'स्वर्णिम विजय पर्व' पर राजनाथ सिंह बोले- पाकिस्तान का जन्म एक मज़हब के नाम पर हुआ, 1971 के युद्ध को लेकर दिया ये बयान

आज के दिन मैं भारतीय सेना के हर उस सैनिक के शौर्य, पराक्रम और बलिदान को नमन करता हूं, जिनकी वजह से 1971 के युद्ध मे भारत ने विजय हासिल की। यह देश उन सभी वीरों के त्याग और बलिदान का सदैव ऋणी रहेगा।;

Update: 2021-12-12 05:22 GMT

केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को 'स्वर्णिम विजय पर्व' के उद्घाटन समारोह को संबोधित किया। इस दौरान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आज हम सभी यहां इंडिया गेट पर 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के 'स्वर्णिम विजय वर्ष' के अंतर्गत आयोजित 'विजय पर्व' को मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं। यह पर्व भारतीय सेनाओं की उस शानदार विजय के उपलक्ष्य में है, जिसने दक्षिण एशिया के इतिहास और भूगोल दोनो को बदल कर रख दिया। 

यह आयोजन और भी भव्य और दिव्य रूप में करने का निर्णय हुआ था मगर देश के पहले सीडीएस, जनरल बिपिन रावत के असामयिक निधन के बाद इसे सादगी के साथ मानने का निर्णय लिया गया है। आज के अवसर मैं उन्हें भी स्मरण करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। आज के दिन मैं भारतीय सेना के हर उस सैनिक के शौर्य, पराक्रम और बलिदान को नमन करता हूं, जिनकी वजह से 1971 के युद्ध मे भारत ने विजय हासिल की। यह देश उन सभी वीरों के त्याग और बलिदान का सदैव ऋणी रहेगा। आप सभी शायद मार्टिन लूथर किंग जूनियर के उस कथन से अवगत होंगे, जिसमें उन्होंने कहा था, कि 'Injustice anywhere is a threat to justice everywhere' यानि किसी भी जगह अगर अन्याय हो रहा हैं तो वो दूसरी जगह व्याप्त न्याय के लिए भी खतरा पैदा करता है। 

कभी-कभी मैं सोचता हूं, कि हमारे बंगाली बहनों और भाइयों का कसूर आखिर था क्या? बस यही, कि वे अपने अधिकारों की मांग कर रहे थे? अपनी कला, संस्कृति और भाषा के संरक्षण की मांग कर रहे थे? वह राजनीति और शासन में अपने उचित प्रतिनिधित्व की बात कर रहे थे? हमारे बंगाली बहनों और भाइयों पर होने वाला अन्याय और अत्याचार किसी न किसी रूप में संपूर्ण मानवता के लिए ख़तरा था। ऐसे में पूर्वी पाकिस्तान की जनता को उस अन्याय और शोषण से मुक्ति दिलाना हमारा राजधर्म भी था, राष्ट्रधर्म भी था और सैन्यधर्म भी था। यह युद्ध हमारी नैतिकता, हमारी लोकतांत्रिक परम्पराओं और न्यायपूर्ण व्यवहार का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ऐसा इतिहास मे कम ही देखने को मिलेगा कि कोई देश किसी दूसरे देश को युद्ध मे हराने के बाद, उसपर अपना प्रभुत्व न जताए बल्कि वहाँ के राजनीतिक प्रतिनिधि को सत्ता सौंप दे। 

भारत ने बांग्लादेश मे लोकतंत्र की स्थापना मे अपना योगदान दिया और आज हमे इस बात की अत्यंत प्रसन्नता है कि पिछले 50 सालों मे बांग्लादेश ने विकास की राह पर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है जो बाकी दुनिया के लिए एक प्रेरणा का विषय है। यह विजय पर्व किसी खास ऑपरेशन का ही नहीं, बल्कि देशवासियों और हमारी सेनाओं की अंतरात्मा में बसे विजय के भाव, जो रानी लक्ष्मीबाई से लेकर मेजर सोमनाथ शर्मा, वीर अब्दुल हमीद और कैप्टन विक्रम बत्रा और आज हमारी सेनाओं के सभी अंगों में विद्यमान है, उसका महोत्सव है। बीसवीं शताब्दी में दो विश्वयुद्ध हुए जो कई वर्ष चले। दोनो विश्वयुद्ध के बाद यदि बीसवीं शताब्दी के सबसे निर्णायक युद्धों की गिनती की जाएगी तो 1971 का युद्द दुनिया के सबसे निर्णायक युद्धों में गिना जाएगा। यह युद्द हमें यह भी बताता है कि मज़हब के आधार पर हुआ भारत का विभाजन एक ऐतिहासिक गलती थी।

पाकिस्तान का जन्म एक मज़हब के नाम पर हुआ मगर वह एक नहीं रह सका। 1971 की हार के बाद हमारा पड़ोसी देश भारत में लगातार एक छद्म युद्द लड़ रहा है। भारत विरोध की भावना पाकिस्तान में कितनी बलवती है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगता है कि जिन आक्रांताओं ने भारत पर हमले किए उनके नाम पर वे अपनी मिसाइलों के नाम रखते हैं। गोरी, ग़जनवी, अब्दाली! उनसे पूछना चाहिए कि इन्होंने तो आज के पाकिस्तानी भूभाग पर भी हमला किया था। जबकि भारत की मिसाइलों के नाम होते हैं आकाश, पृथ्वी, अग्नि। अब तो हमारी एक मिसाइल का नाम संत भी रखा गया है। कल ही उसका एक सफल परीक्षण हुआ है। मैं डीआरडीओ की पूरी टीम को बधाई देता हूं। आतंकवाद को बढ़ावा देकर पाकिस्तान भारत को तोड़ना चाहता है। भारतीय सेनाओं ने 1971 में उसके मंसूबों को नाकाम किया और अब आतंकवाद को भी जड़ से ख़त्म करने की दिशा में काम चल रहा है।

हम प्रत्यक्ष युद्द में जीत दर्ज कर चुके हैं, परोक्ष युद्ध में भी विजय हमारी ही होगी। साथियों आज बदलते समय में, हमारी तीनों सेनाओं के बीच jointness, और Integration को बढ़ावा देने की बात की जा रही है, मैं समझता हूं 1971 का war युद्ध इसका एक शानदार उदाहरण है। इस युद्ध ने हमें एक साथ मिलकर योजना बनाने, प्रशिक्षित करने और लड़ने का महत्व समझाया। हमारे सशस्त्र बल को किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार रखना हमारा उद्देश्य है, और इस दिशा में हम बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। 'विजय पर्व' जैसे उत्सव हमें इसी राह पर और तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। मुझे इस बात की ख़ुशी है कि इस पर्व में देश की आम जनता को शामिल करने, उन्हें 1971 के युद्ध के बारे में जानकारी देने, हमारी सेनाओं की अब तक की प्रगति के बारे में अवगत करने के लिए विशाल प्रदर्शनी लगाई गई है। 

मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूरा विश्वास है कि आम जन इस पहल के माध्यम से अपने आप को 1971 के युद्ध की उपलब्धियों और उसकी प्रेरणाओं से अपने खुद को को जोड़ सकेंगे और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को नए तरीके से आत्मसात् कर सकेंगे।

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