Haribhoomi Explainer: जनजातियों की विवाह प्रथा के अजीब किस्से, पढ़कर आप भी रह जाएंगे दंग
Haribhoomi Explainer: देश में विभिन्न जनजातियों में विवाह को लेकर अलग-अलग रीति रिवाज और रस्में होती हैं। एक प्रजाति ऐसी है, जो कि लव इन रिलेशनशिप को भी मानती है। यही नहीं, अन्य प्रजातियों की विवाह को लेकर बने रीति रिवाज को पढ़कर आप भी दंग रह जाएंगे। हरिभूमि एक्सप्लेनर में आपको कुछ जनजातियों की विवाह परंपराओं के बारे में बताने जा रहे हैं।;
Haribhoomi Explainer: झारखंड के खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड के अंतर्गत आने वाले चौला पतरा गांव सुर्खियों में है। यहां दो दिन पहले 501 जोड़ियों का सामूहिक विवाह कराया गया है। अब सोचने वाली बात है कि क्या सामूहिक विवाह से ही यह गांव कैसे सुर्खियों में आ गया। दरअसल, इस गांव ने वो कर दिखाया है, जो आज भी आधुनिक समाज में आसानी से स्वीकारा नहीं जाता है। बात लव-इन रिलेशनशिप की कर रहे हैं। यह एक कार्यक्रम नहीं बल्कि यहां के जनजातीय समाज की एक परंपरा है। इस सामूहिक विवाह में जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने बतौर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की, साथ ही उनकी धर्मपत्नी मीरा मुंडा भी मौजूद रहीं। पूरे समाज ने लव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को वैवाहिक जीवन के लिए शुभकामनाएं दीं। आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर में आपको जनजातीय समाज की ऐसी ही विवाह से जुड़ी परंपराएं बताएंगे, जिसे जानकर आप भी दंग रह जाएंगे।
मुरिया जनजाति
छत्तीसगढ़ बस्तर क्षेत्र के पास मुरिया जनजाति रहती है। यहां महिलाओं को अपना पार्टनर चुनने और लिव-इन में रहने के लिए प्रेरित किया जाता है। मुरिया समुदाय में पुरुषों और महिलाओं के बीच भौतिक सीमाएं न के बराबर है। आज का आधुनिक समाज इन सीमाओं को तोड़ने के लिए संघर्ष कर रहा है। इससे यह मतलब है कि यहां महिलाएं बातचीत और जीवन जीने के लिए स्वतंत्र हैं। घोटुल मुरिया लोगों की एक परंपरा है। इसमें बांस या मिट्टी की झोपड़ी बनी होती है। रात को लड़कियां और लड़के नाच-गाना करके मनोरंजन करते हैं। यहां पर लड़का और लड़की अपने लिए सहयोगी की तलाश भी करते हैं। चुनाव करने का तरीका भी अलग है। जब घोटुल में कोई लड़का आता है, उसे लगता है कि वह अब समझदार है, तो बांस से एक कंघी बनाता है। वहीं, लड़की को जब कोई लड़का पसंद आता है, तो वह उसकी कंघी चुरा लेती है। इससे पता चलता है कि वह लड़के को पसंद करती है। जब लड़की बालों में कंघी लगाकर बाहर निकलती है, तो सबको पता चल जाता है कि वह किसी को पसंद करती है। इसके बाद लड़का और लड़की जोड़ा बनकर घोटुल को सजाने लगते है। इसके बाद दोनों एक ही झोपड़ी में साथ रहने लगते हैं। इस दौरान वह पति-पत्नी की तरह रहते हैं। इसके बाद लड़का और लड़की दोनों के परिवार उनकी शादी तय करते हैं। झोपड़ी में वही लड़के और लड़कियां जाते हैं, जिनके बारे में समुदाय में सबको पता होता है कि यह दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं।
मुंडा और कोरवा जनजाति
