छपरा से 1977 का लोकसभा चुनाव जीतकर जेपी आंदोलन में शामिल हुए थे। लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सुशील मोदी और शिवानंद तिवारी जैसे छात्र ही आज की राजनीति में छाए हुए हैं। ये लोग गुरु जेपी के समान सिद्धांत साझा करते थे।
लेकिन साल 1980 में लालू यादव ने जनता पार्टी छोड़ दी और 1980 में आरजेडी की स्थापना की। जबकि नीतीश कुमार ने इसका नेतृत्व किया। नीतीश ने शुरुआत में 1989 में विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में लालू प्रसाद यादव का समर्थन किया। उन्होंने अपनी पहली लोकसभा सीट जीतने के बाद 1996 में भाजपा के प्रति वफादारी बदली। वाजपेयी सरकार में शामिल होने के बाद नीतीश को कुछ समय के लिए केंद्रीय रेल मंत्री समेत कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी दिल्ली में दी गई थी। गैसल कांड के बाद उन्होंने केंद्रीय रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। षि मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल के रूप में फिर से शामिल हुए और 2001-2004 तक केंद्रीय रेल मंत्री बनाए गए।
फिर वह दिन भी आ गया जब बिहार में नीतीश पहली बार सीएम के रूप में चुने गए। लेकिन एनडीए और राजद 324 सीटों वाली बिहार विधानसभा में बहुमत साबित करने में विफल रहने के सात दिन बाद तक ही टिके रहे। इसके बाद 5 साल राबड़ी देवी सीएम रहीं और फिर दूसरा कार्यकाल 2005 से नीतीश कुमार का शुरू हुआ। सीएम के रूप में अपने पहले पूर्ण कार्यकाल के दौरान उन्होंने शुरू किए गए साइकिल कार्यक्रम को हरी झंडी दिखाई। स्कूल छोड़ने की दर को कम करने के लिए स्कूल में रहने वाली लड़कियों को साइकिल दीं।
तीसरा कार्यकाल 2010 में भाजपा के साथ नीतीश फिर से सीएम चुने गए। फिर साल 2014 में सीएम के पद से इस्तीफा देने के बाद फरवरी 2015 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद चौथी बार सीएम के रूप में शपथ ली। इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी को लेकर नाराजगियां सामने आईं थी। कहते हैं कि साल 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नामित किए जाने के बाद एनडीए के साथ संबंध तोड़ दिया था।
इसके बाद नीतीश और लालू ने मिलकर बिहार का चुनाव लड़ा और एक बार फिर उन्होंने अपना कार्यकाल शुरू किया। साल 2015 में नीतीश कुमार के सीएम के रूप में चौथा कार्यकाल शुरू किया। यह गठबंधन दो साल से अधिक नहीं चला, जब नीतीश कुमार ने तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के इस्तीफे की मांग की, जब उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था। उन्होंने भी सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन जल्द ही लौट आए।
साल 2017 में नीतीश कुमार अपने पुराने सहयोगी भाजपा में लौट आए और उन्होंने उपमुख्यमंत्री के रूप में भाजपा के सुशील मोदी के साथ मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। फिर 2020 में हुए चुनाव में 7वां कार्यकाल नीतीश कुमार ने संभाला और इस चुनाव में कहा कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा।