RSS Vijayadashami: नागपुर में बोले संघ प्रमुख मोहन भागवत, लिंचिंग शब्द भारत का नहीं, हर घटना को अलग तरीके से बताया गया
विजयदशमी के पर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने नागपुर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया है। इस खास मौके पर मोहन भावत ने कहा कि देश में सब कुछ अच्छा हो रहा है। देश में कठोर और साहसी फैसले लेने वाली सरकार है।;
विजयदशमी के पर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने नागपुर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया है। इस खास मौके पर मोहन भावत ने कहा कि देश में सब कुछ अच्छा हो रहा है। देश में कठोर और साहसी फैसले लेने वाली सरकार है। उन्होंने मॉब लिंचिंग पर भी बड़ा बयान दिया और मोदी सरकार की खुलकर तारीफ भी की।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने संबोधन की शुरुआत में कहा कि पिछले साल की विजयदशमी बहुत ही खास थी। इस बार गुरु नानक देव जी के 550 वें प्रकाश पर्व और महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जा रही है।
RSS Chief Mohan Bhagwat in Nagpur: In such incidents, RSS members do not get involved rather they try to stop it. Par iss sabko ko tarah tarah se pesh karke, use jhagda banane ka kaam chal raha hai. Ek shadyantra chal raha hai, yeh sabko samajhna chaiye. #Maharashtra https://t.co/TBuKHRxr2n
— ANI (@ANI) October 8, 2019
मोहन भागवत ने आगे कहा कि कुछ सालों में परिवर्तन आया है। भारत में सोच की दिशा बदली है। मोदी सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि उसको ना चाहने वाले व्यक्ति दुनिया में भी हैं और भारत में भी। भारत को बढ़ता हुआ देखना जिनके स्वार्थों के लिए भय पैदा करता है, ऐसी शक्तियां भी भारत को दृढ़ता व शक्ति से संपन्न होने नहीं देना चाहती हैं।
दशहरे का दिन संघचालकों के लिए एक विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस दिन आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी। जबकि भागवत के भाषण ज्यादातर प्रासंगिक मुद्दों पर रहते हैं। वे अक्सर राजनीतिक उपक्रमों से जुड़े होते हैं।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भले ही समाज का विकास जारी है और लोग अपनी परिस्थितियों के प्रति सजग रहते हैं लेकिन भारत का हिंदू राष्ट्र के रूप में विचार अपरिवर्तित है। कठोर सोच में खुद को बंद करना संभव नहीं है। इसीलिए संघ के विचार एक विचारधारा नहीं हैं।
उन्होंने समलैंगिकता और ट्रांसजेंडर लोगों के सामने आने वाले मुद्दों पर कहा कि इन लोगों का समाज में एक स्थान है। महाभारत में जरासंध के दो सेनापति थे, जो युद्ध में एक दूसरे के साथ लड़े थे। हमने इसके बारे में भी बात की है। यह इतनी बड़ी समस्या नहीं है, हम समाधान पा सकते हैं। हर चीज पर बहस का कोई अभ्यास नहीं है।
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