प्रदूषण से हो सकती है कैंसर जैसी कई बड़ी बीमारियां, जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
मौसम में बदलाव का वक्त हेल्थ के लिहाज से सेंसिटिव होता है। ऐसे में जरा-सी लापरवाही आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। खासतौर पर इस दौरान बढ़ते प्रदूषण से सांस संबंधी परेशानियां बढ़ जाती हैं। ऐसे में आपको यह जरूर जानना चाहिए कि इस दौरान कौन-सी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं और इनसे कैसे बचा जाए?;
Winter Health Tips: इन दिनों देश के कई राज्यों में प्रदूषण कहर बनकर छाया हुआ है। वातावरण में मौजूद स्मॉग सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचता है। जिससे कई सांस संबंधी समस्याएं होती है। यह सभी लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है। कई बार लोग कुछ ऐसे लक्षणों को आम बीमारी समझकर नजर अंदाज करते रहते हैं। मगर ऐसा प्रदूषण की वजह से ही होता है। यहां दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. विनी कांतरू की ओर से प्रदूषण के नेगेटिव इफेक्ट और इससे बचने के लिए जरूरी सलाह दी गई है।
स्वास्थ्य पर पड़ता दुष्प्रभाव
बदलते मौसम में कम तापमान, ठंडी हवाओं और स्मॉग के चलते केवल हमारे फेफड़े ही नहीं, शरीर के विभिन्न अंगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे एयर क्वालिटी इंडेक्स काफी खराब हो जाता है। वातावरण में मौजूद पॉल्यूशन के प्रदूषक तत्वों का लेवल पीएम-2.5 से पीएम-10 लेवल तक होता है, जो सांस के जरिए शरीर में पहुंच कर शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं।
पीएम-2.5 बड़े कण के नुकसान
वातावरण में मौजूद इनमें पीएम-2.5 से बड़े प्रदूषक तत्व हमारी सांस के जरिए सीधे फेफड़ों तक पहुंचकर क्षतिग्रस्त करते हैं। सांस की ब्रोन्कियल ट्यूब सिकुड़ जाती है और सूजन आ जाती है। लंग्स टिशूज में लचीलापन कम होने लगता है। फेफड़े सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, जिससे मूलतः खांसी-जुकाम, गला खराब होना, बलगम ज्यादा होना, सांस लेने में दिक्कत होना, सीओपीडी, आईएलडी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी रेस्पेरेटरी समस्याएं होती हैं। इसके अलावा सांस की नली में मौजूद प्रदूषक तत्व डिजाल्व होकर
पीएम-2.5 के छोटे कण से हो सकती है ये बड़ी बीमारियां
पीएम-2.5 से छोटे हो जाते हैं। ये प्रदूषक तत्व लंग्स में ना जाकर ब्लड में पहुंच जाते हैं। ब्लड के साथ सर्कुलेट होकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचकर नुकसान पहुचाते हैं। आंखों में इचिंग होना, लालिमा आना, थकावट होना, आंख-नाक, त्वचा और बाल रूखे और बेजान हो जाते हैं।
-हार्ट आर्टिरीज में पहुंचकर कार्डियोवैस्कुलर या हार्ट और ब्रेन की नसों में बदलाव लाते हैं, जिसकी वजह से हार्ट अटैक या स्ट्रोक होना, लकवा, कैंसर, डायबिटीज जैसी नॉन कम्यूनिकेबल डिजीज भी प्रदूषण से जुड़ी हुई हैं। ज्यादा एक्सपोज होने पर प्रदूषक तत्व साइटोकाइन हार्मोन या केमिकल्स के साथ रिएक्ट करते हैं। शरीर में इन्फ्लेमेशन पैदा करते हैं और लंबे समय तक होने वाली बीमारियों का कारण बनते हैं।
किसे है ज्यादा खतरा
सबसे ज्यादा खतरा बच्चे और उम्र दराज कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों और पहले से क्रॉनिक हेल्थ डिजीज से जूझ रहे लोगो को होता है। इसलिए इस दौरान इनका ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत होती है।
इन बातों का रखें ध्यान
-घर में एयर-वेंटिलेशन का पूरा ध्यान रखें। अगर बाहर वातावरण में स्मॉग प्रदूषण ना हो और सनलाइट आ रही हो, तो सुबह उठने पर खिड़की-दरवाजें थोड़ी देर के लिए खोल दें। बहुमंजिला बिल्डिंग में रहने वाले खासतौर पर इसका ध्यान रखें। अगर घर ऐसी जगह हो, जहां एयर पॉल्यूशन का लेवल बहुत ज्यादा है और घर में वेंटिलेशन की कमी है, तो एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल कर सकते हैं।
-डेंगू, मलेरिया, जीका जैसी मच्छरजनित बीमारियों से बचने के लिए घर में पानी जमा ना होने दें, फुल लेंथ की ड्रेस पहनें, सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करें।
-घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। नियमित रूप से डस्टिंग करें। यहां तक कि चादरें, रजाई, कंबल, पर्दों, डोर मैट्स, कालीन को भी नियत अंतराल के बाद बराबर धोते रहें या वैक्यूम क्लीनर से साफ करते रहें।
-घर में अगर पालतू जानवर हों, तो उनसे यथासंभव दूरी बनाकर रखें, क्योंकि उनके फर आपके श्वसन तंत्र में पहुंचकर सांस संबंधी समस्याएं ट्रिगर कर सकते हैं।