दक्षिण-भारत के बच्चों को भी पढ़नी चाहिए हिंदी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मसौदा रिपोर्ट तैयार करने वाली समिति के सदस्यों ने हिंदी की अनिवार्यता को खत्म किए जाने के एमएचआरडी मंत्रालय के फैसले से जताई नाराजगी।;
राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मसौदा रिपोर्ट में शामिल त्रिभाषा फॉर्मेूले से हिंदी की अनिवार्यता को समाप्त करने के एमएचआरडी के फैसले के विरोध में इसे तैयार करने वाली प्रारूप समिति के सदस्यों ने ही मोर्चा खोल दिया है। उनका कहना है कि ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार करते वक्त समिति के सभी सदस्यों की आम-सहमति के आधार पर ही त्रिभाषा फॉर्मेूले और सभी राज्यों के बच्चों को अनिवार्य रूप से हिंदी पढ़ाए जाने के तथ्य को उसमें शामिल किया गया था।
फिर अचानक केवल एक दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु द्वारा इसका विरोध किए जाने के बाद मंत्रालय ने अपने स्तर पर उक्त फॉर्मेूले को शिथिल करते हुए इस बदलाव का एलान क्यों कर दिया? एनईपी की मसौदा रिपोर्ट तैयार करने वाली 11 सदस्यीय समिति के तीन सदस्यों ने हरिभूमि से बातचीत में यह जानकारी दी है।
बहुसंख्यक वर्ग की भाषा हिंदी
एनईपी पर गठित मसौदा समिति के वरिष्ठ सदस्य डॉ़ कृष्ण मोहन त्रिपाठी (उत्तर-प्रदेश हाईस्कूल एंड इंटरमीडिएट एग्जामिनेशन बोर्ड, इलाहबाद के पूर्व अध्यक्ष) ने कहा कि जब प्रारूप तैयार करते वक्त पूरी समिति की सहमति से इस फॉर्मेूले को शामिल किया गया था। तो अचानक मंत्रालय ने केवल एक दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के विरोध के चलते इसे क्यों बदल दिया? यह बहुत गलत है। मैंने इसे लेकर केंद्रीय एमएचआरडी मंत्री को पत्र भी लिखा है।
हम इसका आगे भी विरोध करेंगे और जब भी मंत्रालय इसे लेकर सुझावों पर चर्चा करेगा। तब हम पुरजोर ढंग से अपनी बात को उसके सामने रखेंगे। देश में बहुसंख्यक भारतीय हिंदी भाषी हैं। हिंदी को कई दशकों पहले राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त है। इसलिए देश में ऐसा कोई मत नहीं है कि केवल उत्तर-भारतीय राज्यों में रहने वाले बच्चे ही हिंदी पढ़े और समझे। दक्षिण भारत के बच्चों को भी हिंदी को पढ़ना और समझना आना चाहिए। त्रिभाषा फॉर्मेूला शिक्षा नीति में 1961 से शामिल रहा है।
जारी रहेगा विरोध
समिति के एक अन्य सदस्य और बाबा साहब अंबेडकर यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल साइंसेज (मध्य-प्रदेश) के पूर्व संस्थापक कुलपति प्रोफेसर आरएस.कुरील ने कहा कि दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी पढ़ाए जाने को लेकर 30 जून तक सभी से सुझाव मांगे गए हैं। इसके बाद हम एक बार फिर इसे लेकर मंत्रालय के साथ बैठक करेंगे और अपनी बात को मजबूती से रखेंगे।
जिसमें एक सुझाव यह भी हो सकता है कि दक्षिण की भाषाओं को उत्तर-भारत में पढ़ने वाले बच्चे पढ़ें और उत्तर-भारत की भाषाओं को दक्षिण में पढ़ा-समझा जाए। वर्ष 1835 में अंग्रेजों ने भारत में अंग्रेजी भाषा को शिक्षा में शामिल किया था। तब यहां किसे अंग्रेजी बोलनी आती थी। लेकिन धीरे-धीरे उसका विस्तार हुआ। ऐसे ही हिंदी है। आज दक्षिण-भारत में हो रहा विरोध कल बदल भी सकता है।
देश को जोड़ने वाली भाषा है हिंदी
समिति के सदस्य और जेएनयू में सेंटर फॉर परसियन एंड सेंट्रल एशियन स्टडीज, स्कूल ऑफ लेंगवेज, लिटरेचर एंड कल्चर स्टडीज में प्रोफेसर मजहर आसिफ ने कहा कि उत्तर भारत के लोग दक्षिण की भाषा सीखेंगे और वो उत्तर भारत की भाषा सीखेंगे। किसी भी देश को जोड़ने वाली एक भाषा होती है। हिंदी उसमें सबसे ऊपर है। ड्राफ्ट में बदलाव नहीं हो सकता है। क्योंकि इसे आम-सहमति से तैयार किया गया था।
और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App