Haribhoomi Explainer: कर्नाटक में हार से भाजपा के 'दक्षिण' प्लान को लगा झटका, मिशन 2024 के लिए बढ़ी चिंता

Haribhoomi Explainer: कर्नाटक में कांग्रेस की सफलता की कहानी बहुत कुछ कह रही है। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू कमजोर पड़ने लगा है? कर्नाटक में जिस तरह बजरंग बली, मुस्लिम आरक्षण जैसे मुद्दों को उछालने के बाद भी कांग्रेस का जीतना भगवा दल के लिए बड़ा झटका है। आइये आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर में जानते हैं मिशन 2024 में कर्नाटक चुनाव का असर;

Update: 2023-05-15 07:01 GMT

Haribhoomi Explainer: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है। बीजेपी के लिए इस चुनावी हार ने भविष्य के लिए चिंता बढ़ा दी है। कर्नाटक (Karnatak) की कुल 224 सीटों में से कांग्रेस ने 136 सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि सत्ताधारी बीजेपी महज 65 सीटों पर ही सिमट गई है। इस चुनाव की सियासी अहमियत सिर्फ कर्नाटक तक सीमित नहीं बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी अहम है। ऐसे में कर्नाटक की हार ने बीजेपी के मिशन-2024 के लिए टेंशन बढ़ा दी है।

आपको बता दें कि बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए 400 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। इस लिहाज से भी कर्नाटक का चुनाव बीजेपी के लिए और भी महत्वपूर्ण माना जा रहा था। कर्नाटक की सत्ता से बाहर होने के बाद भाजपा के लिए अपने टारगेट को हासिल करना मुश्किल नजर आ रहा है। कर्नाटक चुनाव को 2024 का सेमीफाइल माना जा रहा था। ऐसे में किसी भी पार्टी की जीत और हार आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बहुत अहम हो जाती है।

बीजेपी का मिशन साउथ फेल

दक्षिण के आंध्र प्रदेश, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और तेलंगाना में बीजेपी अभी तक खुद को स्थापित नहीं कर पायी है। दक्षिण के छह 4 राज्यों में 130 लोकसभा सीटें आती हैं जो कुल लोकसभा सीटों का करीब 25 फीसदी हैं। ऐसे में सियासी तौर पर दक्षिण भारत भी काफी महत्वपूर्ण है। 2019 में बीजेपी को कर्नाटक और तेलंगाना में सीटें मिली थी, लेकिन साउथ के बाकी राज्यों में उसे लोकसभा की सीटों पर जीत नहीं मिली थी। कर्नाटक के जरिए बीजेपी दक्षिण में अपने पैर पसारना चाहती थी लेकिन उसे कर्नाटक में ही झटका लग गया। यह बीजेपी का बड़ा सियासी नुकसान साबित हो सकता है।

2019 में पांच राज्यों से बीजेपी को 172 सीटें

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल की 42 में से 18, महाराष्ट्र की 48 में से 23, कर्नाटक की 28 में से 25, बिहार की 40 में से 17, झारखंड की 14 में से 12 सीटें जीतीं थीं। पांच राज्यों की कुल 172 सीटों में से बीजेपी ने 98 सीटें जीतीं थीं जबकि उसके सहयोगी दलों को 42 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस तरह बीजेपी गठबंधन ने 172 में से 140 सीटें अपने नाम की थीं। कर्नाटक में मिली हार से इसबार का लोकसभा का रण इतना आसान नहीं होगा।

2024 लोकसभा में किधर कर्नाटक

इस हार के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें कर्नाटक में घट सकती हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में राज्य की 28 सीटों पर बीजेपी ने जोरदार प्रदर्शन करके 25 और भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी ने एक सीट जीती थी। वहीं कांग्रेस-जेडीएस को एक-एक सीट ही मिली थी। ऐसे में कर्नाटक में मिली मात के बाद भाजपा के लिए सूबे में 2019 के नतीजों को दोहरा पाना मुश्किल भरा हो सकता है। 

