ज्ञानवापी विवाद: असदुद्दीन ओवैसी ने मोहन भागवत के बयान पर दी प्रतिक्रिया, बोले- इन मुद्दों पर आश्वासन देने के लिए मोहन...

समाचार एजेंसी एएनआई के साथ बातचीत के दौरान एआईएमआईएम प्रमुख ने कहा, ज्ञानवापी पर भागवत के भाषण को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।;

Update: 2022-06-04 05:20 GMT

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन असदुद्दीन (AIMIM- एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने शुक्रवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS- आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) द्वारा ज्ञानवापी विवाद (Gyanvapi controversy) पर की गई टिप्पणियों की आलोचना है। उनका कहना है कि विहिप (VHP) से पहले अयोध्या (Ayodhya) संघ के एजेंडे में भी नहीं था। 

समाचार एजेंसी एएनआई के साथ बातचीत के दौरान एआईएमआईएम प्रमुख ने कहा, ज्ञानवापी पर भागवत के भाषण को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। बाबरी मस्जिद के लिए आंदोलन को याद करें जो ऐतिहासिक कारणों से जरूरी था। उस समय आरएसएस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सम्मान नहीं किया था और फैसले से पहले मस्जिद के विध्वंस में भाग लिया। क्या इसका मतलब यह है कि वे ज्ञानवापी पर भी कुछ ऐसा ही करेंगे?

ओवैसी ने भाजपा प्रमुख जगत प्रकाश नड्डा और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा दिए गए देश में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के आश्वासन पर भी सवाल उठाया। इन मुद्दों पर आश्वासन देने के लिए मोहन या नड्डा कौन हैं? उनके पास कोई संवैधानिक पद नहीं है। प्रधानमंत्री कार्यालय को इस मुद्दे पर और पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के बारे में स्पष्ट संदेश दें। उन्होंने संविधान की शपथ ली है। अगर वह इस पर कायम रहते हैं, तो इन सभी हिंदुत्व को रोकना होगा।

उन्होंने कहा विश्व हिंदू परिषद (आरएसएस का एक संगठन) बनने से पहले अयोध्या मंदिर संघ के एजेंडे में भी नहीं था। 1989 में ही भाजपा के पालनपुर प्रस्ताव में कहा गया था कि अयोध्या एजेंडे का हिस्सा बन गया है। आरएसएस ने राजनीतिक दोहरेपन को सिद्ध किया है। काशी, मथुरा, कुतुब मीनार आदि को उठाने वाले सभी जोकरों का संघ से सीधा संबंध है। विशेष रूप से विश्व हिंदू परिषद का गठन 1964 में आरएसएस नेताओं एमएस गोलवलकर और एसएस आप्टे द्वारा किया गया था। आरएसएस का गठन सितंबर 1925 में हुआ था।

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