Mother Teresa Biography: ममता की मूरत मदर टेरेसा का आज ही के दिन हुआ था जन्म, 1980 में मिला भारत रत्न, पढ़ें पूरी जीवनी...

Mother Teresa Biography: मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने सिखाया कि पराया होकर भी निस्वार्थ भाव से कैसे प्रेम किया जाता है। उन्होंने लोगों की सेवा करने के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी। उन्हें उनके कार्यों के लिए कई बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यहां पढ़ें उनकी पूरी जीवनी...;

Update: 2023-08-26 00:30 GMT

Mother Teresa Biography: पराया होकर भी निस्वार्थ भाव से प्रेम कैसे किया जाता है, इसका सबसे अच्छा उदाहरण है मदर टेरेसा (Mother Teresa)। मदर टेरेसा को ममता की मूरत कहा जाता है, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लोगों की सेवा करने के लिए लगा दी थी। उस महान शख्सियत का जन्म आज के ही दिन यानी 26 अगस्त 1910 को मैसिडोनिया (Macedonia) की राजधानी स्कॉप्जे (Skopje) में हुआ था। मदर टेरेसा को हमेशा से उनके नेक कामों के लिए याद किया जाता है। उनके द्वारा किए कार्यों के लिए उन्हें साल 1980 में भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था। इसके एक साल पहले ही यानी साल 1979 में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) भी मिला था। इसके अलावा भी उन्हें कई बड़े पुरस्कार से नवाजा गया है। मदर टेरेसा के जन्मदिन के अवसर पर हम आपको उनकी पूरी जीवनी बताने वाले हैं। आपको बताएंगे कि स्कोप्जे के होने के बाद भी उन्हें भारत से इतना प्यार क्यों था।

1948 में मदर टेरेसा को भारत की नागरिकता मिली

मदर टेरेसा को बचपन से ही लोगों की मदद करने का काफी शौक था। जब भी वो किसी बेसहारा को देखती थी, तो अपना सब कुछ भूलकर, उस गरीब बेसहारा की मदद के लिए आगे आती थी। मदर टेरेसा कैथोलिक नन थीं, उन्होंने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था। बता दें कि उन्होंने भारत के अलावा भी कई देशों की यात्रा की थी। साल 1929 में वो पहली बार भारत आई थी, उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 19 साल थी। भारत के लोगों से वो इस कदर जुड़ गई कि फिर कभी वापस ही नहीं गई और पूरी जिंदगी मानवता की सेवा करने में बिता दी। साल 1948 में मदर टेरेसा को भारत की नागरिकता दे दी गई।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय 

मदर टेरेसा का असली नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था, लेकिन उनके नेक कार्यों के कारण उन्हें मदर नाम की उपाधि दी गई। उनकी मां निकोला बोजाक्सीहू थी, जबकि उनके पिता ड्रैनफाइल बोजाक्सी हु थे। वह एक भाई और एक बहन थी। उनकी मां भी लोगों को काफी दान दिया करती थी। उन्हें अपनी मां से ही लोगों की मदद करने की प्रेरणा मिली थी। उनके पिता निकोला बोयाजू एक व्यवसायी थे, जब टेरेसा सिर्फ आठ साल की थीं, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। पांच भाई-बहनों में वे सबसे छोटी थी। उनके एक भाई-बहन की मौत बचपन में ही हो गई थी। पिता के गुजरने के बाद उनके परिवार को काफी आर्थिक संकटों से गुजरना पड़ा था।

मदर टेरेसा की पूरी शिक्षा  

मदर टेरेसा ने अपनी स्कूली शिक्षा एक प्राइवेट कैथोलिक स्कूल से अल्बानिया भाषा में पूरी की थी, इसके बाद उन्होंने आगे की शिक्षा सरकारी स्कूल से पूरी की थी। टेरेसा को म्यूजिक प्ले करना और गाने का काफी शौक था। सिर्फ 18 साल की उम्र में उन्होंने सिस्टर ऑफ लैराटो में शामिल होने का फैसला किया। फिर वह आयरलैंड गईं, जहां उन्होंने अंग्रेजी सीखी। वे कैथोलिक चर्च (Catholic church) से भी जुड़ी हुई थीं, उन्होंने कैथोलिक मिशनरियों (Catholic Missionaries) की कहानियों को सुना और लोगों की सेवा में खुद को समर्पित कर दिया। उन्होंने अपनी जिंदगी में सेवा के लिए कई यात्राएं की और 1928  में कैथोलिक संस्थान में शामिल होने के बाद उन्होंने आयरलैंड (Ireland) में करीब 6 महीने की ट्रेनिंग ली। अगले ही साल यानी 1929 में वह भारत आई और कोलकाता शहर में पढ़ाने लगीं।