झारखंड की मुंडा और कोरवा जनजाति के जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं। इस जनजाति में कपल 30 से 40 साल तक लिव-इन में रहते हैं। बिना शादी के साथ रहने वाले कपल को ढुकुनी और ढुकुआ कहा जाता है। ढुकुनी का मतलब है कि जब महिला बिना शादी किए पुरुष के घर में रहने लगती है। वहीं उनके रिश्ते को ढुकु विवाह के नाम से जाना जाता है। लिव-इन का रिवाज पश्चिम देशों से भारत में आया है, लेकिन ऐसा नहीं है। आज भी कई आदिवासी इलाकों में लिव-इन प्रथा देखने को मिल रही है। झारखंड के आदिवासी में हजारों जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं। इसका बड़ा कारण है कि वह शादी समारोह का आयोजन नहीं कर पाते हैं। गांव के लोगों को दावत देने के लिए पैसे नहीं होते थे। वह लिव-इन में रहने लगते थे। आदिवासी गांव में एक परिवार की दो या तीन पीढ़ियां बिना शादी किए साथ रहते हैं।
बुक्सा जनजाती
उत्तराखंड के नैनीताल, पौड़ी गढ़वाल और देहरादून की ग्रामीण बस्तियों में निवास करने वाली बुक्सा जनजाति में शादी करने के लिए आज भी कन्या को खरीदा जाता है। इसका कारण यह है कि इस जनजाति में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या बहुत कम है। बुक्सा जनजाति में कन्या शादी से पहले परिवार के आर्थिक कमाई में महत्वपूर्ण स्थान रखती है, लेकिन शादी के बाद कन्या के घर वाले कन्या के मदद से मिलने वाले फायदे से वंचित हो जाते हैं, जिसकी भरपाई के रूप में कन्या का पिता कन्या का मूल्य पाने का अधिकारी माना जाता है। यह राशि (मूल्य) शादी से पहले लड़का पक्ष कन्या पक्ष को देता है, जिसे 'मालगति' कहा जाता है। इस जनजाति में पुरुष का विवाह तभी संभव है, जब उसके पास खेती के लिए इतनी जमीन हो कि वह अपना तथा अपने परिवार का पालम-पोषण कर सके।
इस जनजाति में कन्या के विवाह की उम्र 18-20 और वर की उम्र 20-24 वर्ष होती है। इस जनजाति में बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन नहीं है। इसकी वजह यह है कि इस समाज में पुरुषों की संख्या स्त्रियों से बहुत ज्यादा है। इसलिए शादी टूटने के बाद पुरुष का विवाह कठिन हो जाता है। विधवा का विवाह तो आसानी से हो जाता है, लेकिन विधुर का विवाह आसनी से नहीं हो पाता है। पत्नी के संबंध तोड़ने पर पहला पति उसके पिता या नए पति से क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है और यदि पत्नी पति को छोड़े दे तो उसके पिता को दिया गया पैसा वापस करना पड़ता है।
बोराना ओरोमो जनजाति
इस जनजाति के लोग केन्या में रहते हैं, लेकिन कुछ आबादी इथोपिया और सोमालिया के बीच बसी बस्तियों में पाई जाती है। इस जनजाति के लोगों की कुल संख्या 5 लाख है। यहां बोराना जनजाति की लड़कियां अच्छे वर को पाने के लिए विवाह से पहले अपने सिर का एक बड़ा सा हिस्सा मुंडवा लेती हैं। इस जनजाति के लोगों का मानना है कि सिर मुंडवाने से लड़कियों को अच्छा वर मिलता है। शादी के बाद ही लड़कियों को सही से बाल बढ़ाने और उसे संवारने का मौका मिलता है। सिर्फ इतना ही नहीं, यहां के लोग शादी के बाद फोटो खिंचवाना भी अच्छा नहीं मानते। इन लोगों का मानना है कि ऐसा करने से शरीर में खून की कमी हो जाती है। वहीं दूसरी तरफ समाज में तेजी से आ रहे बदलाव के साथ ही इन लोगों में भी बदलाव आ रहा है और अब यह लोग पढ़ाई-लिखाई की तरफ बढ़ रहें हैं, लेकिन फिर भी इस जनजाति की मान्यताएं किसी को भी चौंकाने के लिए काफी है। बालों को अच्छा बनाए रखने के लिए इस