लोकसभा में पास हुआ भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद संशोधन बिल, ये हैं प्रावधान

देश में हर साल बड़े पैमाने पर खुलने वाले सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों को अब मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की जगह पर केंद्र द्वारा गठित किया गया 12 सदस्यीय बोर्ड ऑफ गवर्नर (बीओजी) मंजूरी देगा।;

Update: 2019-07-02 18:45 GMT

देश में हर साल बड़े पैमाने पर खुलने वाले सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों को अब मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की जगह पर केंद्र द्वारा गठित किया गया 12 सदस्यीय बोर्ड ऑफ गवर्नर (बीओजी) मंजूरी देगा। इस बाबत मंगलवार को लोकसभा में भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (संशोधन) बिल 2019 पास हो गया है। इस पर हुई चर्चा में विभिन्न राजनीतिक दलों के कुल 22 सदस्यों ने भाग लिया।

जिसके जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ़ हर्षवर्धन ने कहा कि इसके जरिए सरकार की मंशा केवल देश में मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने और मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में दूरगामी बदलाव लाने की है। कुछ महीने पहले सरकार इसके लिए एक अध्यादेश लाई थी। जिसकी समय सीमा समाप्त होने की वजह से अब यह बिल लाया गया है। पहले बीओजी में 7 सदस्य थे। लेकिन मौजूदा संशोधन के जरिए इसे बढ़ाकर 12 कर दिया गया है।

एमबीबीएस में यूजी कोर्स में बढ़ी 15 हजार सीटें

डॉ़ हर्षवर्धन ने कहा कि पुराने अध्यादेश के साथ ही एक 7 सदस्यों का बीओजी बीते आठ महीने से मेडिकल क्षेत्र का काम देख रहा है। उसने इस कम समय में कई क्रांतिकारी बदलाव ला दिए हैं, जिसमें एमबीबीएस पाठ्यक्रम में स्नातक स्तर (यूजी) पर सीटों की संख्या बढ़ाकर 75 हजार 543 कर दी गई है। जबकि पहले यह 60 हजार 680 थी। यह सीधे-सीधे 15 हजार सीटों की बढ़ोतरी है। ज्यादातर राज्यों की यूजी सीटों में ईडब्ल्यूएस कोटा लागू किया गया है। बीते दो साल की तुलना में इस वर्ष ज्यादा संख्या में नए सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेज खोले गए हैं।

यह आंकड़ा 37 है, जिसमें सरकारी 25 और निजी 12 हैं। कॉलेज खोलने के लिए कुल आवेदन बीओजी के पास 74 आए थे। 2017-18 में 14, 2018-19 में 21 नए कॉलेज खोले गए थे। अदालतों में चल रहे मामले 2018 के 80 की तुलना में इस साल मात्र 6 रह गए हैं। इससे सरकार का कानूनी कार्रवाई पर खर्च होने वाले 4.85 करोड़ रुपए की बचत हुई है। कॉलेजों के लाइसेंस नवीनीकरण का प्रतिशत 86, मान्यता देने का प्रतिशत 89 हो गया है। परास्नातक स्तर की सीटों में इजाफे का आंकड़ा इस वर्ष 72 फीसदी पर पहुंचा है।

विशेषज्ञता वाली सीटें 30 हजार 438 से बढ़कर 32 हजार 158 हो गई है। अति विशेषज्ञता वाली सीटें 2 हजार 797 से बढ़कर 3 हजार 204 हुई हैं। 27 सेना के अस्पतालों में पढ़ाने वाले सेवानिवृत डॉक्टरों को मेडिकल कॉलेजों में अब पढ़ाने का मौका मिलेगा। आवेदक को अपनी बात रखने का मौका दिया जाएगा। कॉलेजों की जांच प्रक्रिया को डिजीटाइज कर दिया गया है। कोई कॉलेज अगर 150 से कम 100 सीटों पर भी खोलने की अनुमति मांगेगा तो बीओजी उसका इंफ्रास्ट्रक्चर देखकर निर्णय करेगा।

आईसीयू में मौजूद बेड़ों की गिनती भी सीटों में की जाएगी। प्रति फेकेल्टी एक प्रोफेसर पर 2 छात्र पीजी के पढ़ाई कर सकेंगे। इससे पीजी की सीटें बढ़ेंगी। फेकेल्टी की गुणवत्ता सुधारने के लिए विजिटिंग फेकेल्टी को पढ़ाने की मंजूरी दी गई है। फेकेल्टी की अटेंडेंस की ऑनलाइन निगरानी की जाएगी। बीओजी सदस्यों की संख्या 7 से बढ़ाकर 12 इसलिए की जा रही है। क्योंकि मेडिकल क्षेत्र का काम बेहद व्यापक है। इनके जरिए इसकी पूर्ति हो सकेगी। पहले एमसीआई में कुल 105 सदस्य होते थे।

सुप्रीम कोर्ट ने बनाया बीओजी

केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि एमसीआई की भ्रष्ट व्यवस्था को बदलने के लिए जुलाई 2014 में केंद्र ने रंजीत चौधरी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। 2 महीने में उसने रिपोर्ट दी। फिर नीति आयोग की 4 सदस्यों की टीम को 2016 में मेडिकल कमीशन के बिल का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। ड्राफ्ट संसद की स्थायी समिति को भेजा गया। 2018 में बिल लेकर आए। लेकिन उसके बाद 16वीं लोकसभा के कार्यकाल तक उसे संसद की मंजूरी नहीं मिली थी। इसलिए वह बिल रद्द हो गया था।

अब यह फिर कैबिनेट जाएगा और जल्द ही संसद की मंजूरी के लिए लाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने एमसीआई के कामकाज पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जस्टिस लोढ़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। उसका 1 साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद कोर्ट ने 2018 में दूसरी समिति डॉक्टरों की बनाई थी। जिसने मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा कि एमसीआई उनके काम में सहयोग नहीं कर रही है। फिर उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद हमने उसी समिति को फिर से मान्यता दी और बीते 8 महीनों से वह बीओजी सदस्यों के तौर पर अच्छा काम कर रहे हैं।

विपक्ष की आपत्ति

कांग्रेस के नेता सदन अधीर रंजन चौधरी, आरएसपी के एन.के.प्रेमचंद्रन समेत विपक्ष के कुछ अन्य सदस्यों द्वारा बिल पर आपत्ति जाहिर करते हुए कहा गया कि उन्हें केंद्र द्वारा बिल को सदन की मंजूरी के लिए पेश किए जाने से कोई दिक्कत नहीं है। बल्कि जिस तरह से अध्यादेश का सहारा लेकर इसे लाया गया है। उस पर समस्या है। इसके जवाब में स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि 2010 में कांग्रेसनीत यूपीए की सरकार भी एमसीआई की जगह पर बीओजी के गठन के वादे के साथ एक अध्यादेश लेकर इसी सदन मे आई थी।

अध्यादेश को सदन की समयसीमा को ध्यान में रखकर लाया जाता है। यह कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है। इसे पक्ष-विपक्ष या राजनीति से ऊपर उठकर जनहित का मसला समझकर मंजूरी दी जानी चाहिए। जो संशोधन विपक्ष द्वारा लाए गए हैं। उनमें कोई खास तर्क मौजूद नहीं हैं।

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