Haribhoomi Explainer: इन आंदोलनों के सामने झुकी थी सरकार, देखें आजादी से लेकर अब तक की लिस्ट

Haribhoomi Explainer: देश को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने कई आंदोलन चलाए थे। आजादी के बाद भी आवाज उठाने और अपनी मांगों को पूरा करने के लिए आंदोलन की प्रथा अब भी जारी है। आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर में हम आपको कुछ ऐसे आंंदोलनों के बारे में बताएंगे, जिनके आगे देश की सरकारों को झुकना पड़ा था।;

Update: 2023-05-15 07:56 GMT

Haribhoomi Explainer: इन दिनों जंतर-मंतर पर पहलवानों का धरना प्रदर्शन खूब सुर्खियों में है। पहलवानों का ये प्रदर्शन कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ चल रहा है। पहलवानों का आरोप है कि बृजभूषण शरण सिंह (Brij Bhushan Sharan) ने महिला पहलवानों का यौन शोषण किया है। प्रदर्शन करने वाले पहलवानों में विनेश फोगाट (Vinesh Phogat), साक्षी मलिक (Sakshi Malik) व बजरंग पूनिया (Bajrang Punia) विशेष रूप से शामिल हैं।

दरअसल, देश को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने कई आंदोलन चलाए थे। आवाज उठाने और अपनी मांगों को पूरा करने के लिए आंदोलन की प्रथा अब भी जारी है। प्रतिदिन देश में ब्लॉक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सैकड़ों आंदोलन होते रहते हैं। आजादी के 75वें साल में ऐसे ही कुछ आंदोलनों के विषय में चर्चा होनी लाजमी है। आजादी के बाद से ऐसे कुछ आंदोलन हुए हैं, जब लोग अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे और अपार जनसमर्थन से सरकार के निर्णय को बदल दिया और नया इतिहास बना दिया।

सेव साइलेंट वैली आंदोलन

ये आंदोलन आजाद भारत का पहला और सबसे बड़ा आंदोलन माना जाता है। इस आंदोलन का उद्देश्य केरल के वन वर्षा साइलेंट वैली को बचाना था। केरल के तत्कालीन नेता के करुणाकरण और सांसद वीएस विजयराघव वहां पर एक पनबिजली परियोजना के तहत संयंत्र लगाने के पक्ष में थे। इसी जंगल को बचाने के लिए सेव साइलेंट वैली आंदोलन (Save Silent Valley Movement) को चलाया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस परियोजना के लिए स्वीकृति नहीं दी थी।

चिपको आंदोलन

चिपको आंदोलन की शुरुआत 1974 में उत्तराखंड के चमोली जिले से हुई थी। इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन (Chipko Movement) इसलिए पड़ा क्योंकि लोग पेड़ों को बचाने के लिए उनसे चिपक या लिपट जाते थे और ठेकेदारों को उन्हें नहीं काटने देते थे। 1974 में शुरू हुए इस विश्व विख्यात 'चिपको आंदोलन' में मुख्य भूमिका गौरा देवी और सुन्दरलाल बहुगुणा की रही। गौरा देवी को 'चिपको वूमन' के नाम से भी जाना जाता है।

जेपी आंदोलन

'जेपी आंदोलन' 1974 में बिहार के विद्यार्थियों द्वारा बिहार सरकार के अंदर मौजूद भ्रष्टाचार के विरूद्ध शुरू किया गया एक प्रसिद्ध आंदोलन रहा था। बाद में इस आंदोलन की दिशा केंद्र में इंदिरा गांधी सरकार की ओर मुड़ गई थी। इस आंदोलन की अगुवाई प्रसिद्ध गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्त्ता जयप्रकाश नारायण ने की थी, जो जेपी के नाम से भी जाने जाते थे। इस आंदोलन को 'संपूर्ण क्रांति आंदोलन' के नाम से भी जाना जाता है। आंदोलनकारी बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर को हटाने की मांग कर रहे थे, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। तब यह आंदोलन और उग्र हो गया। जेपी ने पूरे देश में घूम-घूमकर कांग्रेस के विरुद्ध प्रचार किया और सभी विपक्षी दलों को एकजुट किया। इस आंदोलन के जरिए ही केंद्र में जनता दल की सरकार बनी, जो आजाद भारत की पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी। जेपी आंदोलन के कारण ही इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गई थीं।

जंगल बचाओ आंदोलन

जंगल बचाओ आंदोलन की शुरुआत 1980 में बिहार से हुई थी। बाद में यह आंदोलन झारखंड और उड़ीसा तक फैल गया। 1980 में सरकार ने बिहार के जंगलों को सागौन के पेड़ों के जंगल में बदलने की योजना को पेश किया और इसी योजना के खिलाफ बिहार के सभी आदिवासी कबीले एकजुट हुए और उन्होंने अपने जंगलों को बचाने के लिए एक आंदोलन चलाया। इसे 'जंगल बचाओ आंदोलन' के नाम से जाना जाता है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन

नर्मदा नदी पर बन रहे अनेक बांधों के विरुद्ध साल 1985 में 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' शुरू किया गया था। इस आंदोलन में आदिवासियों, किसानों, पर्यावरणविदों ने बांधों के निर्माण के फैसले के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। बाद में इस आंदोलन में कई हस्तियां शामिल होती गईं और अपना विरोध जताने के लिए भूख हड़ताल का भी प्रयोग किया गया। बाद में कोर्ट ने दखल देते हुए सरकार को आदेश दिया कि पहले प्रभावित लोगों का पुनर्वास किया जाए फि़र काम आगे बढ़ाया जाए।

जनलोकपाल बिल एंटी करप्शन आंदोलन

साल 2011 में प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर जनलोकपाल बिल के लिए भूख हड़ताल शुरू किया था, जिसके समर्थन में पूरा देश एकजुट हुआ और इस आंदोलन को इतनी सफलता मिली कि यह पिछले 2 दशक का सबसे लोकप्रिय आंदोलन बना। बाद में इसी आंदोलन की बदौलत अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री भी बने। हालांकि जिस सशक्त जनलोकपाल विधेयक की मांग के लिए यह आंदोलन शुरु किया गया था, वह आज भी एक सपना ही है।

किसान आंदोलन

साल 2021 में आजादी के बाद से अब तक के समय में किसानों व खेती के मुद्दे पर सरकार और किसान दोनों के बीच सबसे बड़ा आंदोलन हुआ। जून 2020 में केंद्र सरकार ने तीन नये कृषि कानूनों को जनता के सामने रखा, जिसके खिलाफ किसानों का आंदोलन शुरू हो गया। किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवंबर 2020 से धरना शुरू कर दिया था। बाद में सरकार को किसानों की मांगों को मानना पड़ा।

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