Adipurush Movie Controversy: आदिपुरुष फिल्म को बैन करने में सेंसर बोर्ड बेबस, राज्य भी लाचार... पढ़िये वजह
Adipurush controversy hindi news : आदिपुरुष फिल्म को लेकर देशभर में बवाल चल रहा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने तो फिल्म मेकर्स को नोटिस जारी कर सेंसर बोर्ड को भी फटकार लगाई। साथ ही, पूछा कि केंद्र इस मामले में क्या करेगा। आज भी कोर्ट ने इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। फिल्म के लेखक मनोज मुंतशिर को भी नोटिस देने का आदेश जारी किया था। आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर में आपको बताते हैं कि ऐसी कौन सी मजबूरियां हैं, जिसके चलते हाई कोर्ट को कड़ा रूख अपनाना पड़ा है।;
Adipurush Controversy in Hindi: आदिपुरुष फिल्म (Adipurush Film) को लेकर आज भी इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ बेंच ने फिल्म मेकर्स को फटकार लगाई है। डिप्टी सॉलिसिटर एसबी पांडेय ने केंद्र और सेंसर बोर्ड (Censor Board) का पक्ष कोर्ट के समक्ष रखा है। बेंच ने कल यानी मंगलवार को न केवल केंद्र को बल्कि सेंसर बोर्ड को भी कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने पूछा था कि सेंसर बोर्ड ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन क्यों नहीं किया। साथ ही, केंद्र से पूछा था कि नए सिनेमेटोग्राफी संशोधन एक्ट (Cinematography amendment bill 2021) पर क्या किया है। आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर (Haribhoomi Explainer) में आपको बताते हैं कि अगर नया सिनेमटोग्राफी संशोधन एक्ट होता तो क्या आदिपुरुष फिल्म के मेकर्स हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़ करते या नहीं। साथ ही, इस विवाद पर बॉलीवुड का एक बड़ा वर्ग भी अभी तक आदिपुरुष विवाद पर खामोश हैं। इनकी चुप्पी का राज भी नीचे खबर में बताने जा रहे हैं। लेकिन इससे पहले बताते हैं कि आखिर चलचित्र अधिनियम 1952 (Cinematograph Act 1952) की शक्तियां होने के बावजूद सेंसर विवादित फिल्मों को भी पास करने की गलती कर बैठता है।
भारतीय फिल्मों की जांच सेंसर बोर्ड के जिम्मे
भारत में अगर कोई भी फिल्म बनती है, तो सेंसर बोर्ड सुनिश्चित करता है कि इस फिल्म में कोई भी तथ्य ऐसा न हो, जो कि किसी धर्म के लोगों की आस्था को प्रभावित करता हो। इसके अलावा आपत्तिजनक कंटेंट की भी काट-छांट करनी होती है। 1983 के बाद सेंसर बोर्ड को सीबीएफसी यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन या केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1952 के तहत हुई थी। सीबीएफसी सुनिश्चित करता है कि देश में किसी भी भाषा की विवादित फिल्म का सार्वजनिक प्रदर्शन न हो। बोर्ड में अध्यक्ष के अलावा 12 से 25 तक अन्य क्षेत्रों के दिग्गज शामिल रहते हैं। इतने बड़े बोर्ड की बावजूद आए दिन कोई न कोई फिल्म किसी न किसी समुदायों की धार्मिक भावनाओं को आहत कर देते हैं। आदिपुरुष फिल्म के विवाद के साथ ही '72 हूरें' फिल्म को लेकर भी विवाद चल रहा है। सेंसर बोर्ड ने 72 हूरें फिल्म को सर्टिफिकेट नहीं दिया है। अगर सेंसर बोर्ड ने भी आदिपुरुष फ़िल्म के विवादित डायलॉग्स और सीन के साथ ही गलत तथ्यों पर ध्यान देते और सर्टिफिकेट नहीं देते, तो शायद हिंदू समाज इतना आहत नहीं होता। इससे पहले भी द कश्मीर फाइल, द केरल स्टोरी, ओ माई गॉड, पीके समेत कई फिल्मों ने विवादों को जन्म दिया था, लेकिन वहां भी सेंसर बोर्ड ने अपने काम को गंभीरता से नहीं किया। शायद यही कारण है कि नए सिनेमेटोग्राफी संशोधन एक्ट की जरूरत महसूस हो रही है।
क्या सेंसर बोर्ड आदिपुरुष फिल्म को कर सकता है बैन
सवाल उठ रहे हैं कि क्या सेंसर बोर्ड यानी सीबीएफसी ने आदिपुरुष फिल्म को बैन क्यों नहीं किया। दरअसल, सिनेमाटोग्राफी एक्ट 1952 और सिनेमेटोग्राफी रूल 1983 के तहत काम करने वाला सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म को बैन नहीं कर सकता। हालांकि सीबीएफसी के पास शक्तियां होती हैं कि वो किसी विवादित कंटेंट और आपत्तिजनक डायलॉग्स और सीन को हटाए या फिर सर्टिफिकेट देने से ही इनकार कर दे। सीबीएफसी के सर्टिफिकेट न मिलने से फिल्म का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं हो सकता है। यह बात केंद्र ने 2022 में 31 मार्च को संसद के उच्च सदन में रखी थी कि सीबीएफसी किसी फिल्म को बैन नहीं कर सकती, लेकिन सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1952 बी के तहत फिल्म को सर्टिफिकेट देने से इनकार कर सकता है। अर्थात यह स्थिति फिल्म को बैन करने जैसी होगी।
