काम की खबर: अगर डिस्पोजेबल कप में पीते हैं चाय, तो हो जाएं सावधान, पढ़ें ये खास रिपाेर्ट

शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी दिनचर्या में चाय शामिल ना हो। हर कोई दिन में एक कप चाय तो पीता ही हैं। वही कोरोना की वजह से आजकल डिस्पोजेबल पेपर कप का ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन अगर आप भी इसे यूज करते हैं तो जरा सावधान हो जाएं।;

Update: 2020-11-08 09:09 GMT

शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी दिनचर्या में चाय शामिल ना हो। हर कोई दिन में एक कप चाय तो पीता ही है। वही कोरोना की वजह से आजकल डिस्पोजेबल पेपर कप का ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन अगर आप भी इसे यूज करते हैं तो जरा सावधान हो जाएं। हाल में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई आई टी) खड़गपुर के शोधकतार्ओं ने एक शोध में इस बात की पुष्टि की है कि डिस्पोजेबल पेपर कप में चाय और काफी पीना स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि पेपर के अंदर इस्तेमाल की गई सामग्री में सूक्ष्म-प्लास्टिक और अन्य खतरनाक घटकों की उपस्थित होते है।

रिसर्च में सिविल इंजीनियरिंग विभाग की शोधकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुधा गोयल तथा पयार्वरण इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन में अध्ययन कर रहे शोधकर्ता वेद प्रकाश रंजन और अनुजा जोसेफ के मुताबिक, 15 मिनट के अंदर यह सूक्ष्म प्लास्टिक की परत गर्म पानी या अन्य पेय की प्रतिक्रिया में पिघल जाती है। 

प्रोफेसर सुधा गोयल ने अनुसार 

प्रोफेसर सुधा गोयल ने बताया कि रिसर्च के मुताबिक, एक पेपर कप में रखा 100 मि.ली गर्म तरल पदार्थ 25000 माइक्रोन-आकार (10 माइक्रोन से 1000 माइक्रोन) के सूक्ष्म प्लास्टिक के कण छोड़ता है। इस प्रक्रिया में करीबन 15 मिनट लगते है। इसके मुताबिक अगर एक व्यक्ति दिन में 2 कप भी चाय पीता या कॉफी पीता है तो 50,000 छोटे सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों उसके शरीर के अंदर जाते हैं।

इस रिसर्च के लिए 15 मिनट का समय ही क्यों किया तय

चाय का फिर कॉफी को कप में डाले जाने के लिए 15 मिनट के भीतर ही पीया जाता है। इसी बात को लेकर इस शोध का समय तय किया गया। वही ये सूक्ष्म प्लास्टिक कणों में जहरीली भारी धातुओं जैसे पैलेडियम, क्रोमियम और कैडमियम पाए जाते हैं जोकि घुलनशील नहीं होते। जब यह व्यक्ति के शरीर में जाते हैं तो सेहत पर बुरा असर डालते हैं। वही, आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रो. वीरेंद्र के तिवारी ने कहा कि किसी भी उत्पाद के इस्तेमाल को बढ़ावे देने से पहले इस बात का ख्याल जरूर रखना चाहिए कि वह पयार्वरण के लिए प्रदूषक और जैविक दृष्टि से खतरनाक न हों। हमने प्लास्टिक और शीशे से बने उत्पादों को डिस्पोजेबल पेपर उत्पादों से बदलने में जल्दबाजी की थी, जबकि जरूरत इस बात की थी कि हम पयार्वरण अनुकूल उत्पादों की तलाश करते। 

इससे बचने के लिए इनका करें प्रयोग

इस स्थिति से बचने के लिए क्या पारंपरिक मिट्टी के उत्पादों का डिस्पोजेबल उत्‍पादों के स्‍थान पर इस्‍तेमाल किया जाना चाहिए, इस सवाल पर आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रो. वीरेंद्र के तिवारी ने कहा कि इस शोध से यह साबित होता है कि किसी भी अन्‍य उत्‍पाद के इस्‍तेमाल को बढ़ावा देने से पहले यह देखना जरूरी है कि वह उत्‍पाद पर्यावरण के लिए प्रदूषक और जैविक दृष्टि से खतरनाक न हों।

हमने प्लास्टिक और शीशे से बने उत्‍पादों को डिस्पोजेबल पेपर उत्‍पादों से बदलने में जल्‍दबाजी की थी, जबकि जरूरत इस बात की थी कि हम पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की तलाश करते हैं। भारत पारंपरिक रूप से एक स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा देने वाला देश रहा है और शायद अब समय आ गया है, जब हमें स्थिति में सुधार लाने के लिए अपने पिछले अनुभवों से सीखना होगा।

Tags:    

Similar News