Sunday Special: प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के विध्वंस पर वामपंथी इतिहासकारों ने कैसे देश को किया गुमराह
Sunday Special: भारत की सभ्यता और संस्कृति को वामपंथी इतिहासकारों ने अपनी कलम से तबाह करने का पूरा प्रयास किया है। देश को गुमराह करने वालों की एक और करतूत खुल चुकी है। जो नालंदा विश्वविद्यालय से संबंधित है।;
Sunday Special: भारत के इतिहास (History of india) को लिखते हुए वामपंथी इतिहासकारों (Leftist historians) ने अपनी आंखों पर विचारधारा का ऐसा चश्मा चढ़ाया कि समूचा इतिहास ही बर्बाद हो गया। इसका परिणाम ये हुआ कि आजादी के करीब 70 वर्षों बाद भी हम देश का ऐसा इतिहास पढ़ते और समझते हैं, जिनका तथ्यों से कहीं तक कोई वास्ता नहीं है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Ancient Nalanda University) के विध्वंस (Demolition) पर वामपंथी इतिहासकारों ने जैसे देश को गुमराह किया है वो किसी गुनाह (Crime) से कम नहीं है।
करीब 725 साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय को किया गया बर्बाद
प्राचीन भारत का अनुपम गौरव माने जाने वाले नालंदा विश्वविद्यालय की पुण्य भूमि से बख्तियारपुर जंक्शन (Bakhtiyarpur Junction) महज 42 किमी दूर स्थित है। ये बात मायने नहीं रखती है कि इस स्टेशन का नाम उसी क्रूर शासक बख्तियार खिलजी (Bakhtiar Khilji) के नाम पर रखा गया है। जिसने आज से करीब 725 वर्षों पहले उस समय के शिक्षा और ज्ञान के सबसे बड़े वैश्विक केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय को अपनी सनक और ताकत के जोर पर जला कर राख कर दिया था।
हर भारतवासी के मन में उठता होगा ये सवाल
हर भारतवासी (Every Indian) के मन में ये सवाल जरूर उठता होगा कि जिस क्रूर शासक ने शिक्षा और ज्ञान के पुण्य संस्थान को भी नहीं छोड़ा, फिर भी उसके नाम पर स्टेशन क्यों बनाया गया? यदि इस प्रश्न का जवाब चाहिए तो आपको वामपंथी इतिहासकारों की देश विरोधी कारस्तानियों की तह तक जाना होगा। जिन्होंने विचारधारा की सनक में 60 से 78 साल तक देश को गुमराह किया। नालंदा विश्वविद्यालय की तबाही को लेकर वामपंथी इतिहासकारों ने किस तरह से झूठ का साम्राज्य खड़ा किया। यदि आप इस बात को जान जाएंगे तो आपके मन में इन इतिहासकारों के प्रति नफरत हो जाएगी।
इस तरह तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर परोसा गया
जानकारी के अनुसार एक बड़े नामचीन इतिहासकार द्विजेन्द्र नारायण झा. (डीएन झा) हैं। द्विजेन्द्र नारायण झा साल 2006 में इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर स्थापित थे। इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर साल 2006 में डीएन झा ने जो भाषण दिया, उसपर वामपंथी विचारधारा की जहरीली चाशनी इस तरीके से लपेटी गई थी कि नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास ही जख्मी हो गया। नालंदा विश्वविद्याल के इतिहास के बारे में डीएन झा ने कहा था कि एक तिब्बती ट्रेडिशन के मुताबिक 11वीं शताब्दी के कलचुरी राजा कर्ण ने मगध के बेशुमार बौद्ध मंदिरों और मठों को तहस-नहस कर दिया। दूसरी ओर तिब्बती टेक्स्ट 'पग सैम जोन ज़ांग' के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों को हिन्दू चरमपंथियों ने जलाया था।
इन इतिहासकारों की बड़ी खास बात ये है कि सफेद झूठ को गढ़ते हुए वे बिल्कुल बेपरवाह, बेफिक्र और बेखौफ रहते हैं। वो आगे-पीछे बिल्कुल नहीं सोचते। भारतीय इतिहास कांग्रेस के साल 2006 के अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने हवाला दिया कि 18वीं शताब्दी की तिब्बती किताब का और शब्द लिखा हिन्दू फैनाटिक्स यानी हिन्दू चरमपंथी है। क्या 18वीं शताब्दी में तिब्बत में लिखी गई किताब में हिन्दू चरमपंथी शब्द का प्रयोग किया गया होगा। इस शब्द को बाद के दिनों में स्वयं वामपंथियों ने गढ़ा है।