Haribhoomi-Inh News: राज्यसभा चुनाव : 'भरोसे' का संकट!, प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के साथ
Haribhoomi-Inh News: हरिभूमि-आईएनएच के खास कार्यक्रम 'चर्चा' में प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने शुरुआत में कहा कि नमस्कार आपका स्वागत है हमारे खास कार्यक्रम चर्चा में, चर्चा के तहत आज हम बेहद गंभीर विषय पर बातचीत कर रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण प्रस्थिति को लेकर है। हमारा आज का विषय है राज्यसभा चुनाव : 'भरोसे' का संकट !;
Haribhoomi-Inh News: हरिभूमि-आईएनएच के खास कार्यक्रम 'चर्चा' में प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने शुरुआत में कहा कि नमस्कार आपका स्वागत है हमारे खास कार्यक्रम चर्चा में, चर्चा के तहत आज हम बेहद गंभीर विषय पर बातचीत कर रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण प्रस्थिति को लेकर है। हमारा आज का विषय है राज्यसभा चुनाव : 'भरोसे' का संकट !
संदर्भ ये है कि इस देश को इस बात पर यह गर्व होता है कि हर देशवासी को यह गर्व होता, हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में हैं। इस लोकतंत्र की अभिव्यक्ति का सबसे बड़ा केंद्र हैं, जिसका गठन होता है दो सदनों के माध्य से, एक लोकसभा दूसरा राज्यसभा। लोकसभा के सदस्य बकायदा जनता के द्वारा सीधे निर्वाचित होकर आते हैं। तमाम नेता अपनी दावेदारी जनता के बीच में रखते हैं। जनता तय करती है कि कौन सा दल और कौन सा नेता उसकी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए उपयुक्त है। उसे चुनकर संसद में भेजती है।
लेकिन राज्यसभा के संदर्भ में हमारे संविधान निर्माताओं की परिकल्पना यह थी कि समाज में ऐसे प्रतिभाशाली लोग, विभिन्न क्षेत्रों के ऐसे प्रतिशाली विशेषज्ञ हैं, ऐसे जानकारी हैं। जो जनता के स्तर पर कनेक्ट होकर सत्ता में दाखिल न हो पाए, उन लोगों को भेजने के लिए राज्यसभा की परिकल्पना की गई। मनाना गया कि इसके माध्यम से देश की रिति रिति बढ़ाने के संदर्भ में विशेषज्ञों की मदद मिलेगी और उस मदद के माध्यम से देश प्रगति के माध्यम से आगे होगा। शुरूआत में कमोवेश ऐसा रहा भी। लेकिन वक्त के साथ ये भावना कहीं दफन भी हो गई। अब बैक डोर के लिए राज्यसभा का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में 57 सीटों पर चुनाव होना था और 41 सीटों पर निर्विरोध चुनाव हो गया, लेकिन 16 सीटों पर चुनाव का नौबत आ गई है। इसी मामले पर चल रहे ताजा घटनाक्रम पर चर्चा कर रहे हैं...
राज्यसभा चुनाव : 'भरोसे' का संकट!
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