Mothers Day Date 2019 In India : मदर्स डे 2019 में 12 मई को, जानें एक मां दो चेहरे के बारे में...
मदर्स डे 2019 (Mother's Day 2019) में 12 मई (12 May) को विश्व भर में मनाया जायेगा। मां केवल एक शब्द या रिश्ता नहीं है। मां 'ममता' का सागर है, मां भावनाओं का ऐसा अनुपम संसार है, जिसमें अपनी संतान के लिए केवल प्यार, दुलार और दुआओं की बारिश होती रहती है। उस मां की कितनी भी सेवा की जाए, उसे कितने भी सुख दिए जाएं, उसकी महानता, उसके त्याग के समक्ष उसका कोई मोल नहीं। उसके लिए एक दिन क्या पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया जाए तो भी कम ही है।;
मदर्स डे 2019 (Mother's Day 2019) में 12 मई (12 May) को विश्व भर में मनाया जायेगा। मां केवल एक शब्द या रिश्ता नहीं है। मां 'ममता' का सागर है, मां भावनाओं का ऐसा अनुपम संसार है, जिसमें अपनी संतान के लिए केवल प्यार, दुलार और दुआओं की बारिश होती रहती है। उस मां की कितनी भी सेवा की जाए, उसे कितने भी सुख दिए जाएं, उसकी महानता, उसके त्याग के समक्ष उसका कोई मोल नहीं। उसके लिए एक दिन क्या पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया जाए तो भी कम ही है।
एक मां दो चेहरे
मां तब
बीस लाख बरस से भी पहले, वर्तमान मां की पहली तस्वीर सामने आयी। मनुष्य की वर्तमान प्रजाति यानी होमोसैपियेन्स के विकास के आरम्भिक चरण में मां की भूमिका निर्धारित हुई और उसे स्थान मिला। आज ही की तरह प्रस्तर युग से लौह युग के संक्रमण काल में होमो इरेक्टस के नवजातों को अपने जन्मदाता पर चिम्पाजी या किसी भी दूसरी प्रजाति के जानवरों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही निर्भर रहना पड़ता। इनका बचपना अधिक उम्र तक खिंचता था।
यह इस बात से ही समझा जा सकता है कि जब तक बच्चा अपने से कुछ खाने पीने लायक नहीं हो पाता है तब तक कम से कम 130 लाख कैलोरी ऊर्जा उसे अपनी मां से ही लेनी पड़ती है। ऐसे में में मां शिशु को अकेले ही संभालती थी, तब न रिश्ते थे न संयुक्त परिवार। पिता शिकार और सुरक्षा में व्यस्त रहता तो मां को शिशु को संभालने एक साथ शिकार का रख रखाव भी करना पड़ता था। यह मांओं के लिये एक कठिन दौर था। न मशीनें न अस्पताल, न रिश्ते नाते न कोई और सहयोग।
मां अब
सोच और रहन-सहन में भी बदलाव और संयुक्त परिवार के टूटन तथा एकल परिवार के चलन ने मां का एक अलग चेहरा पेश किया है। इस मां के पास लालन-पालन में व्यस्तता के बावजूद अपने लिये खूब समय है। इस समय को वह 'मी टाइम' कहती है। सास ससुर और ननद देवर की खटपट से आजाद और तमाम तरह की तकनीकि सुविधाओं से लैस। शहरी मां बच्चे का भरपूर ध्यान तो रखती है पर उनके लिये चिंतातुर नहीं है। तकनीकि ज्ञान संपन्न नेटवर्क से जुड़ी रहने वाली मां बच्चों के पीछे अपनी फिटनेस व करियर को होम नहीं करती।
अच्छी शारीरिक और आर्थिक सेहत लंबे व सुखमय जीवन की कुंजी है इस लिये वह कामकाजी, सक्रिय और शरीर तथा सौंदर्य के प्रति सचेत है। 40 से ऊपर की वय वाली इस दौर की माएं वे हैं जो सीमित संतान का महत्व समझती हैं, बड़ी उम्र तक सौंदर्य और फिटनेस के क्या फायदे हैं इसके अहसास के साथ वे जान चुकी हैं कि बेटे और बहू उनके साथ रहें उनकी सेवा करें, आर्थिक संबल बनें और जीवन का आनंद दिलायें यह आशा फलीभूत नहीं भी हो सकती है इसलिये वे आर्थिक निर्भरता के लिये जद्दोजहद कर स्वयंसिद्धा बन सफल हुईं।
इन नयी किस्म के मॉडर्न मॉम्स ने अपने लिये धन, मान प्यार सुरक्षा के इतजाम कर लिये हैं। उनके पास पैसा है और खर्चने की जगहें भी और आनंद लेने के लिये समय भी। शरीर भी इसका साथ दे इसलिये वे साज, संवार, फैशन और फिटनेस के साथ सामाजिकता पर ध्यान देती हैं। जरा टीवी सीरियलों की मां देखिये। वे हेमा मालिनी और रेखा से होड़ नहीं उन्हें मात देती नजर आती हैं। समाजशास्त्रियों द्वारा किये एक सर्वेक्षण के मुताबिक 40 से 60 साल के महिला वर्ग में नाटकीय परिवर्तन आया है। आजादी के बाद उच्च शिक्षा पाने वाली यह पहली पीढ़ी है इसे खुला बाजार और विकास करता माहौल मिला तो साथ ही परिवार का सहयोग और प्रोत्साहन भी जिससे इनमें सजगता भी बढ़ी। जब से महिलाओं में शिक्षा का प्रचार प्रसार बढा श्रम विभाजन में अंतर आया। अर्थवयवस्था बदली तो लोग बाहर निकले। आर्थिक आवश्यकताओं के तहत महिलायें नौकरी के लिये बाहर निकलीं तो पुरुषों को घर के काम करने पड़े, लालन-पालन भी। ऐसे में माओं का बच्चों के लालन-पालन में समय बंटा है पर पहले से बढ़ा है।
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