विपक्षी एकता के लिए कर्नाटक चुनाव के मायने

माना जा रहा है कि बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम इस जीत से और मजबूत होगी। चुनाव ठीक ऐसे समय में हुआ, जब आम चुनाव से पहले सभी विपक्षी दलों को एक करने की कवायद चल रही है। अगर कांग्रेस इस चुनाव को हार जाती तो यह विपक्षी एकता के लिए झटका होता। इस परिणाम के बाद सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की मुहिम और जोर पकड़ेगी। कांग्रेस कर्नाटक में शपथ ग्रहण समारोह को भी शक्ति प्रदर्शन की तरह पेश कर सकती है।

भारत जोड़ो यात्रा का असर

कर्नाटक चुनाव से कुछ महीनों पहले ही राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक पदयात्रा की थी। इस पदयात्रा का नाम भारत जोड़ो यात्रा दिया गया था। इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी, कर्नाटक विधानसभा के कई सीटों से होकर निकले थे। जिसके कारण परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आए हैं। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने उन जगहों पर ध्याद केंद्रित किया था, जो कांग्रेस के गढ़ नहीं थे। कांग्रेस के गढ़ की जगह राहुल ने उन क्षेत्रों से यात्रा की, जहां भाजपा ने 2018 में जीत हासिल की थी। इससे हुआ ये कि जमीनी स्तर पर कांग्रेस मजबूत हुई, उसके वर्कर सक्रिय हो गए। राहुल गांधी ने लोगों से सीधा संवाद किया। जिसका असर दिखा और कांग्रेस इन क्षेत्रों में बढ़त बनाने में सफल रही।

विपक्षी दलों में फिर कांग्रेस का दबदबा

चुनाव और क्रिकेट में बाजी कब पलट जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। अभी लोकसभा चुनाव में भले ही सिर्फ एक साल का समय बचा हो, लेकिन दूसरे नजरिए से देखें तो यह समय भी कम नहीं होता। कर्नाटक में कांग्रेस ने जमीन पर और लोकल मुद्दों पर चुनाव लड़कर दिखा दिया कि मुद्दे सही उठाए जाएं और बीजेपी के खिलाफ बेहतर रणनीति बनाई जाए तो उसे हराना असंभव नहीं है।

इस जीत के बाद विपक्षी दलों के बीच कांग्रेस का दबदबा बढ़ने की भी संभावना है। विपक्ष में आने के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार सभी दलों को साथ लाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी समेत तमाम विपक्षी दलों को एक साथ लाने के लिए अहम बैठकें की हैं। अखिलेश, ममता केसीआर जैसे नेताओं के बारे में माना जाता रहा है कि वे अगला लोकसभा चुनाव कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ने में सहज नहीं हैं। यही वजह भी रही कि सभी विपक्षी दलों को साथ लाने की भी जिम्मेदारी सोनिया गांधी या राहुल गांधी के बजाए नीतीश कुमार को सौंपी गई। अब हिमाचल के बाद कर्नाटक में भी कांग्रेस को जीत मिली है जो निश्चित तौर पर कांग्रेस का विपक्षी दलों में दबदबा बढ़ेगा और लोकसभा चुनाव में वह अधिक सीटों पर लड़ने के लिए ज्यादा मोलभाव की स्थिति में होगी।

कांग्रेस का मिशन 2024

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद अब कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लग गयी है। कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को लगने लगा है कि 2024 में मोदी का किला हिल जायेगा। कांग्रेस नेताओं को लगने लगा है कि विधानसभा के बाद अब वह लोकसभा में भी फतह हासिल करने में कामयाब होंगे। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बयान देकर स्पष्ट बताया है कि कांग्रेस अब 2024 के लिए और मजबूती से रणनीति तैयार कर रही है। उनका कहना है कि कांग्रेस जीत गई और पीएम नरेंद्र मोदी हार गए हैं। क्योंकि बीजेपी की तरफ से एक ही व्यक्ति चुनाव प्रचार कर रहे थे और सिर्फ वही बीजेपी का चेहरा भी हैं। 

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