Happy Women's Day: निडरता के साथ रास्ते की हर बाधा को पार कर सफल होती हैं महिलाएं, पढ़िए संघर्ष की पूरी कहानी
Happy Women's Day 2022: आज महिलाएं तमाम बाधाओं को पार कर, अपने आपको साबित कर रही हैं, निरंतर अपनी पहचान बना रही हैं। पूरी तत्परता और निडरता के साथ वे प्रगति पथ पर आगे बढ़ रही हैं, लेकिन वे और ज्यादा विकास करें, नित्य नई ऊंचाइयां छूएं, इसके लिए जरूरी है उनके अनुकूल माहौल बने, उन्हें मूलभूत सुविधाएं मिलें।;
Happy Women's Day: घर की दुनिया हो या खेल का मैदान या फिर मल्टीनेशनल कंपनी का बोर्डरूम, शासन-प्रशासन, यहां तक कि सत्ता के गलियारे, हर क्षेत्र में आधी आबादी (Women) ने यह साबित किया है कि वह घर के साथ-साथ बाहर भी अपनी सशक्त भूमिका निभा सकती है। आज की महिला रूढ़िगत परंपराओं की बेड़ियां (Shackles of Customary Traditions) तोड़कर नई उड़ान भर सकती है, अपनी पहचान बना सकती है। जी हां, महिलाओं ने अब ठान लिया है कि वे नहीं रुकेंगी, तमाम बाधाओं (Many Obstacles) के बावजूद चलती रहेंगी। फिर चाहे वे शहरी महिला हो या किसी पिछड़े गांव की, जो आज सरपंच बनने की योग्यता रखती है, गांव का विकास कर सकती है।
कर रही हैं निरंतर संघर्ष (Continuous Struggle)
यह समाज की विडंबना ही तो है, घर हो या दफ्तर, यहां तक कि सरकार और शासन में भी, जब कभी महिलाओं को सशक्त बनाने बात होती है तो काम कम, चर्चा ज्यादा होती है। इससे महिलाएं निराश होती हैं लेकिन वे अपने स्तर पर प्रयासरत हैं और कामयाब भी हो रही हैं। जिस देश की संसद में महिलाएं 33 फीसदी आरक्षण के लिए संघर्ष कर रही हैं, उसी देश में ऐसी महिलाएं भी हैं, जो अपने हिस्से का संघर्ष कर छोटी-बड़ी राजनीतिक कामयाबी हासिल कर रही हैं। निडर होकर लीडर बन रही हैं।
मंजिल की राह पर (On Way To Success)
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आते ही महिलाओं की प्रगति, उनकी समस्याओं, उनके साथ होने वाली हिंसा, अत्याचार, उनकी असुरक्षा से जुड़े सवालों पर चर्चा होती है। कहीं सेमीनार आयोजित किए जाते हैं तो कहीं नारीवादी संगठन फेमिनिज्म को हवा देने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते दिखते हैं। हम सब जानते हैं, इंटरनेशनल वुमेंस-डे की शुरुआत महिलाओं के काम करने के अधिकार, उनकी प्रगति और समाज में उनकी सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से हुई थी। इससे महिलाओं के विकास की एक राह बनी। आज वे हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर रही हैं, अपनी कामयाबी का परचम लहरा रही हैं। आईटी, बीपीओ और बड़ी-बड़ी कंपनियों में महिलाओं की उपस्थिति को देखा जा सकता है। वे मैनेजर हैं, बैंकर हैं, सीईओ हैं, डायरेक्टर हैं और प्रेसीडेंट भी हैं। आज बिजनेस की फील्ड में जेंडर को लेकर की जाने वाले भिन्नता काफी कम हुई है। हमें यह समझना होगा कि अगर अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ करना है तो महिलाओं की सक्रिय भूमिका को स्वीकारना ही होगा। सच कहा जाए तो अब महिलाओं को नकारने की स्थिति है भी नहीं। हर