जनजाति की महिलाएं घी का इस्तेमाल करती हैं। बहुत सारी चोटियां बनाती हैं। विवाह से पहले लड़कियों के सिर के बीच के हिस्से के बाल काट दिए जाते हैं और वे इन बालों को तभी बढ़ा सकती है, जबकि उनका विवाह हो जाता है। बोराना महिलाएं बकरी की खालों से बनी परम्परागत ड्रेस पहनती हैं और जब इनका परम्परागत नाच होता है, तो समझा जाता है कि किसी के घर बच्चा पैदा हुआ है। इस जनजाति के ज्यादातर नियम बच्चों को लेकर होते हैं और अपनों से बड़े लोगों को कभी उनके प्रथम नाम से नहीं बुलाते हैं। बच्चों के नाम भी आदिवासी नियमों और दिन के समय से तय होते हैं। जो लड़के दोपहर को होते हैं, उन्हें गुयो कहा जाता है। किसी का नाम समारोह के नाम पर जिल होता है, लेकिन अगर बच्चा बरसात के मौसम में पैदा होता है, तो उसे रॉब और सूखे के मौसम में पैदा हुए बच्चे को बॉन कहा जाता है। जन्म के बाद समारोह के समय मां-बाप बच्चे का नाम रखते हैं, वह नाम कभी बदला नहीं जाता है।
वोडाबे जनजाति
पश्चिमी अफ्रीका के नाइजर देश में वोडाबे जनजाति रहती है। इस जनजाति में व्यक्ति को शादी करने के लिए दूसरे की पत्नी चुरानी पड़ती है। इस अजीबो-गरीब रिवाज के चलते लोग एक-दूसरे की बीवियों को चुरा लेते हैं और बाद में शादी कर लेते हैं। घर-परिवार, समाज इस विवाह को बाकायदा मान्यता भी देता है। यानी दूसरे की पत्नी चुराने वाले से कोई नाराज नहीं होता, जिसकी पत्नी चोरी होती है, वो भी खुशी-खुशी इस घटना को स्वीकार कर लेता है। पश्चिम अफ्रीका की वोडाबे जनजाति में पहली शादी उनके माता-पिता द्वारा बचपन में कर दी जाती है। यह शादी अपने वंश की लड़की से ही की जाती है। जब इस जनजाति के लड़के युवा हो जाते हैं तो वह अपनी पसंद की महिला यानी किसी और की पत्नी को चुराने की आजादी होती है। वोडाबो की इस मान्यता प्राप्त चोरी में असफल लड़के का बुरा हाल होता है, घर-परिवार वाले भी नाकारा समझते हैं। इतना ही नहीं बल्कि वह किसी और की बीवी नहीं चुरा पाया इसलिए उसे दूसरी शादी करने का हक भी छीन लिया जाता है। असल में वोडाबे जनजाति के समाज में महिलाओं के पास एक से ज्यादा पुरुषों के साथ संबंध बनाने का अधिकार है। इसी के तहत कोई महिला किसी पुरुष से प्रभावित हो जाती है, तो वो उस आदमी को उसे चुराने या यूं कहिए कि भगा लेने की छूट दे देती है। अगर ऐसा करने में वो कामयाब हो जाता है, तो वह महिला उस शख्स की पत्नी हो जाती है।
सूरी जनजाति
सूरी जनजाति में भी दूसरी जनजातियों की तरह परंपराएं अनोखी और हजारों साल पुरानी हैं। यहां शादी करने का तरीका भी गजब है। सूरी जनजाति के लोग बहुत चौड़े होठों को सुंदरता की निशानी समझते हैं। सूरी जनजाति की अनोखी प्रथा के तहत, लड़कियों के युवावस्था होते ही उनके निचले जबड़े के दो दांत तोड़ दिए जाते हैं और होंठ को काटकर छेद बना दिया जाता है। इसके बाद उनके होंठ में सख्त लकड़ी या मिट्टी का करीब 16 इंच चौड़ा टुकड़ा लगा दिया जाता है। समय के साथ- साथ इस टुकड़े का साइज बढ़ा दिया जाता है ताकि उनके होंठ और बड़े हो जाएं और वे ज्यादा सुंदर दिखें। महिला के होंठ में लगाई गई प्लेट का साइज जितना बड़ा होगा, उसके पिता को दहेज में उतनी ज्यादा गाय मिलती है, आमतौर पर छोटी प्लेट वाली लड़की के पिता को 40 गाय और बड़ी प्लेट वाली लड़की को दहेज में 60 गाय मिलती हैं।