बिहार का पहला अक्षय ऊर्जा सोलर माइक्रो​ग्रिड तबेले में तब्दील, जानें इसकी बदहाली की मुख्य वजह

बिहार के जहानाबाद जिले में मखदूमपुर प्रखंड का धरनई गांव उस वक्त भी रोशन रहता था। जब दूर-दूर तक बिजली की व्यवस्था नहीं थी। इसकी वजह थी राज्य का पहला अक्षय ऊर्जा सोलर माइक्रो ग्रिड। पर अब यह इतिहास बनता जा रहा है। इसकी बदहाली ऐसी है कि इसमें अब पशुओं को बांधा जा रहा है।;

Update: 2021-06-19 12:49 GMT

सीएम नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट (CM Nitish Kumar dream project) एवं बिहार का पहला अक्षय ऊर्जा सोलर माइक्रो ग्रिड (Bihar first renewable energy solar micro grid) धीरे-धीरे इतिहास (history) बनता जा रहा है। क्योंकि यह कई वर्षों से बंद पड़ा हुआ है और अब इसमें पशुओं (animals) को बांधा जा रहा है। यानी कि कतई गौशाला ही बन गया है। किसी वक्त जहानाबाद (Jehanabad) जिला का मखदूमपुर प्रखंड के धरनई गांव सौर ऊर्जा से रोशन होता था। लेकिन सही रख रखाव नहीं होने की वजह से बिहार का पहला अक्षय ऊर्जा सोलर माइक्रो ग्रिड अब इतिहास के पन्नों में दर्ज होता जा रहा है। स्थिति ये है कि बीते कई सालों से बंद पड़ा सोलर ग्रिड अब पशुओं को बांधने वाला तबेला (percussion) बन चुका है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गया और जहानाबाद जिला की सीमा पर बसे धरनई गांव में बिजली नहीं रहने पर ग्रीन पीस संस्था की तरफ से सन 2013 में सोलर पावर ग्रिड स्थापित किया गया था। जिससे गांव के कई सरकारी भवन व स्कूल की छतों पर सोलर प्लेट के माध्यम से ग्रिड में रखी बैटरी को चार्ज किया जाता था। इसके बाद धरनई पंचायत के धरनई, विशुनपुरा व झिटकोरिया गांव के करीब 450 घरों में बिजली सप्लाई के साथ ही प्रत्येक गली व चौराहों पर स्ट्रीट पोस्ट लगा कर जगमग किया जाता था। साल 2013 में इस सोलर पावर ग्रिड का उद्घाटन करने पहुंचे सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने इस मॉडल की तारीफ करते हुए इसे क्षेत्र के लिए वरदान बताया था।

जानकारी के अनुसार स्थापना बाद लगातार तीन वर्षों तक इसने बेहतर काम किया। लेकिन साल 2017 से इस ग्रिड की स्थिति बदहाल होती गई। अंत में सही रख रखाव नहीं होने की स्थिति व गांव में बिजली (elsectricity) आ जाने की वजह से राज्य के इस पहले सोलर ग्रिड अब तबेला में परिवर्तित हो गया है।

यहां हर गली में खराब हो चुकी सोलर स्ट्रीट पोस्ट और ग्रिड से घरों तक आपूर्ति के लिए लगाए गए तार अभी भी टंगे हुए साफ दिखाई देते हैं। लेकिन यह सब भी केवल उन्हीं दिनों की याद ताजा करते हैं कि जब गांव में बिजली नहीं होती पहुंची थी। लेकिन ये पूरा क्षेत्र सौर ऊर्जा से रोशन रहता होता था। गांव के लोगों के अनुसार इस ग्रिड से केवल दो रुपये यूनिट उनको बिजली मिलती थी। गांव में इन्वर्टर की जरूरत नहीं पड़ती थी।

आपको बता दें बिहार के सुदूर ग्रामीण इलाके में लगाये गए इस अक्षय ऊर्जा माइक्रो ग्रिड में 280 सोलर प्लेट से 315 से 385 यूनिट बिजली का उत्पादन होता था। जिसे स्टोर करने के लिए 224 बैटरी उपयोग में लाई जाती थीं। लेकिन साल 2018 के बाद सही रख रखाव नहीं होने और ग्रीन पीस संस्था के उदासीन होने से यह कभी लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा सोलर ग्रिड तबेला व वाहनों का कबाड़ रखने का स्थान बन गया है।

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