Ram Vilas Paswan : केंद्र सरकार के साथ राजनीति की लंबी पारी खेलने के बावजूद बिहार में एलजेपी को बड़ी पार्टी नहीं बना सके पासवान

बिहार की सियासत के दलित चेहरा और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का गुरुवार देर शाम निधन हो गया। रामविलास पासवान अपने राजनीतिक सफर में केंद्र की राजनीति में हमेशा बने रहे और देश के पांच प्रधानमंत्रियों के साथ उन्होंने काम किया। वह बहुत ही कद्दावर नेता माने जाते थे।;

Update: 2020-10-09 05:39 GMT

बिहार की सियासत के दलित चेहरा और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का गुरुवार देर शाम निधन हो गया। रामविलास पासवान अपने राजनीतिक सफर में केंद्र की राजनीति में हमेशा बने रहे और देश के पांच प्रधानमंत्रियों के साथ उन्होंने काम किया। वह बहुत ही कद्दावर नेता माने जाते थे। उनके निधन से पूरे देश के साथ साथ दलितों में भी गम का माहौल है। उनकी पार्टी एलजेपी इतनी बड़ी पार्टी के तौर पर तो नहीं उभरी लेकिन इस पार्टी ने हमेशा एकजुट होकर विपक्ष के कई मंसूबों पर पानी फेरने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि राम विलास पासवान बिहार की सियासत में वो अपनी पार्टी एलजेपी की जगह बनाने में कामयाब नहीं रहे। एलजेपी ने 2015 के चुनाव में 42 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, पर महज 2 सीट ही मिल सकीं।

एलजेपी को इन सीटों पर 28.79 फीसदी वोट मिले थे, जो राज्य स्तर पर 4.83 फीसदी हैं। जबकि 2005 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी को राज्य में 11.10 फीसदी वोट मिले थे। दरअसल, एलजेपी अकेले चुनावी मैदान में कोई अपना खेल तो नहीं बना पाती है, लेकिन दूसरे का खेल बिगाड़ने की ताकत जरूर रखती है। वो इसलिए क्योंकि पांच फीसदी दुसाध वोट एलजेपी का मजबूत वोट माना जाता है। इसी के दम पर एलजेपी केंद्र में हिस्सा तो पा लेती है, लेकिन बिहार में सत्ता की धुरी नहीं बन पा रही है।

विधानसभा चुनाव में पार्टी दोबारा नहीं खड़ी हो सकी

हालांकि, एलजेपी को लोकसभा में जीत तो मिली, लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी दोबारा से नहीं खड़ी हो सकी। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान खुद भी हाजीपुर सीट से चुनाव हार गए। यही नहीं 2010 के विधानसभा चुनाव एलजेपी आरजेडी के साथ मिलकर 75 सीटों पर लड़ी, लेकिन तीन सीट ही जीत सकी। इस तरह से एलजेपी का राजनीतिक ग्राफ बिहार में सिमटता गया, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ हाथ मिलाने के बाद एलजेपी को संजीवनी मिली। साल सीटों में 6 संसदीय सीटें जीतकर पासवान केंद्र में मंत्री बन गए, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा।

वाजपेयी सरकार में एनडीए का छोड़ा था साथ

सीनियर पासवान कई विरोधाभासों के बावजूद अपने राजनीतिक लक्ष्‍य हासिल कर लेते थे। सीनियर पासवान ने वाजपेयी सरकार में मंत्रालय बदलने पर एनडीए छोड़ दिया था और फिर यूपीए में मंत्री बने। इसके बावजूद उन्‍होंने बीजेपी से हाथ मिलाया और 2014 में फिर केंद्र में मंत्री पद हासिल किया। हाल ही में चिराग ने वोटर्स और पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील में कहा था कि 'पापा का अंश हूं इसलिए उन्‍हें पता है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में सफल होते हैं।' सूत्रों के मुताबिक, एलजेपी लोगों के बीच जाकर यह कहेगी कि वह पासवान के 'सपने' को पूरा करेगी।

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