अगर आप चाहती हैं बच्चा ना हो गुस्सैल

बच्चों का गुस्सैल स्वभाव पैरेंट्स के लिए समस्या बन जाता है। उन्हें समझ में नहीं आता, इसका कारण क्या है? लेकिन इसका कारण कहीं न कहीं खुद पैरेंट्स का व्यवहार होता है। इसलिए पहले खुद को बदलें, इसके बाद बच्चा के स्वभाव में भी बदलाव आएगा, वह गुस्सैल नहीं बनेगा।;

Update: 2021-02-02 19:15 GMT

पैरेंटिंग पर काउंसलिंग देने वाले एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ रिश्ते को प्यार, देखभाल, आपसी तालमेल के जरिए निभाएं। दरअसल, बचपन ही वह समय होता है, जब पैरेंट्स उनमें जीवनभर के लिए अपने प्रति प्यार और सम्मान विकसित कर सकते हैं। जबकि ज्यादातर पैरेंट्स ऐसा नहीं करते हैं। पैरेंट्स बच्चों पर गुस्सा होते हैं, कई तो हाथ भी उठाते हैं। पैरेंट्स का गुस्सैल स्वभाव बच्चों को भी गुस्सैल बना देता है। अगर आप चाहती हैं, आपका बच्चा गुस्सैल न बने तो खुद गुस्सा न करें। सबसे पहले आप अपने गुस्सैल व्यवहार के बुरे परिणामों को जानें-

बच्चे के मन में बैठता है डर

जो पैरेंट्स गुस्से में अपने बच्चे पर हाथ उठाते हैं, वह ऐसा बच्चे पर अपना अधिकार जताने की हताशा के चलते करते हैं। इससे न सिर्फ बच्चे के दिल पर चोट लगती है बल्कि उसके मासूम मन में डर बैठ जाता है। इससे बच्चे और पैरेंट्स के रिश्ते में दूरी बढ़ती है। मिठास-प्यार खत्म होता है।

सम्मान की भावना होती है खत्म

बच्चों के साथ मारपीट, गुस्सैल व्यवहार के जरिए पैरेंट्स जिस अधिकार को पाने की कोशिश करते हैं, वह कभी हासिल नहीं कर सकते। बच्चे को पीटकर पैरेंट्स भले ही कुछ समय के लिए उसे काबू कर लें, लेकिन यह कंट्रोल असल में होता नहीं। एक समय ऐसा आता है, जब बच्चा पैरेंट्स का सम्मान करना छोड़ देता है। विरोध के तौर पर वह छिपकर अपने मन की करने लगता है।

अविश्वास से भरता रिश्ता

अकसर पैरेंट्स की डांट या मार के बाद बच्चा अपनी राय नहीं बदलता बल्कि पैरेंट्स के लिए गुस्से और अविश्वास से भर जाता है। नतीजा यह होता है कि वह अपनी तमाम राय पैरेंट्स से शेयर करना बंद कर देता है। उसे लगने लगता है, उसके पैरेंट्स तो उसकी बात समझेंगे ही नहीं। इस धारणा के बाद बच्चा न सिर्फ अपने पैरेंट्स के लिए कड़वाहट से भर जाता है बल्कि उनकी हर बात पर गुस्सा होने लगता है।

संभव है समाधान

सॉरी बोलना सीखें : कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अपने बच्चे से जुड़ी किसी खास घटना या व्यवहार की पैरेंट्स की समझ बच्चे की वास्तविकता से बहुत अलग होती है। वे जिस तरह से उसे समझते हैं, उससे उन्हें गुस्सा आ जाता है और वे बच्चे को डांट देते हैं। बाद में पैरेंट्स को अहसास होता है कि सच उनके अंदाजे से अलग था। पैरेंट्स के लिए यह स्थिति अपराधबोध वाली होती है। लेकिन आमतौर पर अपने ईगो के कारण, पैरेंट्स अपने किए की बच्चे से माफी नहीं मांगते। जबकि उन्हें ऐसा करना चाहिए।

बच्चे को भरोसे में लें : अपने बच्चे को पैरेंट्स हमेशा ये भरोसा दें कि वह अपनी राय और धारणा उनके सामने खुलकर रख सकता है, वह भी बिना किसी तरह का पूर्वाग्रह पाले।

खुद की कमजोरी को स्वीकारें : अगर पैरेंट्स नहीं चाहते कि बच्चा गुस्सैल स्वभाव का बने तो सबसे पहले खुद बात-बात पर गुस्सा करना छोड़ना होगा। हर समस्या का ठंडे दिमाग से हल ढूंढ़ना होगा। इसके लिए सबसे पहले जरूरी यह है, वे मानें कि गुस्सा होना हमारी स्वभावगत कमजोरी है। इसे स्वीकार करने के बाद ही उस सबक को सीख सकते हैं, जिसके बल पर चीजों को बेहतर और शांत रखा जा सकता है। पैरेंट्स अगर अपने गुस्से को कंट्रोल करना सीख लेंगे तो शांत, संतुलित रहेंगे। इसका असर बच्चे पर भी पड़ेगा। उसका स्वभाव भी गुस्सैल नहीं रहेगा। इस तरह जब पैरेंट्स बच्चे के साथ प्यार भरा व्यवहार करेंगे तो उसके व्यवहार में भी प्यार, शांति शामिल हो जाएगी। बच्चा धीरे-धीरे बदलने लगेगा।

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