केंद्र के अध्यादेश ने पलटा SC का फैसला, Ordinance में 'सुप्रीम' शक्ति? क्या इससे छिन सकते हैं आपके मूल अधिकार

केंद्र सरकार (Central Government) ने एक अध्यादेश (Ordinance ) जारी कर दिल्ली सरकार (Delhi Government) के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले को पलट दिया है। आइए आज हम आपको बताते हैं क्या होता है अध्यादेश। क्या अध्यादेश में सुप्रीम कोर्ट से भी अधिक शक्ति होती है। क्या ये आपके मूल अधिकार को भी हनन कर सकता है, पढ़ें तमाम जानकारी...;

Update: 2023-05-20 16:37 GMT

दिल्ली सरकार (Delhi Government) और केंद्र सरकार (Central  Government) के बीच जबरदस्त घमासान देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने फैसले के तहत दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग की जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार को दी थी, लेकिन केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश (Ordinance) जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया है, लेकिन क्या आपको पता है कि अध्यादेश होता क्या है, इसे केंद्र सरकार द्वारा कब जारी किया जाता है और क्या अध्यादेश के ऊपर भी कोई कानून होता है या फिर किसी मामले में अध्यादेश ही लक्ष्मण रेखा हो जाती है। आज हम आपको अध्यादेश से जुड़ी पूरी जानकारी देने वाले हैं। इस खबर को पढ़ने के बाद आपके मन में अध्यादेश से जुड़ा शायद ही कोई प्रश्न रहे।

जानिए क्या होता है अध्यादेश

बता दें कि जब संसद (Parliament) या फिर विधानसभा (Assembly) का सत्र नहीं चल रहा होता है, लेकिन ऐसी आपात स्थिति आ गई की कानून बनाना अनिवार्य हो जाए। ऐसी परिस्थिति में केंद्र और राज्य सरकार तात्कालीन जरूरतों के आधार पर राष्ट्रपति (President) या राज्यपाल (Governor) की अनुमति से अध्यादेश जारी करती है। इस जारी अध्यादेश में संसद या फिर विधानसभा द्वारा पारित कानून जैसी ही शक्तियां होती हैं, लेकिन ऐसी बात भी नहीं है कि अध्यादेश हमेशा के लिए कानून बन जाता है। अध्यादेश जारी होने के छह महीने के अंदर इसे संसद या विधानसभा के अगले सत्र में सदन में पेश करना अनिवार्य होता है। इसके बाद अगर सदन में उस विधेयक को पारित कर दिया जाता है, तो यह कानून बन जाता है, लेकिन अगर इसे सदन में पारित नहीं किया जाता है, तो यह समाप्त हो जाता है। राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास इसको लेकर कोई बंधन नहीं है कि अध्यादेश को कितनी बार लागू की जाए। इसे जितनी बार जरूरत हो, उतनी बार लागू की जा सकता है।

क्या अध्यादेश लागू कर लोगों के मूल अधिकार छिन सकते हैं

संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत कानून राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान करती है। वहीं, किसी राज्य में अध्यादेश जारी करने की शक्ति गवर्नर को संविधान के अनुच्छेद 213 के तहत दी जाती है। राष्ट्रपति अध्यादेश को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर कभी भी लागू कर सकते हैं और इसे वापस ले सकते हैं। ऐसे में अध्यादेश के तहत राष्ट्रपति के पास इतनी शक्ति होती है कि वह सुप्रीम कोर्ट तक के फैसले को बदल सकते हैं, लेकिन इसके खिलाफ याचिका देने पर सुप्रीम कोर्ट के पास अध्यादेश पर रोक लगाने का अधिकार भी होता है। ऐसे में आपके मन में एक सवाल आ रहा होगा कि जब अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल सकता है, तो यह लोगों के मूल अधिकार का भी हनन कर सकता है। ऐसा नहीं है, बता दें कि संविधान में यह भी साफ लिखा है कि सरकार अध्यादेश जारी कर या फिर संसद में कानून पारित कर किसी के मूल अधिकार का हनन नहीं कर सकती है।

क्या कानून पारित कर पलटा जा सकता है SC का फैसला

बता दें कि संसद के पास कानून बनाकर अदालत के फैसले को पलटने की शक्तियां हैं, लेकिन कोई भी कानून सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध नहीं कर सकता है। यह आवश्यक है कि कानून में अदालत के फैसले की सोच को एड्रेस किया जाए। इसका अर्थ यह है कि फैसले के आधार को हटाते हुए कानून पारित किया जा सकता है। सरकार द्वारा साल 1950 से 2014 के बीच कुल 679 अध्यादेश जारी किए जा चुके हैं। किसी भी अध्यादेश की अधिकतम अवधि 6 महीने और 6 सप्ताह तक की होती है।

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