बड़ी खबर: 1765 से चली आ रही अंग्रेजी हुकूमत की 'रक्षा भूमि नीति' में होगा बड़ा बदलाव, ये है मोदी सरकार का उद्देश्य
नरेंद्र मोदी की सरकार रक्षा भूमि नीति में एक बड़ा बदलाव करने जा रही है। जिसे रक्षा भूमि सुधार (Defence Land Reforms) के लिए नए नियमों को अपनी मंजूरी दे दी है।;
नरेंद्र मोदी की सरकार रक्षा भूमि नीति में एक बड़ा बदलाव करने जा रही है। जिसे रक्षा भूमि सुधार (Defence Land Reforms) के लिए नए नियमों को अपनी मंजूरी दे दी है। साथ ही गैर-सैन्य गतिविधियों और सशस्त्र बलों से सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए खरीदी गई जमीन के बदले में समान मूल्य के बुनियादी ढांचे के विकास की अनुति भी दी जाएगी।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, सेना के अलावा किसी भी उद्देश्य के लिए भारत में रक्षा भूमि के साथ छेड़छाड़ करने की नीति सख्त नहीं रही है। क्योंकि अंग्रेजों ने 1765 में बंगाल के बैरकपुर में पहली छावनी स्थापित की थी। जिसके बाद से उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। अप्रैल 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल-इन-काउंसिल ने आदेश दिया था कि किसी भी छावनी में किसी भी बंगले और क्वार्टर को किसी भी व्यक्ति द्वारा बेचने या कब्जा करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। जो सेना से संबंधित नहीं है।
रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि मेट्रो, सड़क, रेलवे और फ्लाईओवर जैसी बड़ी सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए रक्षा भूमि की जरूरत है। इसके लिए नए नियमों को मंजूरी दी गई है। जो सशस्त्र बलों के लिए समान मूल्य के बुनियादी ढांचे के विकास को अनुमति दे दी है। अब इसका मतलब साफ है कि रक्षा की जमीन को समान मूल्य की जमीन देने के बदले या बाजार मूल्य के भुगतान पर लिया जा सकता है।
जानकारी के लिए बता दें कि नए नियमों के तहत 8 ईवीआई परियोजनाओं की पहचान की गई है। छावनी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली भूमि की कीमत संबंधित सैन्य प्राधिकरण की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा तय की जाएगी। छावनी के बाहर की जमीन का रेट जिलाधिकारी तय करेंगे। इस पर जल्द ही अंतिम फैसला लिया जा सकता है। इसके बाद इसे मंजूरी के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा।