Kanshi Ram Birth Anniversary: पंजाब में जन्म और यूपी में की राजनीति, जानें बीएसपी संस्थापक कांशीराम से जुड़ी 5 बातें
कहते हैं कि 1984 में उन्होंने बसपा की स्थापना के बाद से ही कांशीराम पूरी तरह से राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता बन चुके थे।;
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति में अहम योगदान देने वाले बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) के संस्थापक कांशीराम (Kanshi Ram) का 15 मार्च को जन्मदिन मनाया जा रहा है। कहते हैं कि अंबेडकर के बाद कांशीराम ने भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव किया था। इस मौके पर बसपा प्रमुख मायावती ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इसक मौके पर उन्होंने उन्हें याद करते हुए कहा कि अपने खून-पसीने से अर्जित धन के बल पर डटे रहना कोई मामूली बात नहीं है।
पंजाब के एक दलित परिवार में जन्म कांशीराम ने बीएससी की पढ़ाई की। उसके बाद क्लास वन रैंक के ऑफिसर के तौर पर सरकारी नौकरी की थी। लेकिन इसी दौरान आजादी के बाद आरक्षण की मांग को लेकर उन्होंने सरकारी सेवा में दलित कर्मचारियों का एक संगठन बनाया। कांशीराम ने दलितों से जुड़े कई मुद्दें उठाए और यहां तक कि उन्होंने ही अंबेडकर जयंती पर छुट्टी की मांग भी की थी। इसी तरह दलितों के लिए वकालत करते करते 1984 में बसपा की स्थापना कर दी। यहां हम उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बाते कर रहे हैं.....
1. कहते हैं कि 1984 में उन्होंने बसपा की स्थापना के बाद से ही कांशीराम पूरी तरह से राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता बन चुके थे। इसके बाद उन्होंने मौजूदा पार्टियों में दलितों के स्थान की जांच की और बाद में उन्हें अपनी पार्टी बनाने की आवश्यकता महसूस हुई। वे एक विचारक और जमीनी स्तर के कार्यकर्ता भी थे। बसपा ने बहुत ही कम समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अलग छाप छोड़ी। गैर-ब्राह्मणवाद शब्द की शुरुआत बसपा ने ही की थी। कांशीराम का मानना था कि उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा।
2. कांशीराम मायावती के मार्गदर्शक थे। मायावती ने कांशीराम की राजनीति को आगे बढ़ाया और बसपा को राजनीति में एक ताकत के तौर पर खड़ा किया। लेकिन मायावती कभी कांशीराम की तरह राजनीतिक विचारक नहीं थीं। 2006 में कांशीराम के निधन से पहले 3 सालों तक वह राजनीति से दूर थे। कई बार यूपी चुनाव में बीएसपी ने कई अहम रोल निभाए लेकिन साल 2014 के बाद से बीएसपी का यूपी में वर्चुचस्व कम होता गया। चुनाव 2022 में बीएसपी पूरे राज्य में सिर्फ एक सीट हासिल कर सकी।
3. कांशीराम भले ही भीमराव अंबेडकर की तरह विचारक और बुद्धिजीवी न हों। लेकिन इस बारे में कई तर्क दिए जा सकते हैं कि अंबेडकर के बाद कांशीराम ने भारतीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव लाए। कह सकते हैं कि अंबेडकर ने एक शानदार संविधान के माध्यम से इस बदलाव का खाका पेश किया। लेकिन कांशीराम ने इसे राजनीतिक क्षेत्र में उतारा था।
4. राजनीति के जानकारी को कहना है कि इस बात पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई कि अटल बिहारी वाजपेयी कांशीराम को राष्ट्रपति क्यों बनाना चाहते थे। लेकिन अटल जी के इस प्रस्ताव से कांशीराम खुश नहीं थे। राजनीति में किसी विरोधी को खुश करना उसे कमजोर करने का प्रयास भी होता है। हो सकता है कि वाजपेयी इसमें कुशल हों लेकिन कांशीराम को पूरी तरह समझने में थोड़े चूक गए। नहीं तो ऐसा प्रस्ताव अटल कभी नहीं देते।
5. साल 1990 के आस पास से ही कांशीराम की हालत बिगड़ने लगी थी। उन्हें शुगर के साथ-साथ ब्लड प्रेशर की भी समस्या थी। 1994 में उन्हें दिल का दौरा पड़ा और साल 2003 में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हो गया। हुआ। साल 2004 में वह राजनीति से दूर हो गए। इसके बाद साल 2006 में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। लेकिन यूपी की राजनीति में जो अहम योगदान उन्होंने दिया। वह कभी नहीं भूला जा सकता है।