भगवान जगन्नाथ की Rath Yatra शुरू, बहन सुभद्रा के साथ रात 10:04 बजे निकलेंगे भाई बलराम

पुरी (Puri) में आज भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा (Rath Yatra) शुरू हो गई। यात्रा के लिए तीन भव्य रथ बनाए गए हैं। पहले रथ में भगवान जगन्नाथ, दूसरे रथ में भाई बलराम और तीसरे रथ में बहन सुभद्रा सवार होंगी। पढ़ें पूरी अपडेट्स...;

Update: 2023-06-20 06:01 GMT

Jagannath Rath Yatra 2023: ओडिशा (Odisha) के पुरी (Puri) में आज भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा शुरू हो गई। रात 10:04 बजे जगन्नाथ जी अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ निकलेंगे। अगले दिन रात 7.09 बजे वे अपनी मौसी के घर, यानी गुंडिचा मंदिर जाएंगे और 9 दिनों तक वहीं रुकेंगे। इसके बाद वापस जगन्नाथ मंदिर लौट आएंगे। यात्रा के लिए तीन भव्य रथ बनाए गए हैं। पहले रथ में भगवान जगन्नाथ, दूसरे रथ में भाई बलराम और तीसरे रथ में बहन सुभद्रा सवार होंगी। रथ बनाने के लिए खास तरह के 884 पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल होता है, जिसे काटने के लिए पहले सोने की कुल्हाड़ी का प्रयोग होता है।

हर दिन बदला जाता है मंदिर का ध्वज

बता दें कि जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) का ध्वज हर दिन बदला जाता है। इसमें एक दिन भी चूक नहीं होती है, चाहे बारिश आए या तूफान। मान्यता है कि अगर एक दिन भी ध्वज नहीं बदला गया तो 18 साल के लिए मंदिर बंद हो जाएगा। मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्तियां हैं। सभी मूर्तियां लकड़ी की बनी हैं। यहां पूजा के विधि-विधान भी खास हैं। मंदिर के पुजारी सूर्यनारायण शर्मा बताते हैं कि सुबह भगवान उठने के बाद दंत-मंजन करते हैं। इसके लिए उन्हें लकड़ी और कपूर दिया जाता है। फिर वे बिंब स्नान करते हैं। यानी सात हाथ की दूरी से शीशे में अपना बिंब देखते हैं। वह शीशा सूर्य का प्रतीक होता है और मंत्रों से स्थापित किया जाता है।

वर्ष में एक बार पानी से नहाते हैं जगन्नाथ प्रभु

वर्ष में एक बार बरसात के मौसम में प्रभु जगन्नाथ प्रत्यक्ष स्नान भी करते हैं। यानी वे पानी से नहाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब वे पानी से नहाते हैं, तो उन्हें बुखार आ जाता है। इसके बाद 15 दिन तक वे आराम करते हैं। इस दौरान उनका दर्शन नहीं होता है। पूजा की विधि भी बदल जाती है। उन्हें सिर्फ सफेद फूल चढ़ाया जाता है। सफेद कपड़े पहनाए जाते हैं। इसके बाद फुलरी के तेल से उनकी मालिश होती है। इलाज के लिए राजवैद्य को बुलाया जाता है। वे आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां देते हैं। इसको लेकर पुरी में एक कहावत भी है कि एलोपैथ से दूर रहो, क्योंकि जगन्नाथ भी आयुर्वेद लेते हैं। स्नान के बाद भगवान का श्रृंगार होता है, भोग लगता है। इसके बाद दोबारा श्रृंगार किया जाता है। यही प्रक्रिया दोपहर और शाम में भी दोहराई जाती है। शाम में भोग लगने के बाद भगवान सोने के लिए जाते हैं। इसके लिए पलंग लगाया जाता है, गद्दा डाला जाता है। उनके लिए पान, पानी और नारियल रखा जाता है। इस पूरे काम के लिए 119 लोग लगते हैं।

742 चूल्हों पर एक साथ बनते हैं प्रसाद

गौरतलब है कि यहां 56 प्रकार के प्रसाद बनते हैं। इसमें नारियल के लड्डू, मावे के लड्डू, दही चावल, विभिन्न प्रकार के पेठा, मालपुआ, दाल-भात, कई प्रकार की सब्जियां, खीर, खिचड़ी जैसी चीजें शामिल होती हैं। प्रसाद बनाने के लिए कुएं के पानी का इस्तेमाल होता है, जिसे सोने के घड़े से निकाला जाता है। ये प्रसाद 742 चूल्हों पर एक साथ बनते हैं। इसके लिए एक के ऊपर एक आठ हांडियां चढाई जाती हैं। सबसे पहले ऊपर वाली हांडी का खाना पकता है, उसे उतारा जाता है और फिर नीचे वाली हांडी का पकता है। इस तरह आठों हांड़ियों से खाना उतारा जाता है। यही प्रक्रिया सभी 742 चूल्हों के लिए अपनाई जाती है। प्रसाद बनाने के लिए करीब 1500 लोग लगते हैं।

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