Haribhoomi Explainer: ममता का फॉर्मूला और नीतीश की रणनीति रंग लाएगी, क्या 2024 का रण हारेगी बीजेपी

Haribhoomi Explainer: बिहार की राजधानी पटना में आज विपक्षी एकता पर बैठक चल रही है। इस बैठक में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, एनसीपी, शिवसेना, समाजवादी पार्टी समेत कई दलों के नेता हिस्सा ले रहे हैं। रणनीति तैयार की जा रही है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को शिकस्त दी जाए। हालांकि बीजेपी का आरोप है कि चाहे कितना भी प्रयास किया जाए, लेकिन 2024 में भी बीजेपी की सरकार बनेगी। आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर में आपको बताते हैं कि आखिर बीजेपी को ऐसा क्यों लग रहा है कि लगातार केंद्र में दो बार सत्ता मेें रहने के बावजूद तीसरी बार भी सत्ता हासिल होने की उम्मीद क्यों है।;

Update: 2023-06-23 08:58 GMT

Haribhoomi Explainer: बिहार की राजधानी पटना में आज विपक्षी दलों की अहम बैठक (Opposition unity meeting in Patna) चल रही है। इसमें लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर रणनीति (Strategy for Lok Sabha Elections 2024) तैयार की जा रही है। इस बैठक में विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ वन इज टु वन फॉर्मूले के तहत उम्मीदवार उतारने पर मंथन कर रहे हैं। दरअसल, जब किसी मजबूत पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ बाकी सभी विपक्षी दल मिलकर अपना सिर्फ एक उम्मीदवार उतारते हैं, तो इसे वन इज टु वन का फॉर्मूला कहा जाता है। यह फॉर्मूला पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों के सामने रखा है। हालांकि दिलचस्प होगा कि अन्य दल ममता बनर्जी के फॉर्मूले से सहमत होंगे या नहीं। बहरहाल, बीजेपी जरूर आश्वास्त है कि यह बैठक बेनतीजा रहने वाली है। गृह मंत्री अमित शाह ने तो इस बैठक को फोटोशूट बता दिया है और दावा किया है कि 2024 में भी बीजेपी भारी बहुमत से जीत हासिल करेगी। आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर में आपको बताते हैं कि विपक्षी दलों की इस बड़ी बैठक के बावजूद बीजेपी इसे हलके में क्यों ले रही है। 

नीतीश कुमार का पाला बदलने की छवि

बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष सभी पलटू राम कहते हैं। कारण यह है कि सीएम नीतीश कुमार कुर्सी पर बने रहने के लिए कभी भी दल बदल लेते हैं। सीएम नीतीश ने बीते साल अगस्त 2022 में बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ कर राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन कर लिया है। नीतीश कुमार समता पार्टी के दौर से ही भाजपा के साथ आ गए थे। 26 साल के साथ में ये दूसरी बार है, जब नीतीश भाजपा से अलग हुए। 2000 में जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तब भाजपा के साथ ही थे। तब से लेकर अब तक सात बार वह बिहार के सीएम पद पर रह चुके हैं। इनमें से पांच बार भाजपा और उनकी सहयोगी दलों के ही सहयोग से सरकार बनाई थी। इससे पहले 2013 में नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाए जाने के खिलाफ नीतीश एनडीए से अलग हो गए थे और 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया था। 2015 में उन्होंने पुराने सहयोगी लालू यादव के साथ गठबंधन किया, लेकिन ये सरकार भी 20 महीने ही चल पाई। आरजेडी से अलग होने के बाद नीतीश ने एक बार फिर एनडीए का दामन था। जो अगस्त 2022 तक ही चल पाया।

सीएम नीतीश कुमार कुर्सी के लिए नीतीश अपनी सुविधा के अनुसार आये दिन पलटते रहे हैं। इसी कारण उन्हें लोग पलटू राम या पलटू चाचा भी कहते हैं। अपने राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद सीएम नीतीश कुमार खुद को 2024 लोकसभा चुनाव का विपक्ष का चेहरा मानते हैं। सत्ता के लिए दल बदलने की ही छवि के कारण आम आदमी के पार्टी के कई नेता बोल रहे हैं कि 2024 का चुनाव आते-आते नीतीश कुमार फिर से बीजेपी का ही दामन थामेंगे। वे एक बार फिर लालू यादव प्रसाद की पार्टी समेत पूरे विपक्ष को धोखा देंगे। आप के नेता अपने सीएम अरविंद केजरीवाल को नसीहत दी है कि नीतीश कुमार से बचकर रहें।