ओर से महिलाएं उठ खड़ी हुई हैं। राष्ट्रीय स्तर पर ममता बनर्जी हों या निर्मला सीतारमण या अंतरराष्ट्रीय फलक पर मलाला यूसूफजई और ग्रेटा थनबर्ग जैसी कम उम्र की युवतियां, बदलाव की नई इबारत लिख रही हैं। मलाला विश्व की सबसे कम उम्र में शांति का नोबेल पुरस्कार पाने वाली युवती हैं। पाकिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों ने इनकी हत्या का प्रयास किया, क्योंकि वह लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही थीं, जबकि तालिबान ने पढ़ाई पर रोक लगाई हुई थी। आज मलाला करोड़ों लड़कियों की प्रेरणा बन चुकी हैं। उनके सम्मान में संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष 12 जुलाई को 'मलाला दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की। कमला हैरिस ने भी एक इतिहास रचा है। वह अमेरिका की पहली अश्वेत और पहली एशियाई अमेरिकी उप-राष्ट्रपति हैं।
तोड़ रही हैं रूढ़िवादी बेड़ियां (Breaking Conservative Shackles)
आज हर क्षेत्र में ऐसी महिलाओं के लंबी सूची है, जिनकी उपस्थिति को सैल्यूट किए बिना नहीं रहा जा सकता है। खासकर भारतीय समाज में, जहां महिलाओं को केवल घर संभालने और रूढ़िगत परंपराओं में उलझे रहने की उम्मीद की जाती थी। उनकी कंडीशनिंग इस तरह की गई है कि वे घर के बाहर जाकर अपनी पहचान बनाने के बारे में सोचेंगी तो उन्हें पाप लगेगा। लेकिन उन्होंने तमाम बंधनों, परंपराओं को तोड़ा और अपने अस्तित्व को एक आकार दिया। साथ ही घर को भी पूरी जिम्मेदारी से संभाला, परिवार की डोर कभी छोड़ी नहीं, उसका महत्व समझा। इसमें कोई दो मत नहीं कि आज भारतीय महिलाओं ने अपने आप को गिल्ट के दायरे से बाहर निकाला है, असफल होने के डर से खुद को मुक्त किया है।
तैयार करना होगा सपोर्ट सिस्टम (Have to Build Support System)
समाजशास्त्री मानते हैं कि महिलाओं को सबसे पहले अपनी असफलताओं को लेकर परेशान होना छोड़ देना चाहिए। अपने विकास के लिए परिवार और करियर के बीच एक बैलेंस बनाए रखना होगा। इसके लिए महिलाओं को एक सपोर्ट सिस्टम तैयार करना होगा। महिलाओं को बीच राह में अपने प्रयास नहीं छोड़ने होंगे। कुछ महिलाएं जब डिलीवरी के बाद दुबारा काम पर आती हैं तो उन्हें लगता है कि इतने दिनों में जो नए बदलाव हो चुके हैं, वो कहीं उन्हें पीछे न धकेल दे। इसलिए महिलाएं इस बात को समझें कि अपडेट रहना तरक्की की पहली शर्त है। तमाम बाधाओं के बावजूद अगर वे अपने पेशे से जुड़ी ट्रेनिंग लें तो इससे आगे बढ़ने की राह में सहायता मिलेगी। इंफोसिस जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों को किसी बाहरी गाइड से मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जिससे महिलाएं खुद को अपडेट रख सकें। कहने का आशय है कि कार्यक्षेत्र में उनके लिए एक सपोर्ट सिस्टम की जरूरत है। जैसे क्रेश, फ्लैक्सी वर्क टाइम, चाइल्ड केयर सेंटर आदि। इस तरह सरकार और कंपनियों की सही नीतियां सकारात्मक बदलाव के लिए वातावरण तैयार कर सकती हैं, महिलाओं के विकास के रास्ते बना सकती हैं।
लेखक
सुमन बाजपेयी (Suman Bajpayee)