कोरोना मरीज की अर्थी को अपनों ने नहीं दिया कंधा, मुस्लिम युवकों ने अंतिम संस्कार कर पेश की मिसाल

कोरोना कहर के बीच मानवता भी शर्मसार हो रही है। इस तरह का एक मामला बिहार के गया जिले से सामने आया है। यहां कोरोना मरीज की मौत के बाद उसकी अर्थी को उसके परिजनों ने कंधा तक नहीं दिया। वहीं मुस्लिम युवाओं ने उक्त शव का अंतिम संस्कार किया।;

Update: 2021-04-26 05:41 GMT

बिहार (Bihar) में कोरोना कहर (Corona Havoc) के बीच रोजाना कई लोगों की मौतें हो रही हैं। कोरोना संकट के बीच मानवता भी शर्मसार हो रही है। ऐसा ही एक मामला बिहार के गया जिले (Gaya district) से सामने आया है। जानकारी के अनुसार, गया जिले के रानीगंज (raniganj) में 58 वर्षीय प्रभावती देवी पति दिग्विजय प्रसाद की कोरोना संक्रमण (Corona infection) की चपेट में आकर मौत (Corona Death) हो गई। महिला प्रभावती देवी की मौत के बाद उनके परिवार से लेकर आसपास तक के लोग कोरोना वायरस के भय (Corona virus phobia) से अर्थी को कंधा देने तक के लिए नहीं पहुंचे। ना ही कोई भी शख्स उनके दाह-संस्कार (Cremation) तक में शामिल हो रहा था। जब यह जानकारी मुस्लिम युवाओं (Muslim youth) को मिली तो वो तुरंत मौके पर पहुंचे और उनका सहयोग किया।

कोरोना की परवाह किए बिना ये युवक ना सिर्फ कोरोना संक्रमित अर्थी को अपना कंधा देते हुए श्मशान घाट (graveyard) तक ले गए बल्कि पूरी तैयारी के साथ मुस्लिम युवकों ने महिला का अंतिम संस्कार (Funeral) भी किया। अंतिम संस्कार करने वालों में मोहम्मद रफीक मिस्त्री, मोहम्मद सगीर आलम, मोहम्मद सुहैल, फारूक उर्फ लड्डन जी, हाफिज कलीम, बसंत यादव और उनके बेटे आदि उपस्थित रहे। इन मुस्लिम युवकों की इंसानियत की चर्चा इलाके में काफी जोरों पर है। इनकों चारों ओर से इस कार्य के लिए सराहना मिल रही हैं। अंतिम संस्कार शामिल रहे युवकों का कहना था कि इस दुनिया में इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। जो कि किसी जाति या मजहब के आड़े नहीं आना चाहिए। आपको बता दें बिहार का गया जिला भी कोरोना वायरस से खासा प्रभावित है। जिले में नए कोरोना संक्रमित मरीज भी तेजी से मिल रहे हैं। वहीं कोरोना मरीजों की मौत का सिलसिला भी जारी है।

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