इतिहास और भूगोल विषय पढ़ाती थी टेरेसा 

1931 के मई महीने में उन्होंने नन के रूप में प्रतिज्ञा ली थी। इसके बाद वे मिशनरी स्कूल में पढ़ाने के लिए चली गई, वहां से उन्हें कलकत्ता (Kolkata) शहर भेजा गया, यहां उन्हें गरीब बंगाली लड़कियों को शिक्षा देने के लिए कहा गया। टेरेसा को बंगाली और हिंदी दोनों भाषा अच्छे से आती थी। वे बच्चों को इतिहास और भूगोल विषय पढ़ाया करती थीं। इस दौरान उन्होंने गरीबी, लाचारी, अज्ञानता और लोगों में फैलती बीमारी को काफी करीब से देखा। ये सब देखकर वे सभी की मदद करने लगी थी, इसी कारण से 1937 में उन्हें मदर की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसका बाद साल 1944 में वे संत मैरी स्कूल की प्रिंसिपल बन गईं।

अनाथ बच्चों के लिए बनाया आश्रम

मदर टेरेसा कॉलेज की प्रिंसिपल थी, इसके कारण से उन्हें लोगों की सेवा करने के लिए कम समय मिल पाता था। इसलिए उन्होंने साल 1948 में कॉलेज छोड़ दिया और सफेद रंग की नीली धारी वाली साड़ी को अपना ड्रेस बना लिया। फिर उन्होंने बिहार के पटना से नर्सिंग की ट्रेनिंग ली और वापस कलकत्ता आकर लोगों की सेवा में जुट गई। उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम भी बनाया था। इन सब काम को करने के लिए पैसों की जरूरत थी, लेकिन उनकी लगन को देखते हुए कई चर्च भी उनके साथ आ गए।

1950 को बनाई मिशनरीज ऑफ चैरिटी

इस कड़ी में 7 अक्टूबर 1950 को मदर टेरेसा ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी(Missionary of Charity)बनाई। इस संस्था में वॉलिंटियर संत मैरी स्कूल के शिक्षक ही थे, जो बिना किसी लोभ के सेवा भाव से इस संस्था से जुड़े थे। शुरुआती दौर में इस संस्था में 12 लोग काम करते थे, लेकिन वर्तमान में  यहां 4000 से ज्यादा नन काम कर रही हैं। इस संस्था के जरिए अनाथालय, वृद्धाश्रम, नर्सिंग होम बनाए गए हैं। मिशनरी ऑफ चैरिटी का मुख्य उद्देश्य अनाथ लोगों की मदद करना है। उन दिनों प्लेग (plague) नाम की की बीमारी काफी फैली थी। मदर टेरेसा और उनकी संस्था ऐसे रोगियों के घाव को हाथ से साफ कर मरहम पट्टी किया करती थी।

ऐसे हुआ मदर टेरेसा का देहांत

साल 1965 में मदर टेरेसा ने “रोम” (Rome) के पॉप जॉन पॉल 6 से अपनी मिशनरी को दूसरे देशों में फैलाने का फैसला किया और भारत के बाहर पहला मिशनरीज ऑफ चैरिटी संस्थान ‘वेनेजुएला’ (Venezuela) में शुरू किया। इसका लोगों पर इतना प्रभाव पड़ा कि वर्तमान में 100 से ज्यादा देशों में मिशनरीज ऑफ चैरिटी संस्था है। लोगों की सेवा के लिए समर्पित मदर टेरेसा को कई सालों से दिल और किडनी की बीमारी थी। इसके कारण से उन्हें साल 1983 में रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मुलाकात के दौरान अटैक भी आया था, लेकिन इलाज कराने के बाद वह ठीक हो गई। फिर उन्हें 1989 में दिल का दौरा आया, लेकिन लोगों की दुआ ने उन्हें एक बार फिर बचा लिया। इसके बाद 1997 में उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई, इसके कारण से उन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटी के हेड का पद छोड़ दिया। इसी दौरान 5 सितंबर 1997 को पूरी दुनिया की ममता को अपने में सिमटने वाली मदर टेरेसा का कोलकाता में देहांत हो गया।

भारत रत्न समेत ये पुरस्कार मिला

मदर टेरेसा अब भले ही हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्यों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। लोगों की सेवा के प्रति उनकी समर्पण को देखते हुए उन्हें कई बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें साल 1962 में भारत सरकार द्वारा “पद्म श्री (Padma Shri)” अवार्ड से सम्मानित किया गया था। फिर 1979 में गरीब और बेसहारा लोगों की मदद करने के लिए उन्हें “नोबल पुरस्कार (Nobel Prize)” मिला। इसके बाद साल 1980 में उन्हें भारत के सबसे बड़े सम्मान “भारत रत्न (Bharat Ratna)” से नवाजा गया। इसके अलावा 1985 में अमेरिका सरकार ने उन्हें “मैडल ऑफ फ्रीडम” अवार्ड दिया। वहीं, उनकी देहांत के बाद साल 2003 में पॉप जॉन पॉल ने उन्हें टेरेसा ऑफ कोलकाता कहकर सम्मानित किया।

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