Haribhoomi Exclusive: आखिरी सफर के लिए रवाना हुआ INS Virat, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरूण प्रकाश ने हरिभूमि से बातचीत में साझा किए अपने अनुभव

Haribhoomi Exclusive: INS Virat अपने आखिरी सफर के लिए गुजरात के अलंग शहर की ओर रवाना हो गया है। इस बीच पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरूण प्रकाश ने हरिभूमि से बातचीत में अपने अनुभव साझा किए हैं।;

Update: 2020-09-19 16:12 GMT

INS Virat: नौसेना का विमानवाहक युद्धपोत विराट तीस साल तक सेवा देने के बाद शनिवार को मुंबई डाकयार्ड से अपनी अंतिम यात्रा के लिए गुजरात के अलंग शहर की ओर रवाना हो गया है। यहां उसे विघटित करने के बाद कबाड़ के रूप में बेच दिया जाएगा।

इस विशालकाय युद्धपोत को पूर्व नौसैनिकों ने गेटवे ऑफ इंडिया से भावभीनी विदाई दी। पहले विराट की शुक्रवार को गुजरात रवानगी होनी थी। लेकिन कुछ कागजी कारवाई की वजह से इसमें एक दिन की देरी हुई। इस अवसर पर नौसेना ने ट्वीट कर कहा कि 'विराट कॉलसाइन रोमियो टू टू'-एक युग का अंत, भारतीय नौसेना के इतिहास का एक शानदार अध्याय। वह अपनी अंतिम यात्रा के लिए आज मुंबई से रवाना। पुराने जहाज कभी मरते नहीं, उनकी आत्मा जीवित रहती है।

नाकाम रही सहेजने की कोशिशें

12 मई 1987 को नौसेना में शामिल होने के बाद मार्च 2017 में विराट नौसेना से सेवामुक्त हो गया था। इसके बाद इसे संग्रहालय या रेस्तरां में तब्दील करने की कोशिशें हुईं। लेकिन वह सफल नहीं हो सकीं। कानूनी अड़चनों की वजह से इसे किसी दूसरे देश को भी बेचा नहीं जा सका। जिसके बाद अंत में इसके विघटन की कवायद शुरू की गई। जिसमें अलंग के श्री राम समूह ने जहाज के विघटन के लिए नीलामी के दौरान लगाई गई बोली में जीत हासिल की।

एक नौसैन्य अधिकारी ने बताया कि श्री राम समूह के पास उच्च क्षमता वाले पोत हैं, जो इसे समुद्र में खींचकर मुंबई से अलंग ले जा रहे हैं। जहां तक पहुंचने में इसे करीब दो दिन लगेंगे। यहां बता दें कि समुद्र तटीय शहर अलंग में विश्व का सबसे बड़ा पोत का विघटन करने का यार्ड है। विराट के अलावा नौसेना के एक अन्य विमानवाहक युद्धपोत विक्रांत को भी संग्रहालय बनाने के प्रयास विफल रहे थे।

समुद्री निगरानी में बिताए 2258 दिन

12 मई 1987 को भारतीय नौसेना में शामिल होने से पहले विराट मूल रूप से ब्रिटेन की रॉयल नेवी में एचएमएस हरमेस नामक युद्धपोत था। वहां 1959 के बाद से 1984 तक सेवाएं देने के बाद उसे सेवामुक्त कर दिया था। इसके बाद भारत ने उसे विराट के रूप में नामांकित किया और वह नौसेना का प्रमुख जंगी युद्धपोत बन गया।

भारतीय नौसेना में विराट कुल 2 हजार 258 दिनों तक समुद्र में तैनात रहा। जिसमें इसने कुल 5 लाख 90 हजार नॉटिकल माइल्स की दूरी तय की और देश सेवा के लिए 22 हजार 622 घंटों तक समुद्री हवाई अभियान चलाए।

सैन्य अभियानों में अहम भूमिका

विराट के सेवाकाल के दौरान इसमें कुल 1500 नौसैन्यकर्मी, 25 लड़ाकू विमान और कई हेलिकॉप्टर नियमित रूप से तैनात रहते थे। लड़ाकू विमानों में सी हेरियर और हेलिकॉप्टरों में सीकिंग-42 बी/सी, चेतक, कामोव 31, एएलएच मुख्य हैं। विराट ने अक्टूबर 2001 से जुलाई 2002 तक चलाए गए ऑपरेशन पराक्रम, 18 जुलाई से 17 अगस्त 1989 तक श्रीलंका में चलाए गए ऑपरेशन पवन में बेहद अहम भूमिका निभाई।

सोचा नहीं था कि भारत आएगा

विराट पर बतौर कैप्टन अपनी सेवाएं दे चुके पूर्व नौसेनाप्रमुख एडमिरल अरूण प्रकाश ने इससे जुड़े अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि वर्ष 1983 में पहली बार जब मैंने विराट पर हेरियर लड़ाकू विमान की तीन से चार बार लैंडिंग का अभ्यास किया। तब मुझे बिलकुल भी भरोसा नहीं था कि एक दिन अंग्रेजों का यह विशालकाय जहाज हमें मिल जाएगा।

उड़ान भरने से पहले जब ब्रिटेन के इंग्लिश चैनल में सुबह की धुंध में इसकी पहली झलक मिली तो मैं इतना बड़ा जहाज देखकर बिलकुल हैरान रह गया था। हालांकि उस वक्त यह ब्रिटेन की नौसेना का हिस्सा था और फॉकलैंड की लड़ाई जीतकर लौटा था। इसके चार साल बाद 1987 में जब मैं नौसेना के एक अन्य जहाज को कमांड कर रहा था। तब मुझे विराट के भारत आगमन के लिए स्वागत करने के लिए ब्रिटेन भेजा गया।

हम समुद्री मार्ग से गए थे। तब मेरे साथ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन नौसेनाप्रमुख भी थे। तीसरी बार मुझे विराम को कमांड करने का मौका मिला। तब तो मेरे छक्के ही छूट गए और मैं सोच में पड़ गया कि इतना बड़ा जहाज कैसे चलाएंगे? लेकिन वक्त बीता और मैंने सफलता के साथ विराट को करीब दो साल तक कमांड किया।

संरक्षित करना चाहिए था

आज के दिन मुझे बहुत दुख हो रहा है कि ऐसा जहाज जिसने कुल 30 साल हमारे देश की सेवा की है। उसको हम संरक्षित नहीं कर सके। विराट के साथ न केवल हमारी गहरी संवेदनाएं जुड़ी हुई हैं। बल्कि इसके साथ हमारा गौरवशाली सैन्य इतिहास भी जुड़ा हुआ है।

भारत में देखें तो हमें इतिहास को लेकर बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं रही है। इसमें पढ़ना और लिखना दोनों शामिल है। हमारा ज्यादातर इतिहास अंग्रेजों ने लिखा है। वह भी तोड़मरोड़कर। ऐसे में अब समय आ गया है कि हम भी अपना इतिहास लिखें।

खासकर हमारी जो सेनाएं हैं और उनके जो कारनामे हैं 1947 के बाद से लेकर अब तक। उनके बारे में मौजूदा और भावी पीढ़ियों को जानकारी दी जानी चाहिए। इसके अलावा विराट को संग्रहालय या ट्रेनिंग जहाज में भी बदला जा सकता था।

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