Nirbhaya Rape Case : राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज, अब फांसी होना तय
Nirbhaya Rape Case: निर्भया के दोषियों में शामिल मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवायी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया है।;
निर्भया गैंगरेप के चारो दोषियों की फांसी से बचने की हर तरकीब नाकामयाब हो रही है। राष्ट्रपति की ओर से चारों आरोपियों की दया याचिका खारिज की जा चुकी है। इन चारों आरोपियों में से एक मुकेश ने राष्ट्रपति के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट इस अर्जी पर आज फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपों का कोई आधार नहीं है। यातना से जुड़ी बात जमीनी स्तर पर साबित नहीं होती है। वहीं राष्ट्रपति के याचिका खारिज करने के संबंध में कहा कि सभी दस्तावेज राष्ट्रपति के सामने रखे गए थे और उन्होंने उन्हें ध्यान में रखा था। जिसके बाद दया याचिका को खारिज करने का राष्ट्रपति ने फैसला लिया था।
Supreme Court dismisses petition (of 2012 Delhi gangrape convict Mukesh) and says there is no merit in the contention, alleged torture can't be a ground, all documents were placed before the President & he had taken them into consideration. pic.twitter.com/1C9dFrZrlE
— ANI (@ANI) January 29, 2020
16 जनवरी को दया याचिका की थी खारिज
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने 16 जनवरी को निर्भया गैंगरेप मामले में दोषी मुकेश की दया याचिका खारिज कर दी थी। जिसके बाद नया डेथ वारंट लागू किया था। एक कोर्ट ने इस मामले में सभी चार दोषियों को फांसी 1 फरवरी को सुबह 6 बजे का आदेश दिया है।
इससे पहले एक निर्भया गैंगरेप और मर्डर केस के चार दोषियों में से एक विनय शर्मा ने दिल्ली कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। जिसमें जेल प्रशासन पर आरोप लगाया कि दया याचिका में उसकी 170 पन्नों की एक निजी डायरी थी। जिसे जेल प्रशासन ने नहीं दी थी। अपनी 170 पन्नों की निजी डायरी वापस लेने की मांग की थी।
इस मामले पर जेल प्रशासन ने कोर्ट से कहा कि उसके पास चारों दोषियों के जुड़ा कोई भी दस्तावेज उनके पास नहीं है। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने शनिवार को कहा था कि 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में मौत की सजा पाने वाले दोषियों के वकील द्वारा दलील पर कोई निर्देश देने की आवश्यकता नहीं थी। आरोप लगाया कि जेल अधिकारियों ने दया और उपद्रव दर्ज करने के लिए आवश्यक कुछ दस्तावेजों को नहीं सौंपा। याचिकाएं, और याचिका का निपटारा किया।