जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने की सीएए को निरस्त करने की मांग, मौलाना सैयद अरशद मदनी बोले- भुगतना पड़ेगा....
मौलाना सैयद अरशद मदनी ने आरोप लगाया कि किसान आंदोलन को वैसे ही दबाने का हर संभव प्रयास किया गया जैसा देश में अन्य सभी आंदोलनों के साथ किया गया था।;
जमीयत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी (President Maulana Syed Arshad Madani) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Pm Modi) की तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा का स्वागत करते हुए शनिवार को सीएए CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019) कानून को भी वापस लेने की मांग की है। मदनी ने कहा कि कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले ने दिखाया है कि लोकतंत्र और लोगों की शक्ति सर्वोपरि है।
मौलाना सैयद अरशद मदनी ने आरोप लगाया कि किसान आंदोलन को वैसे ही दबाने का हर संभव प्रयास किया गया जैसा देश में अन्य सभी आंदोलनों के साथ किया गया था। उन्होंने कहा कि किसानों को बांटने की साजिशें रची गईं, लेकिन वे हर तरह की कुर्बानी देते रहे और अपने रुख पर अडिग रहे। मदनी ने दावा किया कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ आंदोलन ने किसानों को कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए प्रोत्साहित किया। मदनी ने यह भी मांग की कि कृषि कानूनों की तरह सीएए को भी वापस लिया जाना चाहिए। हमें लगता है कि वह (सीएए-एनआरसी) राष्ट्रीयता से संबंधित है और इसका खामियाजा मुसलमानों को भुगतना पड़ेगा।
जनता की ताकत सबसे मजबूत, इसलिए यह (सीएए) भी निरस्त हो। हम चाहते हैं कि सरकार उस कानून को वापस ले ले जो मुसलमानों को चोट पहुंचाने वाला है। वे भी दूसरों की तरह ही भारत के नागरिक हैं। अगर वे प्रभावित हैं, तो सरकार को इसे उसी तरह महसूस करना चाहिए।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदायों के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति देता है। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, इन तीन देशों में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर, 2014 तक भारत पहुंचे इन समुदायों के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी।