Ganesh Chaturthi 2022: यहां पढ़िए मूषक क्यों है भगवान गणेश की सवारी से लेकर उनके एकदंत कहलाने तक की कई रोचक कहानियां

Ganesh Chaturthi 2022 यहां पढ़िए भगवान गणेश से जुड़ी कई अहम कहानियां और किस वजह से पड़े उनके कई नाम।;

Update: 2022-08-30 12:49 GMT

Ganesh Chaturthi 2022: हिंदू धर्म से जुड़े पवित्र वेदों और पुराणों में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय माना गया है, जिसका अर्थ है कि किसी भी पूजन और अनुष्ठान की शुरुआत में सबसे पहले भगवान गणेश की आराधना की जाती है। भारत में गणेश चतुर्थी को बप्पा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, इस बार यह 11 दिवसीय त्यौहार कल से शुरू हो रहा है। हम सभी इस बात को बहुत अच्छे से जानते हैं कि भारत में गणेश चतुर्थी का क्रेज अलग ही लेवल का होता है। सभी लोग बप्पा के आगमन की खुशी से उत्साहित होते हैं, गणेश चतुर्थी आने से कई दिनों पहले से इसकी रौनक बाजारों में दिखने लगती है, हर तरफ उत्साह और उमंग का माहौल होता है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको भगवान गणेश के जीवन से जुड़े कई अहम तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं, आप में से बहुत से लोग इन बातों को पहले से भी जानते होंगे। लेकि जो लोग इन बातों को नहीं जानते हैं वह गणेश जी के वर्तमान स्वरुप और उनको मिले कई नामों के बारे में जान पाएंगे। तो आइये शुरू (Ganesh Chaturthi Special) करते हैं:-

भगवान गणेश की सवारी 'मूषक'

मूषक राज को लेकर कई कहानियां आपको सुनने को मिल सकती हैं, कुछ लोगों का मानना है कि मूषक राज पहले असुर हुआ करते थे। जिसनें आम जन-मानस का जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया था। तब गणेश जी ने उस असुर को हराकर सभी की रक्षा की और असुर ने गणपति जी से माफी मांगी और उनकी शरण में आ गया तभी से वह मूषकराज यानी बप्पा के वाहन बन गए। दूसरी कहानी है कि पहले के समय में लोगों के जीवन का मुख्य स्त्रोत कृषि हुआ करता था। चूहों ने लोगों कि फसलों को तहस-नहस कर दिया था और उनके लिए बहुत बड़ी समस्या बन गए थे। अगर लोगों की माने तो भगवान गणेश द्वारा अपने वाहन के रूप में एक चूहे को चुनना, लोगों की समस्याओं के निवारण और भगवान की जीत का प्रतिक है। वहीं कई लोगों का मानना है कि चूहा भगवान गणेश के वाहन के रूप में इसलिए कार्य करते हैं क्योंकि चूहे तंग जगहों पर भी आसानी से जा सकते हैं, साथ ही वह अपनी बाधाओं को बुद्धिमता से सुलझाने में सक्षम होते हैं।

भगवान गणेश कैसे कहलाए 'एकदंत'?

अगर आपने कभी भगवान गणेश की मूर्ति को ध्यान से देखा होता तो आपने नोटिस किया होगा कि भगवान का एक दांत टुटा हुआ है। कहा जाता है कि गणेश जी ने महाभारत को लिखने के लिए अपने इस दांत का इस्तेमाल किया था। बिना रुके लिखने कि शर्त के चलते गणेश जी ने अपने दांत को तोड़ दिया और उससे लिखना शुरू कर दिया था। वहीं कई पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक कहानी यह भी है कि भगवान परशुराम जी जब कैलाश पर भगवान शिव से मिलने आये तब महादेव अपने ध्यान में बैठे हुए थे और गणेश जी ने परशुराम जी को महादेव से मिलने से रोक दिया। तब क्रोश में आकर परशुराम जी ने भगवान गणेश पर शिवजी जी के फरसे से वार कर दिया और अपने पिता का मान रखते हुए भगवान गणेश ने वो प्रहार अपने दांत पर ले लिए जिसके बाद वह एकदंत कहलाए।

भगवान गणेश को कैसे मिला 'हाथी का सिर'

ऐसा कहा जाता है कि, देवी पार्वती ने अपने उबटन के मैल से एक पुतला बनाया था, जिसमें प्राण डालकर उन्होंने भगवान गणेश को जन्म दिया था। माता पार्वती ने गणेश जी को स्नानघर की पहरेदारी का आदेश दिया था और गणेश जी ने अपने पिता भोलेनाथ को माता पार्वती से मिलने नहीं दिया। जिसके परिणामस्वरूप भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया। माता पार्वती की नाराजगी के बाद गणेश जी के लिए कुछ शर्तों के साथ नए सिर की खोज की जाने लगी, कथाओं के अनुसार, तलाशकरते हुए देवताओं को पहला प्राणी उन सभी शर्तों को पूरा करते हुए जो मिला वह एक हाथी था। जिसके बाद गणेश जी को हाथी का सिर लगाकर जीवन दिया गया और उनका नाम गजानन पड़ गया।

भगवान गणेश ने की महाभारत की रचना 

पौराणिक कथा के अनुसार, गणेश ने महाभारत को ऋषि वेद व्यास के कहने पर लिखा था। दरअसल, ऋषि व्यास ने भगवान गणेश के सामने यह शर्त रखी थी कि गणेश न केवल महाकाव्य की रचना करेंगे, बल्कि हर श्लोक को समझेंगे। इसके साथ ही ऋषि व्यास इसे पढ़ते समय नहीं रुकेंगे और भगवान गणेश को भी बिना रुके महाभारत को लिखना होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाकाव्य को समाप्त करने के लिए उन दोनों को तीन साल नॉनस्टॉप बोलना और लिखना पड़ा।

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