राज्य नहीं कर सकता किसी भी फिल्म को बैन, पढ़ें वजह
मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि कोई भी राज्य फिल्म को अपने यहां बैन नहीं कर सकती है। वजह सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में आरक्षण फिल्म के विवाद पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि अगर किसी फिल्म से दंगा भड़कता है, तो कानून व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकार की होती है। पिछले दिनों भी पश्चिम बंगाल ने भी द केरल स्टोरी को बैन कर दिया था और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने भी ममता सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि बिना देखे किसी फिल्म को कैसे बैन किया जा सकता है। साथ ही, कहा था कि अगर इस फिल्म से राज्य में दंगे होते हैं तो कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।
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क्या मोदी सरकार बैन कर सकती है आदिपुरुष फिल्म
सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1952(5E) के तहत केंद्र के पास अधिकार है कि अगर कोई फिल्म विवादित है, तो उस पर बैन लगाया जा सकता है। यही नहीं, सीबीएफसी द्वारा जारी सर्टिफिकेट को भी केंद्र रद्द कर सकता है। पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 2022 में सिनेमेटोग्राफी एक्ट में बदलाव के लिए बिल पेश किया था। प्रावधान था कि अगर किसी फिल्म से दर्शकों को आपत्ति है तो उस फिल्म के प्रदर्शन को रोका जा सकता है। ये विधयेक अभी तक संसद से पास नहीं हो सका है। बताया जा रहा है कि मानसून सत्र में इसे पास कराया जा सकता है। वहीं, इस बिल को लेकर बॉलीवुड के दिग्गज भी भड़के हुए हैं।
नए सिनेमेटोग्राफी संशोधन एक्ट को लेकर क्यों भड़का बॉलीवुड
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नए सिनेमेटोग्राफी संशोधन एक्ट 2021 को लेकर दो जुलाई तक लोगों से सलाह मांगी थी। इससे बॉलीवुड के कई दिग्गज भी भड़क गए थे। फिल्म जगत से जुड़े 2500 से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को चिट्ठी भेजी थी। चिट्ठी में लिखा था कि नए सिनेमेटोग्राफी संशोशन एक्ट में कई प्रावधान हैं, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समाप्त कर देगा। साथ ही आरोप लगाया था कि इस एक्ट के प्रभावी होने से सेंसर बोर्ड की प्रधानता कम होगी और फिल्मों पर बैन लगाने की शक्तियां भी राज्यों के हाथों में चली जाएंगी। उधर, फिल्म जगत के कई लोगों ने नए सिनेमेटोग्राफी संशोधन एक्ट की सराहना की और कहा कि इस नए एक्ट के आने से फिल्मों की साहित्यिक चोरी, पायरेसी (Piracy) रूकेगी और अवैध कैमकॉर्डिंग (Camcording) और फिल्मों की डुप्लीकेट कॉपी (Duplication of films) बनाने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई होगी, जिससे फिल्म जगत को ज्यादा फायदा मिलेगा।
विरोध करने वाले अब आदिपुरुष विवाद के बाद से शांत क्यों
नए सिनेमेटोग्राफी एक्ट संशोधन को लेकर विरोध करने वाले आज आदिपुरुष फिल्म बनाने वालों पर चुप्पी साधे हैं। नए सिनेमेटोग्राफी एक्ट संशोधन के विरोध में चिट्ठी लिखने वाले दिग्गजों में मीरा नैयर, फरहान अख्तर, शबाना आजमी, अनुराग कश्यप, कमल हसन, विशाल भारद्वाज समेत बंगाली, तमिल और कन्नड़ समेत अन्य क्षेत्रों के फिल्म जगत के दिग्गज भी शामिल थे। आदिपुरुष फिल्म के खिलाफ बॉलीवुड के बड़े दिग्गज भी खामोश हैं। यह दर्शाता है कि आज बालीवुड लोगों की संवेदनशीलता से दूर होता जा रहा है। शायद यही कारण है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जरूरत समझी है कि आदिपुरुष फिल्म पर सख्त एक्शन हो, जिससे फिल्म जगत को बड़ा मैसेज जाए और सेंसर बोर्ड के साथ ही केंद्र सरकार भी अपनी जिम्मेदारियों को भी गंभीरता से समझे।