Kargil Vijay Diwas Shayari : इन टॉप 10 कारगिल विजय दिवस शायरी से दें जवानों को श्रद्धांजलि
Kargil Vijay Diwas Shayari (कारगिल विजय दिवस शायरी) कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) हर साल कारगिल युद्ध (Kargil War) में शहीद (Martyr) हुए जवानों को सम्मान देने के लिए 26 जुलाई को मनाया जाता है। ऐसे में लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए कारगिल विजय दिवस शायरी, संदेश, फोटो गूगल पर सर्च कर रहे हैं।;
Kargil Vijay Diwas Shayari कारगिल विजय दिवस शायरी / कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) हर साल कारगिल युद्ध (Kargil War) में शहीद (Martyr) हुए जवानों को सम्मान देने के लिए 26 जुलाई को मनाया जाता है। पाकिस्तान के साथ हुए इस युद्ध में भारत ने विजय (Victory) प्राप्त की थी। 60 दिनों तक चला ये युद्ध 26 जुलाई 1999 (26 July 1999) को समाप्त हुआ था। भारतीय सेना के बहादुर जवानों ने पाकिस्तानी सैनिकों को कारगिल से खदेड़ कर तिरंगा फहराया था। इम मौके पर हम आपको देशभक्ति से लबरेज कारगिल विजय दिवस शायरी रू-ब-रू करा रहा हैं। इन शायरी को आप अपने दोस्तों, रिश्तेदार और अन्य चाहने वालों को सोशल मीडिया टूल के माध्यम से शेयर कर कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) की शुभकामनाएं दें सकते हैं।
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अज्ञातदिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी
-लाल चन्द फ़लक
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी
जिंदगी जब तुझको समझा, मौत फिर क्या चीज है
ऐ वतन तू हीं बता, तुझसे बड़ी क्या चीज है
हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन
ऐ ख़ाक-ए-वतन क़र्ज़ अदा क्यूँ नहीं होता
- वाली आसी
न इंतिज़ार करो इन का ऐ अज़ा-दारो
शहीद जाते हैं जन्नत को घर नहीं आते
- साबिर ज़फ़र
तेरे शहीद को दूल्हा बना हुआ देखा
रवाँ जनाज़े के पीछे बरात कितनी है
- बेख़ुद देहलवी
किस्तम बदते देखी है मैंने और बदलते देखा है अपना,
पर नहीं बदला जो अभी तक वो है फौजी भाई अपना..
- ऋषभ चोलकर
आज आई है एक मुसीबत, भारत माँ संकट में है,
उसकी लाज़ बचाने को तो, वो सैनिक सदा तत्पर है,
बढ़ा रहा है अपने कदम वो, दुश्मन को मार गिराना है,
हिम्मत जो की है उसने आज, उसका सबक सिखाना है..
हंस रहा था वो चेहरा वीर का, मगर सारा शहर सदमे में था,
पिता की आँखों में आंसू थे, मानो उससे पूछ रहे थे,
इस घर में क्या कमी थी बेटा, जो सरहद पर तुम लड़ रहे थे,
माँ का हाल बहुत बुरा था, शरीर मूर्ती सा लग रहा था..
जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर
ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की
-जमील मज़हरी
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