Haribhoomi Explainer: 25 साल पहले आया था तबाही का तूफानी मंजर, चारों तरफ लाशों का ढेर, पढ़िये गुजरात के विनाशकारी तूफान की कहानी
Haribhoomi Explainer: अरब सागर से उठ रहे तूफान बिपरजॉय गुजरात में दस्तक देने वाला है। इस तूफान ने 25 साल पहले आये तूफान का भयानक मंजर की दर्दभरी याद को उकेर दे रहा है। 25 साल पहले आये तूफान ने लाशों के अम्बार लगा दिए थे। आइये आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से जानते हैं कि गुजरात में आए उस तूफान की पूरी कहानी...;
Haribhoomi Explainer: गुजरात के लिए 9 जून 1998 का दिन सबसे मनहूस दिन था। 21 साल पहले ऐसे ही तूफान ने गुजरात के तटीय कस्बे कांडला को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था। 9 जून 1998 का दिन शुरू तो एक सामान्य दिन की ही तरह हुआ था, लेकिन अचानक आसमान काला हो गया और तेज हवाएं चलने लगी। सिर्फ 6 घंटे के अंदर पूरा का पूरा कांडला कस्बा तूफान की चपेट में आ गया था।
तेजी से बढ़ते जलस्तर ने लोगों के घरों, खेतों और नमक के मैदानों को अपनी जद में लेना शुरू कर दिया। लोग ऊंचाई वाली जगहों पर तेजी से भागने लगे। नमक के मैदानों में काम करने वाले एक श्रमिक बताते हैं कि तूफान आते ही मैं, मेरा परिवार और 28 लोग मेरे दो मंजिला मकान की छत पर चले गए थे। उस समय समुद्र में उठ रही 25 फीट की लहरें कस्बे में तेजी से आ जा रही थीं। वैसी ही 25 फीट ऊंची लहर उनके घर से टकराई और पूरा घर धराशायी हो गया। वह तो एक खंभा पकड़कर बच गए लेकिन उनकी पत्नी, दो बेटियां और बाकी लोग बह गए। पूरे कांडला में सिर्फ मौत और बर्बादी का नजारा था। पूरे कस्बे में लाशों के ढेर लगे थे।
बचे हुए लोग अपने परिजनों की तलाश कर रहे थे। दुर्दशा यह हो गई थी कि शवों को ट्रकों में भरकर अस्पताल भेजा जा रहा था। अस्पताल की बालकनी, लॉबी और वेटिंग हॉल अस्थाई मुर्दाघर बन गए थे। कांडला बंदरगाह पर 15 जहाज डूब गए थे। ऊंची लहरों और तेज हवाओं ने दो जहाजों को राष्ट्रीय राजमार्ग-8 ए पर पटका दिया था। जामनगर, जूनागढ़ और राजकोट में भी ऐसा ही नजारा था। कितने घर, झुग्गियां, गाड़ियां बह गईं, इसका सही आंकड़ा आज तक किसी को मिला ही नहीं है। कांडला से जब अचानक तूफान टकराया तो कई लोग जान बचाने के लिए बंदरगाह में पड़े बड़े-बड़े कंटेनरों पर चढ़ गए, लेकिन तूफान इन कंटेनरों को ही अपने साथ समुद्र में ले गया। इस तरह पोर्ट पर ही सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। तूफान कितना भयानक था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1 अगस्त तक लाशें मिलती रही थीं। कुछ शव पाकिस्तान के तट पर भी पाए गए थे।
फेल था बचाव अभियान
करीब एक महीने तक कांडला के पास टापू पर लाशें पहुंचती रहीं। दर्जनों शव तो समुद्र में तैरते हुए मांडवी के तट तक पहुंच गए थे। आपदा प्रबंधन नहीं था। तूफान के बाद तटों पर कीचड़ हो गई थी। उसी कीचड़ में स्थानीय लोगों ने खोजबीन कर सैकड़ों लाशें निकालीं।
कितनी मौतें हुई होंगी
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से आपदा में 2,300 से ज्यादा लोग मरे थे। मुख्य रूप से कांडला, गांधीधाम में हताहत हुए थे। जामनगर के पास दो या तीन जहाज भी डूब गए थे। इसमें कितने लोगों की संख्या थी। इसका सही अंदाजा नहीं पता चल पाया। इसके अलावा कच्चे मकान व पेड़ों के गिरने, करंट लगने से भी कई मौते हुईं। मरने वालों में ज्यादातर पर प्रांतीय मजदूर थे, जो कांडला और गांधीधाम पोर्ट में काम करते थे। ज्यादा तबाही भी पोर्ट एरिया में ही हुई थी। स्थानीय लोगों की मानें तो इन आंकड़ों से कई गुना ज्यादा मौतें हुई थीं।
लोगों को तूफान की खबर ही नहीं थी
गुजरात में काम करने वालों को इस बात की कोई खबर ही नहीं थी कि कोई तूफान उनकी मौत बनकर उनकी तरफ आ रहा है।
तूफान के बाद गैस रिसाव की अफवाह
तूफान तो केवल दो ही घंटे बाद वापस चला गया था लेकिन इसके बाद अफवाहों का दौर शुरू हुआ। एक अफवाह जहरीली गैस के रिसाव की भी फैली, जिसके चलते मजदूर परिवारों का पलायन शुरू हो गया। देखते ही देखते कांडला पोर्ट और गांधीधाम से करीब 15,000 मजदूर पलायन कर गए थे। तूफान की वजह से ट्रेन और अन्य यातायात बाधित थे लिहाजा हजारों मजदूर पैदल ही चल दिए थे। हद तो यह भी हो गई थी कि कई परिवार लाशें ले जा रही गाड़ियों में सवार थे। बस वे किसी तरह जहरीली गैस से अपनी जान बचाना चाहते थे। ये मजदूर महीनों तक वापस नहीं लौटे थे।
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क्यों नहीं उठाए गए बचाव के पर्याप्त कदम
मौसम विभाग से सूचना पहले सही मिली थी कि तूफान 200 किमी की स्पीड से आगे बढ़ रहा है। बाद में इसके कमजोर पड़ने की बात भी सही थी। लेकिन कमजोर होने के बाद तूफान फिर से रफ्तार पकड़ लेगा, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। अमूमन ऐसा कभी होता भी नहीं है। सरकार ने भी मान लिया था कि तूफान कमजोर हो गया है। लेकिन तूफान ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि उसे कांडला व गांधीधाम पोर्ट तक पहुंचने में मात्र 20 से 25 मिनट का समय ही लगा। इस आपदा से सरकार ने भी सबक लिया। इसके करीब 11 महीनों बाद भी एक तूफान आया था, लेकिन अलर्ट उसके गुजर जाने के बाद ही वापस लिया गया था।
हालांकि, इस बार जब हम तूफान का सामना कर रहे हैं तो एक बात तय है कि तूफान खत्म होने के 12-15 घंटे बाद तक सतर्कता बरती जाए। क्योंकि चक्रवात की गर्मी हवा में होती है। इससे समुद्र का पानी अवशोषित होने लगता है और तूफान की रफ्तार दोबारा बढ़ जाती है।