Ram Mandir Case : इलाहबाद हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को 9 साल पूरे, सुप्रीम कोर्ट में वही रिपोर्ट बन रही फैसले का आधार

Ayodhya Case / राम मंदिर मामले पर 30 सितंबर 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने फैसला दिया था। इसके बाद मामला देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में है। जिस रिपोर्ट के आधार पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया था अब वही रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी आधार बन रही है।;

Update: 2019-09-29 12:46 GMT

अयोध्या (Ayodhya) में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद (Ram Janmabhoomi-Babri Masjid) मामले में इलाहबाद हाइकोर्ट ने 30 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। 30 सितंबर 2010 को 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांटने के आदेश दिए थे। इलाहबाद हाइकोर्ट के आदेश के 9 साल बाद अब आगामी 18 दिन में सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा। सुप्रीम कोर्ट में भी वहीं रिपोर्ट फैसले का आधार बन रही है जिसके आधार पर हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया था। 

राम जन्मभूमि के मालिकाना हक को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में लगातार सुनवाई जारी है। 30 सितंबर 2010 के बाद से अयोध्या का मामला देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में है। कोर्ट इस पर अभी तक अपना फैसला नहीं सुना पाया है। सीजेआई रंजन गोगोई (CJI Ranjan Gogoi) ने अयोध्या मामले (Ayodhya Case) में सुनवाई के 32वें दिन फैसले की तारीख को तय कर दी है। रंजन गोगोई ने 18 अक्टूबर तक सभी पक्षों को अपनी दलीलें पूरी करने का आदेश दिया है।


पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट पर टिका मामला

हाई कोर्ट ने यह फैसला पुरातत्व विभाग (एएसआई) की रिपोर्ट के आधार पर दिया था। पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट बताया गया था कि खुदाई के दौरान विवादित स्थल पर मंदिर के प्रमाण मिले थे। कोर्ट ने इसमें भगवान राम के जन्म होने की मान्यता को भी शामिल किया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा था 450 साल से मौजूद एक इमारत के ऐतिहासिक तथ्यों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।

अब यही एएसआई विभाग की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले में आधार बन रही है। मामले से जुड़े जस्टिस बोबड़े ने कहा कि अभी तक की सुनवाई में दोनों पक्ष पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सके हैं। दोनों पक्षों की तरफ से दी गई दलील और सबूतों के आधार पर किसी निर्णय पर पहुंचना मुश्किल है। पूरा मामला एएसआई की रिपोर्ट पर टिका हुआ है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला

नौ साल पहले 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश में अयोध्या मामले पर अहम फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट की जज सुधीर अग्रवाल, जज एसयू खान और जज डीवी शर्मा की बेंच ने अपना अहम फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था। बेंच ने तीन हिस्सो में जिसमें राम लला विराजमान वाला हिस्सा था वह हिंदू महासभा को दिया गया था। जबकि दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया था और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था।

हिंदू महासभा और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने चुनौती

इलाहबाद हाइकोर्ट के फैसले के बाद दिसंबर 2010 में हिंदू महासभा और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में 9 मई 2011 को पुरानी स्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था। तब से लेकर इस मामले में यथास्थिति बरकरार है। हालांकि सीजेआई रंजन गोगोई ने अयोध्या मामले में फैसले के लिए 18 अक्टूबर की तारीख तय की है।  

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