Ectopic Pregnancy : प्रेग्नेंसी के दौरान आते हैं चक्कर या होती है इंटरनल ब्लीडिंग तो भूलकर भी न करें नजरअंदाज, वरना...

एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic Pregnancy) के दौरान कई मामलों में लापरवाही बरतने से गर्भवती महिला (Pregnent Women) की जान भी जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि कंसीव करने के बाद पूरे गर्भावस्था में रेग्युलर मेडिकल चेकअप (Medical Checkup) करवाएं और कोई लापरवाही ना बरतें।;

Update: 2021-10-16 12:14 GMT

Ectopic pregnancy :  एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic Pregnancy) के दौरान कई मामलों में लापरवाही बरतने से गर्भवती महिला (Pregnent Women) की जान भी जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि कंसीव करने के बाद पूरे गर्भावस्था में रेग्युलर मेडिकल चेकअप (Medical Checkup) करवाएं और कोई लापरवाही ना बरतें।  जल्द इलाज ना कराए जाने पर फेलोपियन ट्यूब के क्षतिग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है। तेजी से इंटरनल ब्लीडिंग होती है। कई बार महिला को चक्कर आने लगते हैं और वे बेहोश भी हो जाती हैं। इसलिए ध्यान रखता है जरूरी। 


एक्टोपिक प्रेग्नेंसी ट्रीटमेंट (Ectopic Pregnancy Treatment)

दिल्ली के बत्रा अस्पताल की सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. शैली बत्रा बताती हैं कि सामान्यत: एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic Pregnancy) का पता चलने पर गर्भवती महिला की सुरक्षा के लिहाज से डॉक्टर भ्रूण को जल्द से जल्द खत्म करने या गर्भपात कराने की सलाह देते हैं। वैसे इसका इलाज मूल रूप से महिला की शारीरिक स्थिति पर निर्भर करता है। यह भी देखा जाता है कि भ्रूण कहां प्रत्यारोपित हुआ है और कितना बड़ा हो चुका है। अगर प्रेग्नेंसी की शुरुआत (5-6 सप्ताह के भीतर) में ही इसका पता लगा लिया जाता है, तो इंजेक्शन और मेथोट्रेक्सेट मेडिसिन से इसके विकास को रोका जा सकता है। लेकिन अगर भ्रूण बड़ा हो गया है यानी 8-10 सप्ताह हो चुके हैं, तो लेप्रोस्कोपिक सर्जरी (Laparoscopy Surgery) का सहारा लिया जाता है। फेलोपियन ट्यूब (Fallopian Tubes) के फटने पर होने वाली इंटरनल ब्लीडिंग (Internal Bleeding) को रोकने और महिला को बचाने के लिए लेप्रोस्कोपिक सर्जरी ही लास्ट ऑप्शन होता है।

महिलाओं पर क्या पड़ता है एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का इफेक्ट

जिन महिलाओं को एक बार एक्टोपिक प्रेग्नेंसी हो जाती है, दोबारा कंसीव करने पर एक्टोपिक प्रेग्नेंसी होने की 50 प्रतिशत संभावना रहती है। अगर फेलोपियन ट्यूब को कोई क्षति नहीं पहुंची है या 2 में से एक ट्यूब बिल्कुल सही हो, ट्यूबरकुलोसिस, ट्यूबल एंडोमेट्रिओसिस या पेट के दूसरे इंफेक्शंस उपचार से ठीक हो गए हों, तभी भविष्य में नॉर्मल प्रेग्नेंसी हो सकती है। लेकिन इसके लिए भी महिला को पूरी सतर्कता बरतनी जरूरी है। सबसे पहले उसे दोबारा कंसीव करने के लिए अपने डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए। डॉक्टर उन्हें इसके लिए कम से कम 3-4 महीने और अगर सर्जरी हुई हो, तो घाव पूरी तरह ठीक होने तक यानी 6-8 महीने तक के इंतजार करने की सलाह देते हैं। दोबारा प्रेग्नेंट होने पर जरूरी है कि शुरू से ही रेग्युलर चेकअप कराया जाए और कुछ भी प्रॉब्लम होने पर डॉक्टर को बताया जाए ताकि उसका समय पर उपचार किया जा सके।

किन महिलाओं को होती सकती है एक्टोपिक प्रेग्नेंसी

सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. शैली बत्रा कहती हैं कि एक्टोपिक प्रेग्नेंसी किसी भी महिला को हो सकती है, लेकिन कुछ स्थितियों में इसकी संभावना बढ़ जाती है।

1-महिला को ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) होने से पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज रहा हो। 

2-ट्यूबल एंडोमेट्रिओसिस हो, फेलोपियन ट्यूब में खराबी हो जिससे अंडों का मूवमेंट अवरुद्ध या धीमा हो, इंफेक्शन हो। 

3-महिला का पहले किसी तरह का सीजेरियन ऑपरेशन हो चुका हो।

4-गर्भनिरोधक कॉइल (यूआईडी) लगवाई हुई हो। 

5-गर्भनिरोधक पिल्स ले रही हो। 

6-पहले भी एक्टोपिक प्रेग्नेंसी रही हो। 

7-महिला की उम्र 35 वर्ष से अधिक हो। 



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