क्या ममता बनर्जी की छवि हिंदू विरोधी

बीजेपी आरोप लगाती रहती है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हिंदू विरोधी है। इसका कारण यह है कि जब भी बंगाल में हिंदू से जुड़े त्योहार आते हैं, तो ममता बनर्जी का हिंदू विरोधी चेहरा सामने आ जाता है। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के दौरान जिस पूरे तरह राज्य में हिंसा होती है, वह दर्शाता है कि वे राज्य के भीतर कानून व्यवस्था कायम रखने में भी नाकाम हैं। 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी गठबंधन को लेकर ममता बनर्जी का फॉर्मूला यह है कि जिस राज्य में जो भी पार्टी मजबूत है, उसे ज्यादा सीटें देनी चाहिए। हालांकि यह भी छिपी नहीं है कि ममता बनर्जी की महत्वकांक्षा स्वयं पीएम बनने की है। बीजेपी तो आरोप लगा रही है कि पीएम पद के लिए ही राज्य की कमाम अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को सौंपने की तैयारी कर रही है। अब महागठबंधन में ममता बनर्जी पर पीएम के नाम पर सहमति बनाना आसान नहीं होगा।  

अरविंद केजरीवाल देश में लागू करना चाहते हैं दिल्ली वाला फॉर्मूला

अगर पीएम पद की ही बात करें तो नीतीश कुमार और ममता बनर्जी को मजबूत दावेदार माना जाता है, लेकिन इस दौड़ में अरविंद केजरीवाल भी पीछे नहीं हैं। बिहार में विपक्षी एकता की बैठक से पहले ही पोस्टर लगे थे, जिसमें अरविंद केजरीवाल को 2024 का पीएम बताया था। अरविंद केजरीवाल भी कई मंचों से घोषणा कर चुके हैं कि वे दिल्ली का मॉडल पूरे देश पर लागू करना चाहते हैं। यह दर्शाता है कि वे आने वाले चुनाव के बाद देश की बागडोर संभालना चाहते हैं, लेकिन पार्टी इतनी मजबूत नहीं है कि वे अपने दम पर पीएम घोषित हो सकें। हालांकि उनकी पार्टी कांग्रेस के बाद दूसरी पार्टी है, जिसकी एक से ज्यादा राज्यों में सरकार है। लेकिन, इसके बावजूद भी महागठबंधन सीएम अरविंद केजरीवाल के पीएम दावेदार पर सहमति जताएगा, यह भी असंभव ही दिखाई देता है।

अखिलेश यादव पीएम रेस में नहीं 

देश के सबसे बड़े सूबे यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने किसी के पक्ष में अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। साथ ही, वे पीएम की दौड़ में भी नहीं हैं। अखिलेश यादव पूर्व में कई बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर चुके हैं। अगर अखिलेश यादव की पसन्द की बात करें तो निश्चित ही ममता बनर्जी ही होंगी, जो कि नीतीश कुमार का समर्थन करने वाले दलों के लिए नागवार गुजरेगा। अपने एक बयान में ममता बनर्जी ने भी अखिलेश यादव का समर्थन करते हुए कहा था कि विपक्ष को यूपी में समाजवादी पार्टी को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सपोर्ट करना चाहिए, क्योंकि यूपी की विपक्षी दलों में सबसे मजबूत पार्टी समाजवादी पार्टी है।

कांग्रेस भी नीतीश के दरबार में पहुंची

अब बात करते हैं देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस की। 2014 से ही कांग्रेस बुरे दौर से गुजर रही है, जिसके कारण अन्य विपक्षी दल कांग्रेस को गठबंधन में उतना महत्व नहीं देते थे। लेकिन, कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस एक बार फिर से सभी विपक्षी दलों में अपनी अहम भूमिका बताने लगी है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कितना असरदार होगी, इसका इसी बात से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि केन्द्र की गद्दी में बिठाने वाले राज्य यूपी में कांग्रेस का सुपड़ा ही साफ हो गया था। कांग्रेस की इस स्थिति को देखते हुए सपा, बसपा और अन्य सहयोगी दल भी कांग्रेस से कन्नी काटने लगे थे। हालांकि जिस तरह से कांग्रेस ने कर्नाटक में बीजेपी को हराया है, उसके बाद कांग्रेस नेता बेहद उत्साहित हैं कि वे ही बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाएंगे। वहीं पीएम पद की बात करें तो राहुल गांधी भी खुद को विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा मानते हैं, तब जाहिर सी बात है कि कांग्रेस राहुल को भी पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में देखना चाहेंगे।

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शिवसेना उद्धव गुट-एनसीपी को खोया रसूख पाने की तलाश

सत्ता से बेदखल हो चुकी उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी भी अब गठबंधन के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का मूड बना रही हैं। लेकिन, ऐसा अभी कुछ आधिकारिक तौर पर नहीं कहा गया है। बिहार में हो रहे विपक्षी दलों की बैठक में भाग लेने की ही वजह से ऐसा कयास लगाया जा रहा है। दरअसल, महाराष्ट्र में पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 23, शिवसेना को 18, कांग्रेस को 2 और एनसीपी को 4 सीटें मिली थीं। महाअघाड़ी गठबंधन करके उद्धव ठाकरे सीएम बन गए थे। हालांकि उद्धव ठाकरे की पार्टी की छवि को हिंदू विरोधी बताया जाने लगा। इसके चलते एकनाथ शिंदे ने अपने समर्थकों के साथ पार्टी तोड़ दी थी और बहुमत हासिल कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। ऐसे में उद्धव ठाकरे का प्रयास होगा कि अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर महाराष्ट्र को जीता जा सके। 

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