डायबिटीज से बचना चाहते हैं तो एक्टसपर्ट्स की ये सलाह आपको जरूर माननी चाहिए

यह चिंताजनक है कि पूरी दुनिया में ही नहीं अपने देश में भी डायबिटीज पेशेंट्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हालांकि अनेक वजहों के अलावा मेनली डिसबैलेंस लाइफस्टाइल से होने वाली इस डिजीज से बचाव संभव है। लेकिन अगर आप इसके शिकार हो जाते हैं तो भी कुछ बातों का ध्यान रखकर इसे कंट्रोल कर सकते हैं। इस बारे में डिटेल में जानिए।;

Update: 2021-11-21 11:34 GMT

आज के दौर में केवल ओल्ड एज ही नहीं यंग और मिड एज के लोग भी डायबिटीज के शिकार हो रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया में तकरीबन 53 करोड़ 7 लाख लोग इससे पीड़ित हैं, जिनमें करीब 7 करोड़ डायबिटीज पेशेंट भारत में हैं और कई लोग इसके मरीज बनने की कगार पर खड़े हैं। यहां दिल्ली डायबिटीज रिसर्च सेंटर के चेयरमैन डॉ. अशोक झिंगन की ओर से डायबिटीज (Diabetes ) को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें बताई जा रही है, जिन्हें आप अपने लाइफ में फॉलो कर सकते हैं। 

क्या है डायबिटीज (What is Diabetes )

डायबिटीज मेटाबॉलिक डिजीज है, जिसमें ब्लड में इंसुलिन की कमी हो जाती है और शुगर या ग्लूकोज का लेवल सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है। इस शुगर को पेंक्रियाज ग्लैंड में बनने वाला इंसुलिन हार्मोन कंट्रोल में रखता है। इंसुलिन भोजन से प्राप्त ग्लूकोज को अवशोषित कर ब्लड के जरिए सेल्स तक पहुंचाता है और शरीर को एनर्जी प्रदान करता है। लेकिन कई कारणों से शरीर में इंसुलिन का उत्पादन नहीं हो पाता या जरूरत से कम होता है या इंसुलिन रेजिस्टेंस या असर कम हो जाता है। इसकी वजह से इंसुलिन का उपयोग ठीक तरह से नहीं हो पाता और ब्लड में शुगर का लेवल बढ़ जाता है। इसका बढ़ा हुआ लेवल लंबे समय तक बने रहने से व्यक्ति डायबिटीज का शिकार हो जाता है।

डायबिटीज के प्रकार

प्री-डायबिटीज या इंपेयर्ड ग्लूकोज टॉलरेंस (आईजीटी): प्री-डायबिटीज के पेशेंट्स में फास्टिंग शुगर बहुत ज्यादा आती है क्योंकि इनके लिवर से रात के समय शुगर बहुत बनती है। लेकिन खाना खाने के बाद का शुगर टेस्ट नॉर्मल होता है। मरीज को कमजोरी, थकावट, तनाव बहुत ज्यादा होता है। समुचित उपचार न किए जाने पर 4-5 साल बाद इन्हें टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा रहता है।

टाइप 1 डायबिटीज: आंकड़ों की माने तो कुल डायबिटीज मरीजों का तकरीबन 10 प्रतिशत टाइप 1 पीड़ित होते हैं। आनुवांशिक बीमारी होने के कारण छोटे बच्चे और किशोर भी इसका शिकार होते हैं। कई मामलों में वायरल फीवर के बाद, इंफेक्शन से और अनहेल्दी खान-पान से भी बच्चों को डायबिटीज हो सकती है। ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के लिए रोजाना इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है।

टाइप 2 डायबिटीज: डायबिटीज के 90 प्रतिशत मरीजों को टाइप 2 बीमारी होती है। टाइप 2 डायबिटीज जहां पहले बड़ी उम्र के लोगों में देखने को मिलती थी, आज वह बच्चों और 25-30 साल के युवाओं में भी मिलती है। ब्लड में शुगर लेवल जब बहुत बढ़ जाता है और यूरीन के माध्यम से बाहर निकलने लगता है, इस स्थिति को इंसुलिन रेजिस्टेंस या टाइप 2 डायबिटीज कहते हैं।

रोग के कारण

डायबिटीज होने का मुख्य कारण आनुवांशिक या फैमिली हिस्ट्री हैं। खराब जीवनशैली और पर्यावरणीय कारकों की वजह से यह बहुत तेजी से बढ़ती है।

-आरामपरस्त जीवनशैली

-अनियमित खान-पान

-मीठे व्यंजनों का अधिक सेवन

-फास्ट फूड का सेवन

-तनाव

-देर रात तक जागना

-नींद पूरी न होना

-वजन ज्यादा होना।

इनके अलावा जिनका बीपी हाई रहता है, कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ा हो, इनएक्टिव लाइफस्टाइल बिताते हैं, मोटापे के शिकार हैं, स्मोकिंग या एल्कोहल का नियमित सेवन करते हैं, उन्हें डायबिटीज का रिस्क बढ़ जाता है।

ऐसे करें बचाव

-सेल्फ केयर, डिसिप्लींढ लाइफस्टाइल और हेल्दी डाइट से डायबिटीज को कंट्रोल ही नहीं, रिवर्स भी किया जा सकता है और नॉर्मल लाइफ जी सकते हैं।

- सुबह जल्दी उठें। 8 घंटे की नींद जरूर लें। खाना समय पर खाएं और रेग्युलर फिजीकली एक्टिव रहें।

-30 साल के बाद प्रतिवर्ष ग्लूकोज टेस्ट जरूर कराएं। फैमिली हिस्ट्री, ओबेसिटी, पीसीओडी से ग्रसित महिलाएं डायबिटीज स्क्रीनिंग जरूर करवाएं।

-वजन नियंत्रित रखें। रोजाना सुबह या शाम कम से कम 50 मिनट व्यायाम जरूर करें। साइकलिंग, स्वीमिंग, योगा, सीढ़ियां चढ़ना-उतरना, रस्सी कूदना कर सकते हैं। रोजाना 7 हजार कदम चलना फायदेमंद है। डिनर के बाद भी 20-30 मिनट जरूर टहलें। मसल्स टोनिंग या स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज भी कर सकते हैं।

उपचार

डायबिटीज की स्थिति के आकलन के लिए नियमित रूप से डॉक्टर को कंसल्ट किया जाना चाहिए और मेडिसिन लेनी चाहिए। रेग्युलर मॉनिटर करने पर शुगर लेवल में आए उतार-चढ़ाव के हिसाब से मेडिसिन के डोज को कम-ज्यादा कर सकते हैं।

टाइप 2 डायबिटीज से बचने के लिए डॉक्टर सबसे पहले मरीज को हेल्दी लाइफस्टाइल और हेल्दी फूड हैबिट्स अपनाने के लिए कहते हैं। इसके बावजूद स्थिति में सुधार नहीं होने पर उन्हें मेडिसिन दी जाती है, जिन्हें नियम से लेना जरूरी है। मेडिसिन से शुगर कंट्रोल न हो पाने पर मरीज को रेग्युलर इंसुलिन के इंजेक्शन दिए जाते हैं।

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