Pakadwa Marriage in Bihar: 'पकड़ौआ विवाह' लड़की वालों की 'दादागिरी या मजबूरी', पढ़िये बिहार की खतरनाक 'प्रथा' का इतिहास

Pakadwa Marriage in Bihar: मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि पकड़ौआ विवाह की नींव बिहार में 60 के दशक में पड़ी थी। जो लोग दहेज नहीं दे पाते थे, वे जबरन लड़के का अपहरण करके उसका विवाह करा देते थे। हालांकि दूसरा पक्ष यह भी है कि पकड़ौआ विवाह के लिए वर पक्ष भी जिम्मेदार होते हैं। पढ़िये यह रिपोर्ट...;

Update: 2023-12-02 07:53 GMT

Pakadwa Marriage in Bihar: वैशाली में बीपीएससी से चयनित टीचर का अपहरण करके जबरन शादी कराने से पकड़ौआ विवाह पर चर्चा तेज हो गई है। कई लोग पकड़ौआ विवाह को लड़की वालों की दादागिरी बता रहे हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे विवाह को लड़की वालों की मजबूरी बताते हैं। खास बात है कि पकड़ौआ विवाह के मामले बिहार से ही सामने आते हैं। अब सवाल उठता है कि पकड़ौआ विवाह के लिए केवल लड़की वाले ही दोषी होते हैं या फिर लड़के वाले भी जिम्मेदार हो सकते हैं, चलिये समझने का प्रयास करते हैं।

भारत में राजा महाराजा के जमाने से वधु पक्ष की तरफ से वर पक्ष को उपहार दिए जाते थे। बाद में इसका नाम 'उपहार' से बदलकर 'दहेज' हो गया। वर पक्ष खुलकर वधु पक्ष से दहेज की मांग करने लगा। दहेज न मिलने पर तो बारात तक लौट जाती थी। अगर वधु पक्ष के अश्वासन पर शादी हो भी जाए, तो भी जब तक पूरा दहेज नहीं मिलता था, तब तक लड़की को अपनी ससुराल में घुसने नहीं दिया जाता था। यही नहीं, सारी मांगें पूरी होने के बाद भी अगर महिला अपनी ससुराल पहुंच जाती, तो भी उस पर अत्याचार जारी रहता था ताकि वो और दहेज ला सके। इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ भारत में 1961 में कानून बना। इस कानून के तहत दहेज लेने और देने को अपराध की श्रेणी में रखा गया। बताया जाता है कि इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद ही पकड़ौआ विवाह की नींव पड़ी है।

कैसे पड़ी पकड़ौआ विवाह की नींव

मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि पकड़ौआ विवाह की नींव बिहार में 60 के दशक में पड़ी थी। जो लोग दहेज नहीं दे पाते थे, वे जबरन लड़के का अपहरण करके उसका विवाह करा देते थे। पकड़ौआ विवाह के शुरुआती दौर में सबसे ज्यादा मामले बिहार के गंगा बेल्ट के आसपास के इलाकों से सामने आते थे। उस वक्त लोग मानते थे कि अगर सात फेरे हो गए तो समझो सात जन्मों का रिश्ता बंध गया है। ऐसे में लोग पुलिस के पास नहीं जाते थे। अगर पुलिस के पास जाते तो यह भी डर रहता था कि कहीं दहेज कानून के घेरे में न घिर जाएं। इस कारण से पकड़ौआ विवाह के मामले तेजी से सामने आने लगे। हालांकि वक्त बदलने के साथ लोग जागरूक हुए कि जबरन विवाह मान्य नहीं होता है, तो पीड़ितों ने पकड़ौआ विवाह के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की। लेकिन वैशाली से आए मामले ने स्पष्ट कर दिया है कि पकड़ौआ विवाह पर आज भी नकेल नहीं कसी जा सकी है।

पकड़ौआ विवाह के लिए कौन जिम्मेदार

अभी तक की खबर को पढ़कर आपको लगा होगा कि पकड़ौआ विवाह के लिए लड़की वाले जिम्मेदार होते हैं, लेकिन वर पक्ष को पूरी तरह से क्लीन चिट देना भी जल्दबाजी होगा। दरअसल, पकड़ौआ विवाह के लिए वधु पक्ष की तरह वर पक्ष भी जिम्मेदार हो सकता है। एक रिपोर्ट में रेलवे में कार्यरत एक लोको पायलट पवन (काल्पनिक नाम) की पत्नी सुमन (काल्पनिक नाम) ने बताया कि ससुरालियों ने दहेज में 10 लाख रुपये मांगे थे। 5 लाख रुपये दे भी दिए थे, लेकिन फिर भी मंगनी करने में देरी करने लगे। सुमन को पवन से पता चला कि उसकी मां ने कहीं और रिश्ता तय कर लिया है और 12 लाख रुपये दहेज देंगे। सुमन ने बताया कि पवन उनसे प्यार करने लगे थे, इसलिए उन्होंने उनकी मर्जी के बिना शादी कर ली। सुमन ने बताया कि आज वो उनके घर जाती हैं, लेकिन समय समय पर दहेज का ताना मार दिया जाता है। यही नहीं अब तो पवन भी हर झगड़े में यह कह कर जख्म हरा करता है कि अगर परिवार की मर्जी से शादी करता तो परिवार भी खुश रहता और मैं भी। 'मैं भी खुश रहता' का मतलब आज तक सुमन नहीं समझ पाई है।

दादागिरी करने की बजाय कानून का लें सहारा

नोएडा में एक प्राइवेट कंपनी के वकील अभिनव शर्मा ने बताया कि पकड़ौआ विवाह कानून के हिसाब से मान्य नहीं है। अगर वर पक्ष दहेज की मांग करता है और शादी से पीछे हटता है तो वधु पक्ष पुलिस को शिकायत दे सकता है। वहीं, अगर लड़की पक्ष जबरन किसी लड़के का अपहरण करके शादी कराता है, तो भी तुरंत पुलिस को शिकायत देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दहेज लेना और देना, दोनों अपराध की श्रेणी में है। दहेज लेने वाले के साथ ही दहेज देने वाला भी कानून की नजर में गुनाहगार है, ऐसे में पीड़ित को घबराने की बजाय कानूनी लड़ाई लड़नी चाहिए।

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