Haribhoomi Explainer: चीन की ताइवान पर युद्ध की तैयारी शुरू, सीक्रेट नौसैनिक अड्डे को बना रहा शक्तिशाली, भारत को भी खतरा
Haribhoomi Explainer: पैराग्वे के नव निर्वाचित राष्ट्रपति सैंटियागो पेना (Santiago Pena) की ताइवान की राजधानी ताइपे (Taipei) में राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन (Tsai Ing-wen) से मुलाकात के बाद चीन भड़क गया है। चीन ने युद्ध के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। चीन की युद्ध तैयारियों पर प्रकाश डालने से पहले बताते हैं कि पैराग्वे के राष्ट्रपति ने ऐसा क्या कह दिया, जिससे चीन को युद्ध की आशंका सता रही है।;
Haribhoomi Explainer: पैराग्वे के नव निर्वाचित राष्ट्रपति सैंटियागो पेना (Santiago Pena) ने ताइवान की राजधानी ताइपे (Taipei) पहुंचकर राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन (Tsai Ing-wen) से मुलाकात की। मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि हम ताइवान के साथ पांच साल तक खड़े रहेंगे। इस बयान से चीन भड़क गया। दरअसल, दुनिया के 13 देश ही ऐसे हैं, जो कि ताइवान को देश के रूप में मान्यता देते हैं। दक्षिण अमेरिका महाद्वीप की बात करें तो केवल पैराग्वे ही ऐसा देश है, जो कि ताइवान के साथ खड़े होने का दावा कर रहा है। यही नहीं, पैराग्वे के राष्ट्रपति ने तो यहां तक दावा कर दिया है कि हम अगले कुछ सालों तक ताइवान (Taiwan) के लोगों को विशेषकर कारोबारी समुदाय को पैराग्वे में निवेश करने के लिए सहमत करने की कोशिश करते रहेंगे। हमारा प्रयास रहेगा कि दोनों देशों के बीच कूटनीतिक हितों के लिए ही नहीं बल्कि साझा आर्थिक हितों की दिशा में कार्य किया जाएगा। राष्ट्रपति पेना के इस दावे के लिए ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने उनकी सराहना की है। उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि ताइवान और पैराग्वे स्वतंत्र लोकतंत्र, वैश्विक स्थिरता और विकास के मोर्चे पर साथ खड़े रहेंगे। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से हम आपको बताते हैं कि ताइवान और पैराग्वे की दोस्ती के बाद चीन और अमेरिका के बीच दूरियां और बढ़ रही हैं।
चीन-ताइवान के बीच तनाव क्यों
चीन का कहना है कि ताइवान उनका अंग है। चीन वन चाइना पॉलिसी के तहत अन्य देशों को ताइपे से कूटनीतिक रिश्ते नहीं बनने के लिए साजिश रचता रहता है। त्साई के 2016 से राष्ट्रपति बनने के बाद चीन ने ताइवान को राष्ट्र मानने वाले देशों को अपनी ओर खींचने का प्रयास तेज कर दिया था और कई प्रगतिशील देशों को आधारभूत ढांचे में निवेश की मदद का भरोसा दिलाकर ताइवान से अलग कर दिया था। हाल में होंडूरास ने भी ताइपे से अपने संबंध तोड़ लिया है। बावजूद इसके पैराग्वे ने ताइवान के साथ पांच साल तक साथ खड़े रहने का भरोसा दिया है, जिससे चीन का बेचैन होना लाजमी है।
चीन ने अपनी सैन्य तैयारियां की मजबूत
ताइवान पर अमेरिका से युद्ध के खतरे के बीच चीन ने अपनी सैन्य तैयारियां मजबूत करना शुरू कर दिया है। चीन ने हैनान प्रांत में अपने गुप्त नौसैनिक अड्डे का बड़े पैमाने पर विस्तार किया है ताकि वहां विशाल युद्धपोत तैनात किए जा सके। सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि तीन बेस और बर्थ का तेजी से विस्तार किया जा रहा है। चीन की नौसेना दुनिया में सबसे बड़ी है और वह वर्तमान में ताइवान पर अमेरिका से मुकाबला करने के लिए कई सुपर विध्वंसक जहाज बना रही है। चीन का ये यूलिन बेस न सिर्फ अमेरिका बल्कि भारत के लिए भी बड़ा खतरा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने ईस्टर्न थिएटर कमांड को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा है।
चीन नौसेना में शामिल करेगा 10 बड़े युद्धपोत
चीन इस साल के अंत तक अपनी नौसेना में कम से कम 10 बड़े युद्धपोत शामिल करने जा रहा है। इसमें टाइप 052D विध्वंसक और दो बड़े और बेहद तेज़ टाइप 054B फ़्रिगेट शामिल हैं। इनकी कुल विस्थापन क्षमता 72 हजार टन है। ये नए युद्धपोत चीन के दो विमानवाहक पोतों के बेड़े में शामिल हो जाएंगे, जिससे उनकी कुल विस्थापन क्षमता 1 लाख 20 हजार टन तक पहुंच जाएगी। इसके अलावा 8 टाइप 055 क्रूजर जहाज, 3 विशाल टाइप 075 लैंडिंग हेलीकॉप्टर डॉक जहाज भी हैं।
चीन ने पिछले 15 सालों में ताइवान को ध्यान में रखते हुए इन सभी को सेना में शामिल किया है। इसके साथ ही इस साल चीन के कुल सक्रिय युद्धपोतों की संख्या 600 तक पहुंच जाएगी। यह दो दशक पहले की संख्या से तीन गुना है। इतना ही नहीं, चीनी सेना ने इन जहाजों को चलाने के लिए हजारों सेवानिवृत्त सैनिकों को भी शामिल किया है। सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि चीन ने पिछले साल यूलिन नेवल बेस को अपग्रेड करना शुरू कर दिया था। ताइवानी नौसेना अकादमी में प्रशिक्षक रहे लू ली शिह का कहना है कि इस चीनी पद्धति का उपयोग भूमध्य सागर में सदियों से किया जाता रहा है।
चीन के नौसैनिक विशेषज्ञ ली गा का कहना है कि रूसी नौसेना भी इसी रणनीति पर काम करती है ताकि हमला करने में सक्षम पूरे नौसैनिक बेड़े को एक सीमित जगह पर खड़ा किया जा सके. इससे चालक दल को तत्काल कार्रवाई के लिए आसानी से भेजा जा सकता है। यूलिन चीनी नौसेना के सबसे महत्वपूर्ण अड्डों में से एक है। इसके जरिए दक्षिण चीन सागर और आगे हिंद महासागर तक आसान पहुंच है।
भारत के लिए भी खतरा
इस नौसैनिक अड्डे के जरिए ही हिंद महासागर में अदन की खाड़ी और सोमालिया तक मिशन चलाया जा सकता है। इसलिए ये चीनी बेस भी भारत के लिए बड़ा खतरा है। यहीं पर चीन का पहला घरेलू विमानवाहक पोत और पनडुब्बियों का विशाल बेड़ा भी तैनात है। चीनी नौसेना का पहला और एकमात्र विदेशी नौसैनिक अड्डा अफ्रीका के जिबूती में है। वहां विमानवाहक पोत भी आसानी से खड़े किए जा सकते हैं। यूलिन बेस से ही वहां मदद भेजी जाती है। चीन की हरकतों को देखते हुए भारत लगातार उसकी गतिविधियों पर नजर रखता है।
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